सौम्या केसरवानी | Navpravah.com
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अत्यधिक कार्य लेना आत्महत्या की वजह नहीं मानी जा सकती है। एक महिला ने अपने पति द्वारा आत्महत्या किए जाने पर कम्पनी के अधिकारियों पर आत्महत्या के लिये उकसाने का आरोप लगाया था।
जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा और यू.यू. ललित की पीठ ने यह कहते हुए महाराष्ट्र के शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी वीके खांडके के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने का केस समाप्त कर दिया है। अभियुक्त वरिष्ठ अधिकारी थे, जिन्होंने कार्रवाई समाप्त करने के लिए बंबई हाईकोर्ट का रुख किया था। उनके खिलाफ शिकायत उस कनिष्ठ अधिकारी की पत्नी ने दायर की थी, जिन्होंने आत्महत्या कर ली थी।
उनकी पत्नी ने कहा था कि, उसके पति मानसिक प्रताड़ना से गुजर रहे थे, क्योंकि उसके वरिष्ठ अधिकारी उससे भारी काम ले रहे थे। उन्हें सुबह 10 बजे से रात के 10 बजे तक दफ्तर में रहना पड़ता था।
जबकि हाइकोर्ट ने पत्नी के आरोपों को सही मानते हुए कहा था कि यदि अभियुक्त ऐसे हालात पैदा कर दें कि उस पर भीषण मानसिक दबाव बन जाए और वह आत्महत्या कर ले तो वरिष्ठों को खुदकुशी के लिए उकसाने का जिम्मेदार माना जाएगा।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में कोई सुसाइड नोट भी उपलब्ध नहीं हैं, जो कुछ भी सबूत मौजूद हैं, वे मृतक की पत्नी के दावे हैं, जो उसने पुलिस के सामने किए हैं। यह सही हैं कि यदि ऐसी स्थिति पैदा कर दी जाए, जहां व्यक्ति आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाए, तो धारा 306 के लिए कोई जगह बनेगी लेकिन इस केस के तथ्य कुछ और कहते हैं।