“नेताजी, ये पब्लिक है सब जानती है!”

जटाशंकर पाण्डेय | Navpravah.com

बटेसर और पनारू, जो एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते थे, आज कनखियों से एक दूसरों को ‘फ्रेंड रिक्वेस्ट’ भेजते नज़र आ रहे हैं। जी हां साहब! अपने अस्तित्त्व की नैया डावांडोल दीखते ही लोग गधे को भी बाप बनाने को तैयार हो जाते हैं। जो अखिलेश और राहुल रोज आपस में गाली गलौज करते नहीं थकते थे, हर सभा में एक दूसरे की टांग खींचते थे, चुनाव नजदीक आते आते लंगोटिये यार बन गए!

बड़े बुज़ुर्ग कह गए हैं न कि दुश्मन से भी ऐसे लहजे में बात न करें कि कभी समय आने पर उसके सामने यदि सर झुकाना पड़े, तो पीठ पर दुलत्ती पड़े। जो आज दुश्मन है कल घना मित्र हो सकता है। जो बात गुप्त रखने वाली है, उसे खास मित्र से भी मत कहो, क्योंकि जो आज घना मित्र है, कल कट्टर दुश्मन भी तो हो सकता है। यही राजनीति है भैया!

“कल गिराता था जो तुमको, आज वो छूता चरण है,
राजनीति का समझ लो सरल सा यह व्याकरण है।”

दुनिया में एक ही जगह ऐसी है जहां सब जायज है, जहाँ कुछ नाजायज होता ही नहीं, वह है राजनीति। यहाँ पूरे दिन लोग आपस में लड़ते झगड़ते हैं, शाम को साथ में पार्टी करते हैं। पर्दे पर अलग दिखते हैं और पर्दे के पीछे अलग होते हैं। यह क्या है? ये लोग जनता को क्या समझे हैं, अपने आप को खूब होशियार और जनता को पूर्ण बेवकूफ! लेकिन आज की जनता मूर्ख नहीं है भाई साहब! “ये जो पब्लिक है सब जानती है, ये जो पब्लिक है।”

पांच राज्यों के चुनाव खत्म हो गए हैं। रुझान आने शुरू हो गए हैं। एग्ज़िट पोल के आधार पर ही लोगों के कमेन्ट आने शुरू हो गए थे। किसकी कितनी सीट आने पर किसके साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं, यह जोड़ घटाव कल ही से शुरू हो गया है। कुर्सी कुर्सी कुर्सी! हर तरफ केवल कुर्सी की मारा मारी है। कुर्सी मिलनी चाहिए, चाहे जिस भी कीमत पर। जनता के अंदर विष घोला जा रहा है। जातिगत आंकड़ा, धर्मगत आंकड़ा, सब जनता के अंदर घोलने के बाद अब खुद अपनी जरूरत से गले मिलेंगे।राजनीति में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता है।अपना हित साधने के लिए नेता लोगों को आपस में लड़ाते हैं। दिलों से दिलों के बीच की दूरिया  लोगों में बढ़ाते जा रहे हैं, मगर उनकी आपसी दूरी केवल जनता को दिखने के लिए होती है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कल ही ऐलान कर दिया था कि अगर बहुमत न मिला, तो भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू नहीं होने देंगे। इसका तात्पर्य तो समझ ही रहे होंगे आप। अब अखिलेश भैया द्वारा बने एक्सप्रेस हाईवे पर यदि साइकिल पंक्चर हो जायेगी तो हाथी दौड़ा देने की फ़िराक में लग रहे हैं मुख्यमंत्री जी, लेकिन कमल कतई खिलने नहीं देना चाहते। इधर मतगणना शुरु होते ही पासा पलटता हुआ दिखाई दे रहा है। कीचड़ में से खिलखिलाकर खिल आया है कमल, और साइकिल, हाथी, पंजा, झाड़ू, लालटेन सब धड़ाम से गिर गए हैं कीचड़ में!

जरा सोचिए 10 अलग अलग पार्टियों के अपने अपने पचासों विचार, जो एक दूसरे से बिलकुल भिन्न हैं। पार्टी का मतलब होता है विचारों में भिन्नता, सोच में भिन्नता, कार्य करने के ढंग में भिन्नता। इसी के कारण तो अलग पार्टी बनती है। चुनाव के समय एजेंडा में भिन्नता,जनता के बीच किसी बात को समझाने में भिन्नता, एक दूसरे की निंदा करने में भिन्नता। इनकी समानता मात्र एक जगह देखने को मिलती है तब, जब ये पूर्ण बहुमत में नहीं आ पाते। अपनी सरकार बनाने के लिए किसी भी अलग विचारधारा वाली पार्टी के सामने घुटने टेक देते हैं। कुर्सी पाने के लिए ये अनचाही  विचारधारा को भी अपना लेते हैं।

दरअसल इनकी अपनी कोई विचारधारा ही नहीं है, बस जनता की कमज़ोर नस को पकड़ कर नस्तर चलाने और अपना उल्लू सीधा करने में ये पीएचडी किए हुए होते हैं। जाति, धर्म, ऊंच-नीच, का भेदभाव फैलाकर ये जनता की जलती अंगीठी पर अपनी रोटियां सेंकते हैं, लेकिन जनता को मूर्ख समझनेवाले ये धूर्त नेता, इस बार के चुनाव परिणामों से बेशक ये समझ पा रहे होंगे कि, “अंदर क्या है, अजी बाहर क्या है, ये सब कुछ पहचानती है, ये पब्लिक है, सब जानती है।”

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