कोमल झा| Navpravah.com
दिनों-दिन ग्लोबल वार्मिंग का असर बढ़ने से पर्यावरण असंतुलन का खतरा भी गहराता जा रहा है. हाल ही में अंटार्कटिका प्रायद्वीप में लक्जमबर्ग के आकार से भी दोगुने बड़े आइसबर्ग का टूटना इस बात का सबूत है. टूटा हुआ ये आइसबर्ग अब वेडेल सी में तैर रहा है. लार्सन सी से टूटकर अलग हुए इस आइसबर्ग का वजन एक खरब टन है. ये आंकड़े वैज्ञानिकों ने इस इलाके से सैटेलाइट के जरिए निकाले हैं.
अंटार्कटिका का 98 फीसदी हिस्सा बर्फ से ढका हुआ है. शोधकर्ताओं का कहना है कि आइसबर्ग टूटने से अंटार्कटिका का आकार ही बदल गया है. लार्सन सी बर्फ की चट्टान से 5800 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा अलग हो जाने से इसका आकार 12 फीसदी छोटा हो गया है. ये टूटा हुआ हिस्सा दिल्ली से 4 गुना बड़ा है. इसमें अमेरिका के न्यूयॉर्क जैसे 7 शहर समा सकते हैं.
सैटेलाइट ऑब्जरवेशन की एक्सपर्ट और यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स की एना हॉग का कहना है कि इतने बड़े बर्फ के टुकड़े के अलग होने की ये घटना बहुत बड़ी है. 5800 वर्ग किमी. का ये आइसबर्ग, जिसे A68 कहा जाएगा, अब तक के अलग हुए सबसे बड़े आइसबर्ग B-15 से भी बड़ा है जो साल 2000 में रॉस आइस शेल्फ से अलग हो गया था. लेकिन ये दुनिया के 10 सबसे बड़े आइसबर्ग में से एक है.
विशाल आइसबर्ग के पिछले एक साल से ही अलग होने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. इसमें दरार आने लगी थी. 25 से 31 मई के बीच ही इसमें 17 किमी. लंबी दरार आ गई थी. 24 और 27 जून के बीच ये हिस्सा तेजी से अलग होने लगा था और इसमें रोजाना 10 मीटर दरार बढ़ रही थी.
अंटार्कटिका से अक्सर आइसबर्ग अलग होते रहते हैं. महासागर में इनके आ जाने की वजह से समुद्री जहाजों को यातायात में खतरा होता है. चूंकि A-68 इतना बड़ा है इसलिए वैज्ञानिकों को इस पर खास ध्यान देने की जरूरत है.