जानिए क्या है आतिशी का मार्क्स -लेनिन कनेक्शन? 

नृपेंद्र कुमार मौर्य। navpravah.com

नई दिल्ली। आतिशी के दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने के साथ ही उनके जीवन और करियर की एक नई चर्चा शुरू हुई है, जिसमें उनके नाम ‘मार्लेना’ का भी उल्लेख महत्वपूर्ण है। आइए इस नाम के पीछे की कहानी, उनके राजनीतिक सफर और उनकी पहचान पर विस्तार से नजर डालें।

क्या है ‘मार्लेना’ का नाम के पीछे की कहानी?

ज़ी मीडिया के अनुसार, आतिशी का मिडिल नेम ‘मार्लेना’ खास महत्व रखता है। यह नाम मार्क्स और लेनिन के नामों का मिलाजुला स्वरूप है। कार्ल मार्क्स, एक प्रमुख जर्मन दार्शनिक और समाजवादी विचारक, ने पूंजीवादी समाज की शोषणकारी प्रकृति की आलोचना की और मजदूर वर्ग की स्थिति सुधारने के लिए कई सिद्धांत प्रस्तुत किए। वहीं, व्लादिमीर लेनिन ने रूसी क्रांति की अगुवाई की और साम्यवादी समाज की स्थापना की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हालांकि ‘मार्लेना’ नाम ने एक महत्वपूर्ण विचारधारा को दर्शाया, आतिशी ने 2018 के चुनाव से ठीक पहले इसे दैनिक उपयोग से हटा दिया। इसका कारण यह था कि वह चाहती थीं कि उनकी पहचान उनके नाम और वंश से न जुड़ी हो, बल्कि उनके कार्य और उनके योगदान पर आधारित हो। उनका मानना था कि राजनीति में जाति, धर्म और वंश के बजाय, व्यक्ति की योग्यता और उनके काम को प्रमुखता मिलनी चाहिए।

आतिशी का क्या है राजनीतिक सफर?

आतिशी का राजनीतिक करियर बेहद ही सफल रहा है। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक सलाहकार के रूप में की और जल्द ही महत्वपूर्ण भूमिकाओं में अपनी छाप छोड़ी। 2014 में, वह आम आदमी पार्टी (आप) की प्रवक्ता बनीं, और इस भूमिका में उन्होंने पार्टी की नीतियों और दृष्टिकोण को सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत किया।

2015 में, मनीष सिसौदिया के सलाहकार के रूप में उनकी नियुक्ति किया गया। उन्होंने सिसोदिया के साथ दिल्ली में शिक्षा में बहुत काम किया।

मुख्यमंत्री बनने की कहानी

केजरीवाल के इस्तीफे के ऐलान के बाद आतिशी मुख्यमंत्री के रेस में सबसे आगे चल रही थी। आतिशी को अरविन्द केजरीवाल ने अपनी पत्नी और अन्य वरिष्ठ नेताओं के ऊपर तरजीह दी है। अब देखना ये है कि ये है की आतिशी का दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में क्या परिवर्तन लाती है। उनका 10 साल का सफर, जिसमें उन्होंने सलाहकार से लेकर कैबिनेट मंत्री और अब मुख्यमंत्री तक का पद संभाला है |

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