बिजनेस डेस्क। बजट से ठीक पहले सुस्ती की मार झेल रही अर्थव्यवस्था पर हुए एक सर्वे में चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। आम आदमी पर महंगाई और आर्थिक मंदी की दोहरी मार पड़ रही है। हालत यह है लगभग 66% लोगों को अपने घर का खर्च चलाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। लोगों का कहना है कि वेतन या तो जस की तस है या फिर यह घट रहा है, लेकिन महंगाई दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रही है, जिसका असर उनके खर्चों पर दिख रहा है।
सर्वे के अनुसार, सर्वे में शामिल कुल 65।8% उत्तरदाता मानते हैं कि हाल के दिनों में उन्हें दैनिक खर्चों के प्रबंधन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। सर्वेक्षण के अनुसार बजट पूर्व किए गए इस सर्वेक्षण में आर्थिक पहलुओं पर मौजूदा समय की वास्तविकता और संकेत उभरकर सामने आए हैं, क्योंकि वेतन में वृद्धि हो नहीं रही, जबकि खाद्य पदार्थों सहित आवश्यक वस्तुओं की कीमतें पिछले कुछ महीनों में बढ़ी हैं।
45 सालों की ऊंचाई पर बेरोजगारी
पिछले साल जारी की गई बेरोजगारी दर का आंकड़ा 45 सालों की ऊंचाई पर है। दिलचस्प बात यह है कि 2014 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय पर भी लगभग 65।9% लोगों ने माना था कि वे अपने खर्चों का प्रबंधन करने में असमर्थ हैं। हालांकि, 2015 की अपेक्षा लोगों का मूड अभी नरम है। साल 2015 में लगभग 46।1% लोगों ने महसूस किया था कि वे अपने दैनिक खर्चों का प्रबंधन करने में दबाव महसूस कर रहे हैं। चिंताजनक बात यह है कि चालू वर्ष के लिए लोगों के नकारात्मक दृष्टिकोण में काफी वृद्धि देखी जा रही है। इससे पता चलता है कि लोग 2020 में अपने जीवन की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं देख रहे हैं, क्योंकि वे अर्थव्यवस्था के बेहतर होने की संभावना और हालात में सुधार को लेकर नकारात्मक बने हुए हैं।
खर्च का प्रबंधन हुआ मुश्किल
सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 30% लोगों को लगता है कि खर्च बढ़ गया है, मगर फिर भी वे प्रबंधन कर पा रहे हैं। यह आंकड़ा 2019 की तुलना में काफी कम है, जब 45% से अधिक लोगों ने महसूस किया था कि वे खर्च बढऩे के बावजूद प्रबंधन करने में सक्षम हैं। इसके अलावा, 2।1% लोगों ने माना कि उनके व्यय में गिरावट आई है, जबकि इतने ही लोगों ने इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की।
65 महीनों के उच्च स्तर पर महंगाई
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, खाद्य कीमतों में बड़े पैमाने पर वृद्धि के कारण दिसंबर में खुदरा महंगाई दर 65 महीनों में 7।35% के उच्च स्तर को छू गई। सर्वे में शामिल 4,292 लोगों में से 43।7% लोगों ने एक प्रश्न के जवाब में बताया कि उनकी आय एक समान रही और व्यय बढ़ गया, जबकि अन्य 28।7% लोगों ने यहां तक कहा कि उनके व्यय तो बढ़े ही हैं, साथ ही उनकी आय में भी गिरावट आई है। यह सर्वेक्षण एक फरवरी को पेश होने वाले केंद्रीय बजट से पहले सरकार की आंखें खोलने का काम कर रहा है। सर्वेक्षण जनवरी 2020 के तीसरे और चौथे सप्ताह में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 11 राष्ट्रीय भाषाओं में किया गया है।