न्यूज़ डेस्क@नवप्रवाह.कॉम,
अलजाइमर्स यानि भूलने की बीमारी का पहला चरण। इसमें याददाश्त कम होने के साथ-साथ मरीज के व्यवहार में कई नए परिवर्तन देखने को मिलते हैं। हालाँकि इस बीमारी का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन मधुमेह और उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करके इस रोग पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।
क्या है अलजाइमर्स?
यह एक पूरी तरह से ठीक न होने वाली बीमारी है, जो धीरे-धीरे स्मरण शक्ति को नष्ट कर देती है। सामान्यतः इस रोग से ६५ वर्ष से अधिक उम्र के लोग प्रभावित होते हैं। इस बीमारी से संबंधित मरीज का सबसे भयंकर व्यवहार, बेवजह घूमने निकल जाना है। ऐसे मरीज बहुत जल्दी खो जाते हैं। जिससे अनेक दुष्परिणाम दिखाई देते हैं।
कुछ चौंकानेवाली बातें
चिकित्सकों के मुताबिक़ यह एक वंशानुगत रोग है। यह परिवार में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलता है।
• वर्तमान में भारत में अल्जाइमर से पीड़ित मरीजों की संख्या लगभग ३७ लाख है, जिसमें सबसे अधिक मरीज महाराष्ट्र प्रदेश (५ लाख ५० हजार) में हैं।
• अल्ज़ाइमर के सफल इलाज के लिए तमाम अनुसंधान हो रहे हैं लेकिन अभी तक वैज्ञानिकों को सफलता नहीं मिल पाई है।
जेजे अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. सागर मुगदड़ा बताते हैं कि इस बीमारी को लोग गंभीरता से नहीं लेते। केवल १० प्रतिशत लोग ही शुरुआती दौर में इलाज करवाने आते हैं, जबकि २५ से ३० प्रतिशत लोग इसे बढ़ती उम्र की समस्या समझकर छोड़ देते हैं।
डॉ. मुगदडा के अनुसार इस बीमारी से जूझ रहे ब्यक्ति का सालाना खर्च ४३ हजार तक होता है। जो आर्थिक खर्च संभाल पाते हैं, वह कई बार केयरटेकर रख लेते हैं जबकि आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोग अपने बुजुर्गों को वृद्धाश्रम अथवा कही बहार छोड़ आते हैं।
लक्षण-
इसके शुरुआती लक्षणों में अनिद्रा, चिंता, परेशानी, भटकाव, अवसाद और स्मृति का खोना आदि हैं।
इसलिए डॉक्टरों द्वारा नियमित तौर पर जाँच करवाने की बेहद जरुरत है। इसकी जाँच स्मृति परीक्षण, सीटी स्कैन और एमआरआई आदि जाँच प्रक्रिया से की जाती है।
कैसे हो देखभाल
रोगियों को सक्रिय रखने के लिए उन्हें कुछ शारीरिक व्यायाम करना चाहिए।
डॉक्टर सागर मुगदड़ा के अनुसार ऐसे मरीजों से निरंतर मरीजों से बातचीत करते रहना जरुरी है ताकि वह अपने काम को याद रख सकें।अपने कार्यों को याद रख सकें।
साथ ही मरीजों को हमेशा जाँच के लिए ले जाना भी आवश्यक है साथ ही इन मरीजों के साथ प्यार से व्यवहार करना चाहिए।