एसएनडीटी विवि में हिन्दी दिवस पर विचार-गोष्ठी और राष्ट्रीय कवि-सम्मेलन

 कहाँ लुप्त हो गये ऐसे कवि सम्मेलन….!!

एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय, मुम्बई के हिन्दी विभाग ने विद्यापीठ की सौवीं जयंती के पावन अवसर पर ‘हिन्दुस्तानी प्रचार सभा’, मुम्बई के साथ मिलकर ‘हिन्दी दिवस’ (14 सितम्बर) का दो सत्रों में भव्य आयोजन किया, जिसमें मराठी व गुजराती विभाग की भी सक्रिय भागीदारी रही।

पहले सत्र में ‘भाषा और प्रतिरोध की राजनीति’ पर बोलते हुए वरिष्ठ हिन्दी कवयित्री व  जुझारू चिंतक सुश्री कात्यायनी (लखनऊ) ने कहा, “सत्तातंत्र की राजनीति व स्वार्थपरता एवं अंग्रेजी के वर्चस्व व अंग्रेजीयत की संस्कृति ने आम जनता पर जो आतंक व देश में भाषा को लेकर जो कलह-विग्रह पैदा किया है, उस कारण आज की संकल्पना ‘हिंदी दिवस’ के रूप न करके ‘भारतीय भाषा दिवस’ के रूप में करनी चाहिए’”। विशेष अतिथि के रूप में हि.प्र.सभा के ट्रस्टी व मानद सचिव श्री फ़िरोज़ पैच ने भाषा व स्त्री शिक्षा पर अपना मंतव्य प्रस्तुत किया। अध्यक्षीय वक्तव्य में कुलगुरु प्रो. वसुधा कामत ने भाषा को आनन्द और अपनी भावनाओं को दूसरों तक पहुँचाने के माध्यम के रूप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना और इसलिए इस दिवस को उन्होंने हिंदी या मराठी…आदि दिवस के रूप में न मनाकर ‘भाषा दिवस’ के रूप में मनाने की बात कही। सत्र का संचालन व अतिथियों का स्वागत प्रो. सत्यदेव त्रिपाठी (हिन्दी विभागाध्यक्ष) ने किया और हि.प्र.सभा निर्मित कप प्रदान करते हुए  वहाँ की विशेष अधिकारी डॉ सुशीला गुप्ता ने सबका आभार माना।

कार्यक्रम का दूसरा सत्र कवि सम्मेलन का रहा, जो आज के हँसोड व फूहड कवि-सम्मेलनों से नितांत अलग और विश्वविद्यालय की गरिमा के अनुकूल एक सुरुचिपूर्ण व साहित्यिक आयोजन सिद्ध हुआ। इसकी अध्यक्षता की – वरिष्ठ व लोकप्रिय कवि श्री नरेश सक्सेना ने और संचालन किया शहर की मानिन्द हस्ती श्री विश्वनाथ सचदेव ने। इस कवि-सम्मेलन में गीत-नवगीत, ग़ज़ल व मुक्त छन्द की तीन धाराओं के संगम में तिरता रहा छात्राओं, प्राध्यापकों व शहर का रसिक साहित्य-प्रेमी समाज।

हिन्दी के अग्रणी गीतकार बुद्धिनाथ मिश्र के वन्दना-गीत से शुरुआत हुई और दो पारियों में लगभग दस चुनिन्दा गीतों में उनकी पहचान वाला गीत ‘एक बार और जाल फेंक रे मछेरे, जाने किस मछली में  बन्धन की चाह हो… तो शामिल था ही, किशोरवय को अह्लादित करने वाला ‘अभी तो सपने नये-नये हैं, अभी तो हसरत नयी-नयी है, अभी न जाओ यूँ रूठकर तुम, अभी मुहब्ब्त नयी-नयी है’ के साथ ‘अपनी चिट्ठी बूढी माँ मुझसे लिखवाती है, जो भी मैं लिखता हूँ, कविता हो जाती है..’ जैसे मार्मिक गीत भी थे, जिनमें रसमग्न होता रहा श्रोता समुदाय। ‘सात भाइयों के बीच चम्पा’ ‘उस औरत से डरो’ ‘कविता के विरोध में एक कविता’ जैसी दर्जन भर तेज व विख्यात कविताओं से कात्यायनीजी ने नारी व समाज-चेतना का स्वर बुलन्द किया। स्थानीय कवियों – श्री वि.ना. सचदेव, श्री हस्तीमल हस्ती व श्री राकेश शर्मा – ने अपनी चुनिन्दा कविताओं व ग़ज़लों से सभा को आनन्दित व आन्दोलित किया।

अध्यक्षीय काव्य-पाठ में नरेशजी ने पहले अपनी छोटी-छोटी, सरल व अर्थगर्भित कवितायें सुनायीं – शिशु लोरी के शब्द नहीं, संगीत समझता है… वेद-पुरान-क़ुरान सभी को व्यर्थ समझता है, अभी वह अर्थ समझता है..’ जैसी गहरे मर्म वाली ‘एक वृक्ष बचा रहे, कॉंक्रीट, अच्छे बच्चे, इस बारिश में..आदि के दौरान सभा का नीरव आह्लाद देखते ही बना। और श्रोताओं की फरमाइश पर जब ‘चम्बल : एक नदी का नाम’ शुरू की, तो धीरे-धीरे सभागार आँसुओं की नदी बनता गया, जो तीनो बहनों के नदी में डूबने तक आते-आते सिसकियों-हिचकियों का सागर बन गया, पर प्यास फिर भी नहीं गयी…

प्रो. सत्यदेव त्रिपाठी के भावमय आभार-अदायगी के बाद बाहर चाय के साथ सबकी ज़ुबान पर एक ही वाक्य था – कहाँ लुप्त हो गये ऐसे कवि सम्मेलन….!!

इसी शृंखला में 15 सितबर को ‘महर्षि कर्वे व्याख्यान-माला के अंतर्गत ‘आज का समय और भाषा’ पर श्री नरेश सक्सेना का व्याख्यान हुआ तथा 16 सितम्बर को सक्सेनाजी ने ही हिन्दी-मराठी-गुजराती व संस्कृत की छात्राओ के साथ सम्मिलित रूप से ‘कविता :सृजन एवं आस्वाद’ विषय पर कार्यशाला संयोजित की।

इस प्रकार सम्पन्न हुआ हिन्दी का त्रिदिवसीय समारोह… !

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.