अनुज द्विवेदी
यूं तो कहने को उत्तर प्रदेश सँवर रहा है, बदल रहा है, पर शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो प्रदेश भर की सड़को के हाल से संतुष्ट हो ? सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार भी सड़कों के निर्माण में ही होता है। शायद जरूरी भी है, क्योकि ज्यादातर ठेकेदारों को या तो चुनाव लड़ना होता है या तो राजनीति में मोटी रकम दानस्वरुप देनी होती है।
सड़को का यही खस्ताहाल चित्रकूट जिले में भी खूब देखा जा सकता है, जहाँ दिखने में तो विकास की भरमार है, पर सड़क और बिजली के मामले में जनता त्रस्त है। यहाँ की अधिकांश सड़के ‘गड्ढे’ में तब्दील हो चुकी हैं। ऐसी सड़कों के उदाहरण बहुत हैं, किस किस के नाम लिखे जाएँ पर किसी एक का जिक्र करना तो आवश्यक ही है। जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर मानिकपुर नगर की एक और ख़ास सड़क है, जो मौजूदा समय में तहसील मुख्यालय से होती हुई पास के कई गाँवों को जोड़ती है। जिसकी सबसे ज्यादा खस्ता हालत कल्याण केंद्र चौराहे से तहसील मुख्यालय तक है, इसकी लम्बाई महज डेढ़ किमी होगी।
इस सड़क से महीने में एक बार जिलाधिकारी महोदय तो गुजरती ही हैं, पर एसडीएम साहब और तहसीलदार तो रोजाना ही गुजरते हैं। ऐसे में इन सभी प्रशासन के आलाधिकारियों को सड़क के गड्ढे न दिखते हों, ये तो मुमकिन नहीं। इन गड्ढों में उतना ख़ास समाचार लायक कोई तत्व भी नही, इसीलिए शायद अभी तक ये लोकतन्त्र के चौथे प्रहरी की नजर में नही आया।
सड़क के जिस हिस्से में ये ताजा गड्ढा हुआ है, इसकी ऊपर परत बिल्कुल हट चुकी है, जिस कारण अंदर पडी छड़ें बाहर निकल आई हैं जिसके कारण किसी दिन भी कोई बड़ी घटना घट सकती है। वैसे तो पास के लोगो ने पत्थर रखकर इन छड़ों को दबा दिया है पर खतरा तो अभी भी उतना ही है, क्योकि ऐसे गड्ढे तो पूरी सड़क में भरे पड़े हैं। अब तो इस बात का भी कोई अर्थ नहीं कि इस सड़क का निर्माण किसने और कब कराया था, क्योकि जब यह बनी थी तभी लोगो ने घोषणा कर दी थी कि ये सड़क नहीं मजाक है, क्योकि सड़कें तो सरकारी कागजों में ही दुरुस्त बनती हैं जमीन पर नहीं।
आमजनमानस की बात करें तो सभी को अपने आस पास की इन समस्यायों से छुटकारा चाहिए पर शर्त यह है कि भगत सिंह अपने घर में नहीं, बल्कि पड़ोसी के घर में पैदा हो। फिर प्रशासन से टक्कर कौन ले? अपनी-अपनी समस्यायों का ही इतना बड़ा पुलिंदा है सबके पास की, किसी को फुर्सत नही!