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देश छोड़ने का तात्पर्य क्या होता है? देश छोड़ने का सीधा तात्पर्य यह है कि देश में अब रहने लायक माहौल नहीं, बस चारो तरफ आतंक और भय का माहौल है। आमिर खान जैसे संजीदा कलाकार ने, जिस प्रकार से कल एक समारोह में अपनी पत्नी किरण राव के कंधे से अपने शब्दों से भरी बन्दूक चलाई, उसे नकारा नहीं जा सकता।
जिस प्रकार आमिर ने अपनी पत्नी की बात को सार्वजनिक मंच पर रखा उससे एक बात तो स्पष्ट है कि वह भी यह मानते हैं कि देश के हालात अच्छे नही है और वो परिवार सहित देश छोड़ने की बात पर विमर्श कर रहे हैं। तो अब प्रश्न यह उठता है की क्या हमारे देश के हालात सीरिया जैसे हो गए हैं, जहाँ के लोग आई.एस. के डर से अपने देश को छोड़ने पर मजबूर हैं? देश छोड़ना वाकई में ऐसे माहौल का परिचायक है, जब वास्तव में आपके हर मानवीय मूल्य को कुचला जाए और ऐसा सीरिया जैसे देश में लगातार हो रहा है। आमिर खान का बयान ऐसे वक्त आया है जब पूरे देश में इस बात को लेकर माहौल शांत था, पर अचानक मानो आमिर की इन बातों ने यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या अब वाकई हमारा अतुल्य भारत ‘असहिष्णु भारत’ की शक्ल ले रहा है?
अभी कुछ ही दिन पहले एक निजी न्यूज चैनल के कार्यक्रम में आमिर ने माना था कि भारत एक सहिष्णु देश है और मोदी जी के नेतृत्व में देश सही दिशा में बढ़ रहा है। अब अचानक आमिर और उनकी पत्नी के साथ ऐसा क्या घटित हो गया कि उनकी पत्नी के एक डर ने उन्हें अपनी बात से ‘यु टर्न’ लेने पर मजबूर कर दिया।
कुछ भी हो पर उन जैसे संजीदा कलाकार से यह उम्मीद की जाती है कि यदि समाज में किसी तरह का अविश्वास बढ़ रहा हो, तो वह उसे दूर करने में सक्रिय भूमिका निभाएं। इसलिए वह जब कोई फ़िल्म बनाते हैं या टीवी पर कोई कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं या ‘अतिथि देवो भव’ जैसे सरकारी प्रचार से जुडते हैं तो लोग उन्हें बहुत गंभीरता से लेते हैं। इसलिए उनकी यह अतिरिक्त जिम्मेदारी भी बनती है कि वह इसका ख्याल रखें कि उनकी किसी बात से जन सामान्य के विश्वास को धक्का न लगे।
क्या असहिष्णुता, हिंसा और डर की एकाधिक घटना के आधार पर भारत जैसे विशाल देश के बारें में कोई प्रतिकूल राय बनाना सही होगा? अभी हाल के कुछ दिनों में साहित्यकारों ,कलाकारों और बुद्धिजीवियों के साथ कुछ आहत करने वाली घटनाएं सामने आईं, पर अवधारणात्मक रूप से भारत जैसे विशाल सांस्कृतिक देश को असहिष्णु बताना ठीक नहीं। हमारे देश में हमेशा से ही रचनात्मक और वैचारिक स्वतंत्रता का भलीभांति सम्मान किया गया है, इसका एक ज्वलन्त उदाहरण तो खुद आमिर खान ही हैं। इस बयान से पूर्व कभी आमिर खान ने यह शिकायत नही की कि उन्हें उनके किसी रचनात्मक कार्यों या उनके व्यावसायिक हितों की पूर्ति करने में कभी कोई बाधा आई हो या फिर उनके व्यक्तित्व को कोई ठेस पहुँची हो! अपनी पत्नी से उन्होंने क्या कहा यह तो हमें पता नहीं, पर उन्हें देश के लोकतान्त्रिक मूल्यों पर 125 कऱोड देशवासियों की तरह ही विश्वास व उसका सम्मान करना चाहिए।
हमें आमिर खान के बयान पर ज्यादा ध्यान नही देना चाहिए क्योकि हमारा भारत आमिर खान से कहीं परे, उन असंख्य मुश्लिम कर्मयोगियों के तप पर टिका है, जिन्होंने एक भारत-श्रेष्ठ भारत के सपने को साकार करने के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया।
आमिर खान के इस बयान से सत्तारूढ़ दल की आलोचना नहीं हुई, बल्कि भारत की आत्मा पर चोंट लगी है, जिसके लिए उन्हें सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी चाहिये। इस कठिन समय में जब हमें आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होना चाहिए तब आमिर खान देश छोड़ने की बात कर रहे हैं, इससे उनकी हीरो की छवि को दाग लगा है क्योकि हीरो कभी भागता नही है।
आमिर का बयान राजनीति से प्रेरित है ये बातें उनसे कहलवाया गया है। जो उनको नहीं शोभा देता।देश से माफी मांगनी ही चाहिए।