उत्तर प्रदेश : संगठनात्मक फेरबदल को लेकर बीजेपी कन्फ्यूज़, बीजेपी से युवाओं का हो रहा मोहभंग

AnujHanumat@Navpravah.com
पिछले कुछ दिनों से यूपी में भाजपा अपने संगठनात्मक फेरबदल को लेकर काफी व्यस्त नज़र आई। मंडल स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक, बड़ी मात्रा में युवाओं की दावेदारी ने पार्टी आलाकमान की मुश्किलें और भी बढ़ा दी हैं। क्योंकि पार्टी के सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि किसको ज्यादा तवज्जो दे, पार्टी के पुराने सिपाहियों को या पार्टी के नये सिपाहियों को।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी काफी माथापच्ची कर रही है। इस बीच पार्टी के सामने संगठनात्मक फेरबदल को लेकर मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। पार्टी इस बात को लेकर परेशान है कि पार्टी युवा नेतृत्व को ज़्यादा तवज्जो दे या बुज़ुर्गों को। पार्टी दो धड़े में बंटी दिख रही है, एक धड़ा वह जिसका नेतृत्व पार्टी के बुजुर्ग नेता कर रहे हैं जिन्होंने पार्टी की नींव को अपने खून-पसीने से सींचा है, जो किसी भी हालत में अपनी जगह नही गवाना चाहते। और दूसरा धड़ा उन नौजवानों का है जिसका नेतृत्व पिछले लोकसभा चुनावो में अपनी चमक बिखेरने वाले ‘युवा’ कर रहे हैं। वो इसी दरवाजे से अब सक्रिय राजनीति में मजबूती से दाखिल होना चाहते हैं।
यूपी में  चल रहे भाजपा के संगठनात्मक चुनावो की स्थिति यही नही ठहरती, बल्कि अभी और भी पेंच सामने आ रहे हैं जिसमें मंडल स्तर और जिले स्तर में ‘जातिवाद’ का जहर भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। जिसमें कार्यकर्त्ता अपने पारस्परिक व्यवहार को भी सूली पर चढाने से नही कतरा रहे, क्योंकि उनका मानना है कि हमारे लिए ऐसे समय में राजनीतिक प्रतिष्ठा बरक़रार रखना सबसे बड़ी बात है जो पार्टी में ‘पद’ मिलने पर ही सम्भव है।
एक दृश्य इस समय अमूमन देखने को मिल रहा है कि पार्टी के अधिकतर सिपाही अपनी दावेदारी पेश करने के लिए खुद पार्टी कार्यालय में देखे जा रहे हैं। मंडल स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक पार्टी द्वारा नियुक्त किये गए चुनाव अधिकारी भी भारी दबाव में हैं क्योंकि उनके एक गलत निर्णय से खुद उनकी भविष्य की राजनीति साख पर भी बट्टा लग सकता है।
कुलमिलाकर अगले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले पार्टी द्वारा जब नए रणबांकुरों की लिस्ट घोषित की जायेगी, तो काफी कुछ नए संकेत मिलेंगे। एक बात और कि मोदी जिस ‘यंगिस्तान’ का जिक्र हमेशा अपने भाषण में करते हैं अगर उन्हे पार्टी अपने संगठनात्मक चुनावो में दरकिनार करती है तो यूपी के विधानसभा चुनावों के परिणाम पंचायत चुनावो के परिणाम जैसे हो सकते हैं।
अभी कुछ दिनों पूर्व एक निजी न्यूज चैनल द्वारा कराये गए सर्वे की रिपोर्ट जारी हुई, जिसमें यूपी के अगले विधानसभा चुनावों में बसपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त होने की प्रबल संभावना बताई गई। इस सर्वे के अनुसार भाजपा तीसरे नम्बर की पार्टी रहेगी । ऐसे में चुनावो की प्रचण्ड तपिश में इस सर्वे ने भाजपा आलाकमान की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। अब ऐसे में भाजपा को अपनी रणनीति में बदलाव करने की आवश्यकता है तभी सफलता प्राप्त हो सकेगी।
पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान समूचे देश में मोदी लहर से लबरेज लाखों युवाओं ने राजनीति में कदम रखा और देश के इस सबसे बड़े त्यौहार में भी खूब बढ़-चढ़कर भाग लिया। सबसे अहम बात यह है कि जिन युवाओं का राजनीति से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था उन्होंने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए मात्र अपना पसीना ही नहीं खून भी बहाया। लेकिन चुनाव के बाद जब बधाई और पुरस्कार वितरण का समय आया तो उन युवाओं के हाथ सिवाय निराशा के कुछ नही लगा। किसी भी बड़े नेता ने उनकी पीठ नही थपथपाई ।
इसका सबसे बड़ा दृश्य यूपी में देखने को मिला जहाँ इतनी बड़ी अप्रत्याशित जीत का पार्टी सही से प्रयोग नही कर पाई। जीत का श्रेय फिर से उन्ही पुराने कन्धों को दिया गया जो पार्टी के सबसे पुराने खम्बों में से एक थे। अधिकांश युवाओं को इस सम्मान से कोसों दूर रखा गया जिसके कारण पार्टी ने सदस्यता के समय ज्यादातर नये जोशीले युवा नेतृत्व को खो दिया।
बहुत से युवाओं ने इसके बाद से राजनीति में कदम न रखने की कसमें तक खा ली। ये सभी पार्टी के ऐसे कार्यकर्ता बन सकते थे, जो यूपी के इस आगामी चुनावी रण में पार्टी के लिए ब्रह्मास्त्र साबित हो सकते हैं। पर अभी तक पार्टी आलाकमान ने ऐसा कोई भी चिंतन नही किया कि आखिर उन युवाओं के साथ क्या होगा ? इन्ही में जीत का रहस्य जुड़ा है पार्टी का ! ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि आखिर उन युवाओं को पार्टी कैसे जोड़ पायेगी ?
अगर पार्टी को सच में यूपी का किला फतह करना है तो फिर ऐसे सभी युवाओं को मुख्य धारा में लाकर उनको योग्यतानुसार दायित्व सौंपनें होंगे।

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