एनपी न्यूज़ डेस्क | Navpravah.com
व्यवहार के साथ ‘समय की कद्र’ करना भी हमें सिखाया जाता है। समय एक ऐसा खज़ाना है जो कभी बंध कर नहीं रहता, बल्कि वक्त के साथ खर्च होता जाता है।
लेकिन यह हमारी समझ पर निर्भर करता है कि हम उसे कैसे खर्च करते हैं। यदि यूं बैठे-बैठे उसे गंवा देंगे तो हमसे अधिक मूर्ख इस दुनिया में कोई नहीं होगा, लेकिन सब कुछ जानते हुए भी हम इस खज़ाने को बहुत अच्छे से बर्बाद करते हैं।
हर कार्य में विलंब, आलस्य में बैठे रहना और कभी समय की कदर ना करना आज की पीढ़ी की आदत हो गई है, लेकिन मेरी राय में सबसे ज्यादा यदि हम किसी बात पर समय खर्च करते हैं तो वह है हमारी ‘सोचने की आदत’।
अपनी ज़ुबान से हम कोई गलत लफ़्ज़ ना निकाल दें, इसलिए बोलने से पहले भी सोचना जरूरी है। लेकिन यदि हम केवल सोचते ही रह जाएंगे तो हमारी ज़िंदगी की गाड़ी तो पक्का छूट जाएगी, लेकिन कुछ लोग केवल काम के सिलसिले में नहीं, बल्कि यूं ही बैठे-बैठे अपने जीवन का हिसाब लगाते हुए दिमाग में विचार बनाते रहते हैं।
निजी ज़िंदगी से लेकर सामाजिक गतिविधियां किस प्रकार से धीरे-धीरे समय के अनुसार ढल रही हैं। इसके बारे में ही सोचते रहते हैं कुछ लोग, एक समझदार इंसान कोई भी कार्य करने से पहले उससे संबंधित योजना बनाता है। फिर यह योजना लागू होने पर कैसे काम करेगी, इसके बारे में अंदाज़ा लगाता है, लेकिन यदि विचारों में ही खोकर उस योजना के परिणाम खोजने में हम समय निकाल देंगे तो उसे असल जिंदगी का मज़ा नहीं ले पायेंगे।
सबसे पहले तो आपको यह मानने की जरूरत है कि सच में आप जरूरत से ज्यादा ही सोचते हैं। हो सकता है कि आपकी परेशानी का कारण एक छोटा सा हल निकालने से ही दूर हो जाए, लेकिन आप हैं कि उससे होने वाले परिणामों को बस सोचते चले जा रहे हैं, यहां जरूरत है तो आपको यह समझने की कि “आपकी मौजूदा परेशानी से बड़ी परेशानी है आपकी सोचते रहने की आदत।