Health Desk। आजकल बच्चों में हमने अलग ही तरह का व्यवहार देखा है। कभी भी चिड़चिड़ा जाते हैं, तो कभी रुठ जाते हैं। ऐसे गुस्सैल और अड़ियल बर्ताव का मतलब है उनमें ओपोजिशनल डिफिएंट डिसऑर्डर (ODD) है। ये एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक विकार है।
ऐसे में इस बिमारी के लक्षण जान लेना अच्छा रहता है। लेकिन उम्र के बढ़ने के साथ-साथ अन्य कई लक्षण भी नजर आने लगते हैं। मां-बाप को अपने बच्चों का ध्यान रखना चाहिए और ये देखना चाहिए कि आखिर क्यों उनके व्यवहार में बदलाव आ रहे हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, गुस्सा और चिड़चिड़ा मूड मानसिक परेशानी का सबसे शुरुआती लक्षण है। लोगों से जल्दी चिढ़ जाना, जरा-सी बात पर गुस्सा हो जाना और अधिकतर नाराज रहना परेशानी के लक्षण हो सकते हैं। साथ ही यदि बच्चा बहुत ज्यादा बहस करता है। अकसर बड़ों की बात को अनसुना कर देता है। दूसरों को जानबूझकर परेशान करता है, या अपनी गलतियों का दोष दूसरों पर डाल देता है तो इसे सामान्य बात समझकर नजरअंदाज नहीं करें।
अगर 5-6 महीनों से बच्चे के व्यवहार में ऐसी चीजें लगातार दिख रही हों तो सतर्क रहने की आवश्यकता है। शुरुआती दौर में ODD के लक्षण सिर्फ घर वालों या नजदीकी लोगों के साथ ही प्रकट हो सकते हैं। जैसे-जैसे परेशानी बढ़ती है, बच्चे के स्कूल और आस पड़ोस में व्यवहार भी बदल जाता है। जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है, लक्षणों का असर बच्चे की अक्रामकता भी बढ़ा देती है। ODD के कई कारण होते हैं। कभी-कभी यह आनुवांशिक होता है, वहीं कई बार मां-बाप की उपेक्षा भी कारण बनती है। यदि मां बच्चे को अधिक समय नहीं दे पा रही है। साथ ही उसे डांटती-मारती अधिक है तो ODD की परेशानी बच्चे में उभर सकती है। ODD का एक कारण आपकी पारिस्थितिकी भी हो सकती है।
यदि आपके आसपास का वातावरण स्वच्छ नहीं है तो उसका असर भी बच्चे के मूड पर पड़ता है। यदि आपके बच्चे में ODD के लक्षण हैं तो उत्तेजित न हों, उसे प्यार से समझाएं। उसकी परेशानियों को समझें। घर में एक सकारात्मक माहौल बनाएं। रोजमर्रा के जीवन में कुछ अच्छे नियम कायदे बनाएं और उनका प्यार से पालन कराएं। बच्चे की जीवनशैली को व्यवस्थित करें। बच्चे को ऐसी गतिविधियों से जोड़े जो उसे रचनात्मकता और मानसिक शांति की ओर ले जाएं। उसे दिमाग को शांत रखने में मदद मिल सके।
ODD की समस्या दो तिहाई किशोरों में देखी जा सकती है। अगर समय से इसका सही इलाज नहीं हो और समस्या बढ़ती रहे तो यह गंभीर मानसिक रोगों का कारण बन सकती है। लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में इसके लक्षण अधिक दिखते हैं। खासकर 6 से 8 साल की उम्र में इसका खतरा अधिक होता है। कभी-कभी वयस्कों में भी यह समस्या जन्म लेती है। यदि इसका समय से इलाज नहीं मिले तो यह डिप्रेशन, एंजाइटी, लैंग्वेज डिसऑर्डर , मूड डिसऑर्डर, लर्निग डिसऑर्डर जैसी समस्याओं को पैदा करता है।
बच्चे को बहुत अधिक डांटे नहीं, प्यार से उसकी समस्याएं सुनें।
बच्चे को जितना हो सके समय दें।
बच्चे से बात करते वक्त धैर्य रखें, उसकी पूरी बात सुनें। ऐसा माहौल बनाएं कि बच्चा आपसे स्कूल, दोस्तों सबसे जुड़ी बातें शेयर कर सके।