महाराष्ट्र सरकार पेट की बीमारी में पैरों का इलाज कर रही है -शिवसेना

एनपी न्यूज़ डेस्क | Navpravah.com

शिवसेना ने केंद्र सरकार पर एक बार फिर से हमला बोला है। शिवसेना ने कहा है कि महाराष्ट्र सरकार पेट की बीमारी में पैरों का इलाज कर रही है। शिवसेना ने आत्महत्याओं को लेकर राज्य सरकार पर कटाक्ष किया है।राज्य सचिवालय पर सुरक्षा जाल लगाने को लेकर शिवसेना ने गुरुवार को दिए अपने बयान में कहा कि यह पेट की बीमारी के लिए पैरों का इलाज करने के जैसा है।

शिवसेना ने दावा किया कि राज्य में 4,000 से अधिक लोगों ने पिछले तीन वर्षों में अपने घरों या खेतों में खुदकुशी की है और कुछ लोगों ने ही सचिवालय में आत्महत्या की है। शिवसेना के अनुसार, सरकार से ऐसी घटनाएं रोकने के लिए किसानों तथा अन्य लोगों की परेशानियों को खत्म करने की उम्मीद की जाती है, लेकिन क्या राज्य के प्रशासनिक परिसरों में सुरक्षा जाल लगाना ही एकमात्र समाधान है। 

शिवसेना पार्टी के मुखपत्र सामना में एक संपादकीय में लिखा गया कि नायलॉन के जाल लगाने के बजाय सरकार को ठोस प्रावधान करने चाहिए, ताकि लोग आत्महत्या न करें। बीमारी पेट में है लेकिन पैरों पर प्लास्टर चढ़ाया जा रहा है। ज्ञात हो कि लोक निर्माण विभाग ने हाल ही में सात मंजिला राज्य सचिवालय की पहली मंजिल पर सुरक्षा जाल लगाया था, ताकि लोग वहां से कूदकर आत्महत्या ना कर सकें। दो लोगों ने उसके कॉरिडोर से कूदकर खुदकुशी की कोशिश की थी। शिवसेना ने कहा कि सरकार से आत्महत्याओं को रोकने के लिए कुछ ठोस करने की उम्मीद है। 

केंद्र और महाराष्ट्र में भाजपा के सहयोगी दल ने कहा कि सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह किसानों, कामकाजी वर्ग की समस्याओं को हल करें, ताकि उन्हें मंत्रालय की सीढ़ियां ही नहीं चढ़नी पड़े। शिवसेना ने दावा किया कि चूंकि मंत्रालय ‘सुसाइट प्वाइंट’ बन गया है, तो सरकार अस्थिर हो गई है। वहां आने वाले हर व्यक्ति को संदेह की नजर से देखा जाने लगा है कि क्या वह आत्महत्या करने आ रहा है।  

शिवसेना ने लिखा कि आत्महत्याएं राज्य पर कलंक हैं। क्या नायलॉन का जाल लगाना समाधान है? आपने गौर किया होगा कि किसान धर्मा पाटिल ने जहर खाकर आत्महत्या की, न कि छलांग लगाकर। यह स्पष्ट हो गया कि नायलॉन का जाल बहुत कमजोर है। धुले जिले के पाटिल (84) ने अपनी जमीन के लिए बेहतर मुआवजे की मांग को लेकर 22 जनवरी को मंत्रालय में जहरीला पदार्थ खा लिया था। बाद में 28 जनवरी को यहां एक अस्पताल में उनकी मौत हो गई थी। उनकी जमीन का अधिग्रहण किया गया था।  

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