डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk
कुछ शक्लें, समंदर होती हैं और कुछ आंखें, तारीख़ की किताब, इनके ख़ामोश रह लेने भर से, कई क़िस्से आबाद होते हैं और इनकी आवाज़, आशना होने का सबूत होते हैं। ये कई अलग अलग रूप में, हमारे सामने से गुज़रते हैं और हर बार हम मानते हैं कि इनसे तो क़रार है, मिलते रहने का और इसी ख़ुशमिज़ाजी में, हम उनका नाम भी पूछना भूल जाते हैं। हिन्दी सिनेमा में एक ऐसी ही शक़्ल मुराद की थी।
मुराद, 1910 में, रामपुर, उत्तर प्रदेश में पैदा हुए और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कैम्पस में मिंटो सर्कल में हाई स्कूल तक की पढ़ाई भी की। ये अपने घर के दुलारे थे और कद काठी से भी बेहद ख़ूबसूरत नौजवान थे। इनके कुछ रिश्तेदार बंबई (अब मुंबई) में रहते थे, और ये वहीं पहुंच गए। इनकी पत्नी के भाई, अमानुल्ला ख़ान, भोपाल के राजपरिवार से थे और लिखने का शौक़ रखते थे। मुंबई में, अमानुल्लाह की सलाहियत से फ़िल्मी दुनिया के लोग वाकिफ़ थे और आगे जा कर इन्होंने, “मुग़ल-ए-आज़म” और “पाकीज़ा” की पटकथा भी लिखी। मशहूर अभिनेत्री, ज़ीनत अमान, अमानुल्लाह ख़ान की बेटी हैं और इस तरीके से मुराद की भांजी भी।
मुंबई में, 1943 में, महबूब ख़ान की फ़िल्म, “नजमा” से इन्होंने शुरुआत की और इस फ़िल्म में वे मशहूर अभिनेता अशोक कुमार के पिता के किरदार में नज़र आए। इसके बाद, ये महबूब ख़ान की हर फ़िल्म का हिस्सा बन गए। आने वाले सालों में, “अनमोल घड़ी”, “आन”, “अन्दाज़”, “अमर” में भी ये नज़र आए।
“महबूब ख़ान के अलावा, बिमल रॉय जैसे महान फ़िल्मकार ने अपनी बेहतरीन फ़िल्मों, “दो बीघा ज़मीन” और “देवदास” में इन्हें काम दिया और “दो बीघा ज़मीन” के ज़ालिम ज़मींदार और “देवदास” के कठोर पिता को आज तक कोई नहीं भूला। इनकी शख़्सियत बहुत शाहाना थी, सो 1962 में आई, हॉलीवुड की एक फ़िल्म, “टारज़न गोज़ टु इंडिया” में इन्हें महाराजा का किरदार भी मिला। “
70 के दशक से ये ज़्यादातर, अमीर पिता, पुलिस कमिश्नर और जज की भूमिका में नज़र आने लगे और ये सिलसिला लंबा चला। इसी दौरान इनके बेटे रज़ा मुराद की भी फ़िल्मी दुनिया में शोहरत हो रही थी। रज़ा मुराद ने भी अपने पिता की विरासत को ख़ूब संभाला और बढ़ाया। 90 के दशक के शुरुआत के साल की ख़ूबसूरत अदाकारा, सोनम, जो “त्रिदेव” और “विश्वात्मा” जैसी फ़िल्मों में नज़र आईं, मुराद की पोती हैं।
मुराद ने और उनके परिवार के सदस्यों ने भारतीय सिनेमा की बड़ी फ़िल्मों को, अपनी शिरकत से और चमकदार बनाया। “कालिया”, “गंगा की सौगंध”, “हम किसी से कम नहीं”, “फ़रार” जैसी मशहूर फ़िल्मों में बड़े सितारों के बीच भी, मुराद ने अपनी छाप छोड़ी।
फ़िल्म, “शहंशाह” में एक जज के रूप में, फ़िल्म के क्लाइमैक्स का सीन, उनका आख़िरी मशहूर सीन कहा जा सकता है।
मुराद, अपने किरदारों के लिए, हमेशा याद किए जाएंगे।
(लेखक जाने-माने साहित्यकार, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)