मतदान में औसत गिरावट के कारण, जानिए, कैसे होगा इसमें सुधार

विशाल सिंह | navpravah.com

संसार के सभी देशों में सरकार चुनने का अपना अपना प्रावधान है। इनमें सबसे उत्तम तरीका लोकतांत्रिक तरीके से प्रत्यक्ष रूप से जनता के द्वारा सरकार का चुना जाना है, जो कि हमारे भारत देश में अपनाया गया है।

भारत में चुनाव को महापर्व जैसा माना जाता है और प्रतिनिधियों के साथ-साथ जनता में भी काफी उत्साह होता है। इस महापर्व मे हिस्सा लेने वाला और यहाँ तक कि हिस्सा लेने की इच्छा मात्र रखने वाला भी, एक अच्छी और मजबूत सरकार बनाने के लिए उत्साहित रहता है।

जनता में इतना उत्साह होने के बावजूद भी अगर हम वोटिंग का औसत देखें तो वह बहुत ही निराशाजनक दिखाई देता है। हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मतदान की स्थिति को देखे तो बड़ी आसानी से हमें पता चलेगा कि वोटिंग प्रतिशत् मात्र 50 से 60% ही रह रहा है। कहीं-कहीं तो 40% तक ही रहा वो भी उन बूथों पर जहाँ से हमारे बड़े बड़े माननीय लोग खुद ही प्रतिनिधि हैं। आखिर इतना उत्साह होने के बावजूद इस तरह की गिरावट क्यों है।

यह सोचने वाली बात है कि जिस देश मे प्रधानमंत्री, प्रदेशों के मुख्यमंत्री और नायक-नायिका, खिलाड़ी सभी लोग मतदाता को जागरूक करने के लिए प्रयासरत हैं। सबको उनके मताधिकार के बारे मे बता रहे, मतदान को सर्वोच्च कार्य की श्रेणी में रखने की सलाह दे रहे, वहां पर इतना कम वोटिंग आखिर क्यों ?

प्रश्न यही उठता है कि इसका मुख्य कारण क्या है और इसे सुधारा कैसे जा सकता है?

अक्सर इसका एक साधारण सा कारण सुनने को मिलता है कि लोग वोट के नाम पर छुट्टी का दिन समझते हैं, इस दिन या तो घर पर आराम करते हैं या फिर बाहर घूमने फिरने निकल जाते हैं पर जिस काम के लिए छुट्टी मिलती है, अर्थात वोटिंग के लिए वही नहीं करते हैं।

कुछ देर के लिए मान भी लिया जाए इस बात को, तो क्या इस तरह के लोग 50 या 60% हैं जो छुट्टी लेकर आराम करते हैं या घूमने चले जाते हैं। मुझे लगता है यह एक कारण हो सकता है कम वोटिंग का, लेकिन यही एकमात्र कारण है यह सच नहीं है।

आज यह समय की जरूरत है कि चुनाव आयोग, सभी माननीय और मतदाता भी इस पर विचार करें कि क्या सच में यही मात्र एक कारण है वोटिंग प्रतिशत् कम होने का ? इसके साथ साथ ही भविष्य मे वोटिंग प्रतिशत् को बढ़ाने का हर संभव प्रयास करें।

एक मुख्य कारण और है जो हमें समझ में आता है, आज के परिवेश में इस अर्थ प्रधान समय में, हर व्यक्ति रोजगार और युवा शिक्षा के लिए घर से दूर अन्यत्र किसी शहर या प्रदेश में जाकर रह रहे हैं। हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी निभाने मे संघर्षरत है। इस महगाई के दौर मे बच्चों की पढाई माँ पिता की ज़रूरतों को पूरा करना ही मुश्किल हो गया है।

आज के समय में हर परिवार से 40 से 50% लोग घर से दूर रह रहे, कुछ रोजगार के लिए तो कुछ शिक्षा के लिए या फिर कोई बीमार है तो कोई उसकी देखभाल मे लगा है और हर कोई सरकारी कर्मचारी नहीं है, जिसे वोट देने के लिए ड्यूटी लीव मिल रही है और अगर कोई सरकारी कर्मचारी भी है तो उसे मात्र एक दिन की लीव मिल रही है, जिसमें गृह जनपद जाना-आना और वोट देना सब संभव नहीं है।

गैर सरकारी कर्मचारी और विधार्थी को तो यह सुविधा भी नहीं मिल रही। ऊपर से पूरे परिवार को लेकर यात्रा करने का खर्च इस महगाई में अलग से। अतः यही वो 40% से 50% लोग हैं, जो चाहते हुए भी मतदान नहीं कर पाते हैं।

सरकार और चुनाव आयोग तथा मतदाता सभी को जागरूक होकर इस विषय मे सोचने की जरूरत है। आज का अत्याधुनिक भारत जो कि हर क्षेत्र ऑनलाइन सुविधा युक्त हो गया है, उसे वोटिंग के लिए भी कुछ इस तरह का प्रबंध करना चाहिए कि जो जहाँ है वही से वोट कर सके, बस इस प्रक्रिया में यह सुनिश्चित् होना चाहिए कि चुनाव की शुचिता पर कोई असर ना पड़े।

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