शिवानी दीक्षित,
कहते हैं कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन निवास करता है और स्वस्थ तन मन स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण में सहायक होता है। यही कारण है कि मानव के अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्राचीन काल से ही गहन विवेचन और महत्त्वपूर्ण अनुसंधान होते रहे हैं। परन्तु 21वीं सदी में आधुनिकता की दौड़ ने मानव स्वास्थ्य को अत्यधिक प्रभावित किया है। कैंसर, रक्तचाप, मधुमेह और हृदय रोगियों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। हालांकि चिकित्सा विज्ञान भी इन विषम परिस्थितियों से निपटने के लिए नवीन तकनीकों को विकसित करने में लगा हुआ है, जिससे रोगों की विस्फोटक स्थितियों को नियंत्रित किया जा सके।
आज हम आपको कैंसर के इलाज़ की किसी नई तकनीक के बारे में नहीं बल्कि अतीत के पन्नों से एक ऐसी खोज से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसे कैंसर के इलाज में पहली बड़ी सफलता माना जा सकता है। कहते हैं कि यदि किसी रोग के कारणों का पता चल जाए तो उसका उपचार खोज पाना आसान हो जाता है। कैंसर जैसे असाध्य रोग के लिए इसी सोच को डॉ. ओटो वारबर्ग ने सन् 1931 में कैंसर के कारणों का पता लगाकर यथार्थ में बदला। इस उपलब्धि के लिए डॉ. वारबर्ग को नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
डॉ. वारबर्ग ने बताया था कि यदि सामान्य कोशिकाओं को 48 घंटे के लिए 35 प्रतिशत से कम ऑक्सीजन दिया जाये तो कोशिकाएं कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। उन्होंने ऑक्सीजन को कोशिकाओं तक पहुँचाने के लिए सल्फरयुक्त प्रोटीन और वसा तत्त्वों को आवश्यक पाया, किन्तु कौन सा वसीय अम्ल इसके लिए उत्तरदायी था, इस विषय में डॉ. ओटो वारबर्ग भी नहीं जान सके।
इस घटना के डेढ़ दशक बाद डॉ. जोहना बुडविग ने इस रहस्य से पर्दा उठाया। डॉ. जोहना बुडविग जानी मानी क्वांटम फिजिसिस्ट और बायोकेमिस्ट थीं। वे फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ फैट्स रिसर्च, जर्मनी में चीफ़ एक्सपर्ट थीं। डॉ. बुडविग ने जिन वसीय अम्लों की खोज की थी वे अलसी के तेल में पाए जाने वाले लिनोलिक और अल्फा लिनोलिक एसिड थे। अपने शोध के दौरान उन्होंने पाया कि ऊर्जा के भंडार माने जानेवाले इन तत्त्वों की उपस्थिति में कैंसर का अस्तित्व ही संभव नही है।
डॉ. बुडविग ने कैंसर के इलाज़ की जो आहार पद्धति विकसित की थी, वह अपने आप में अनोखी थी क्योंकि इसमें इलाज की कीमियोथैरेपी और रेडियोथेरैपी जैसी तकनीकों की तरह स्वस्थ कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने का खतरा नहीं था। बुडविग की आहार उपचार पद्धति को ही ‘बुडविग प्रोटोकॉल’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने इस पद्धति द्वारा कैंसर के इलाज में 90 प्रतिशत तक सफलता प्राप्त की थी।
इसके अलावा बुडविग ने अपने प्रयोगों के आधार पर बताया कि तेल को गर्म करने से उसके ऊर्जावान तत्त्व नष्ट हो जाते हैं और कैंसरकारी रसायन बन जाते हैं। उन्होंने इसे प्रतिबंधित करने की माँग की, परंतु बदले में प्रतिबंधित कर दिए गए उनके शोध पत्रों के प्रकाशन। कितने आश्चर्य की बात है कि सात बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित होने पर भी वह पुरस्कार नही पा सकीं।
आज जब कैंसर हमारे सामने दानव रूप में खड़ा है, बुडविग प्रोटोकॉल पर हो रहे शोध कार्यों ने उम्मीद की एक नई किरण दिखाई है। पोलिश, फ्रांस और जर्मनी में हुए प्रयोगों ने बुडविग प्रोटोकॉल को कैंसर के लिए लाभकारी माना है। ‘कैंसर फ्री’ बुक के लेखक बिल हेन्डरसन का भी मानना है कि कोशिका में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए ओमेगा -3 चुम्बक की तरह काम करता है। बुडविग की खोज कई मायने में विशिष्ट सिद्ध हुई है। यदि बुडविग प्रोटोकॉल को विशेषज्ञों की देख-रेख में कार्यान्वित किया जाये तो यह निश्चित रूप से कैंसर के इलाज के एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आएगा।