रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा है कि आस्था वह पक्षी है जो उजाले को तब महसूस करता है जब आकाश में भोर का अंधेरा छाया हुआ होता है।
विश्वास एक ऐसा पंछी है जो सुबह के अँधेरे में भी उजाले को महसूस कर सकता है। विश्वास प्रकाश है। विश्वास का अर्थ है आशा। विश्वास ही जीवन है। जो काम कोई दूसरा नहीं कर सकता है वह काम विश्वास से होता है। लिंग पुराण में श्वेतमुनि की कथा आती है। उनका दृढ़ विश्वास था कि मैंने मृत्युंजय शंकर की शरण ली है तो मौत मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकती।
एकबार भयंकर यम उनको लेने के लिए आए। श्वेतमुनि ने उससे डरे नहीं और पूछा, ‘तुमने आश्रम में प्रवेश करने का साहस क्यों किया?’ यम ने कहा, ‘आपको लेने के लिए।’ यह सुनकर श्वेतमुनि ने शिवलिंग को गोद में लेकर निर्भयता की सांस ली। उनकी यह चेष्टा देखकर यम ने मुस्कुराते हुए कहा , ‘यह लिंग सुन्न, निष्क्रिय और शक्तिहीन है।’ श्वेतमुनि कहते हैं, ‘भगवान उमापति घुरघुराहट में लीन हैं। वह विश्वासपूर्वक सवारी करके भक्त की रक्षा करता है।’ उनकी महान आस्था को देखकर, शंकर ने लिंग से प्रकट हुए और यम से उनकी रक्षा की।
ऐसा आपसी विश्वास हो तो हमारा काम हो जाता है। प्रमुख स्वामी महाराज आस्था के प्रतीक थे। जब किसी को कोई दिशा नहीं मिल रही थी तो स्वामीजी उनमें आस्था का जीवन भर देते थे, सभी थके और उदास रहते थे।
सन 1981 में भगवान स्वामीनारायण द्विशताब्दी उत्सव की शुरुआत से पहले अहमदाबाद शहर में आरक्षण आंदोलन शुरू हुआ। चारों तरफ हलचल हलचल मची हुई थी। दोनों पक्ष मे से कोई किसी के आगे झुकता नहीं था । कोई किसी पर विश्वास नहीं करता । कोई किसी की सुनता नहीं था । शहर में भयानक युद्ध जैसे हालात हो गए थे। और दिन-ब-दिन आंदोलन उग्र होता जा रहा था। स्थिति कुछ ज्यादा ही विस्फोटक होती जा रही थी। खासकर साबरमती आश्रम के पास जहां इतना बड़ा त्योहार मनाया जाना था वह विस्तार तो आंदोलन के तूफान घिरा हुआ था। ऐसे हालात में उत्सव कैसे सम्भव हो ? इस सवाल ने सब को परेशान कर दिया था । तैयारी जोर-शोर से शुरू हो गई थी। लेकिन संकेत ऐसे थे कि अगर इस तरह से आंदोलन चालू रहे और उत्सव मे कुछ बढ़ा आए को तो देश-विदेश से आने वाले लाखों लोगों को बड़ी परेशानी होगी। सभी स्वामीजी के पास दौड़े। वे सभी त्योहार को स्थगित करने के निर्णय में थे। उन्होंने स्वामीजी के सामने भी स्थिति को नकारात्मक रूप से प्रस्तुत किया क्योंकि उनके अनुसार और कोई अच्छी संभावना नहीं थी। हर कोई घोर निराशा और लाचारी में स्वामीजी से समाधान ढूंढ रहा था। इस तूफ़ान में एक झटके में सभी के आस्था के दीप बुझ गए थे। उनमें से कुछ तो दीप ही नष्ट हो गए थे। लेकिन स्वामी जी स्थिर एवं अडिग थे।
इनकी खासियत थी कि ऐसी आपात स्थिति में भी वे तुरंत कोई निर्णय न लेते थे । पहले सभी से पूछो। सबके वोट लेते थे। सभी के हृदय मे क्या चाल रहा है उसकी जाँच करते थे । उन सभी ने सर्वसम्मति से कहा कि उत्सव को स्थगित करने के अलावा और कोई उपाय नहीं है। फिर स्वामी जी ने बहुत ही शांति और बर्फ की ठंडक से कहा कि हमें तय तारीखों के अनुसार ही उत्सव मनाना है. भगवान स्वामीनारायण सब कुछ अच्छा कर देंगे। बुरा समय टल जाएगा। स्वामी जी ने सबके दिलों में आस्था विश्वास की एक ही चिंगारी दी और सबके दिलों में फिर से एक आग लग गई। उनमे हिम्मत आई । साहस आया। नई सोच आई।वास्तव में ऐसा ही हुआ।
जब उत्सव शुरू हुआ तब तक आंदोलन क्षीण हो गया और माहौल भी दिव्य हो गया । द्विशताब्दी समारोह अद्भुत हुआ । जिसकी सबको दहशत थी ऐसी कोई गड़बड़ी नहीं हुई। सम्पूर्ण आयोजन अत्यंत सफल रहा। देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आ पहुंचे थे । हजारों संत और गणमान्य व्यक्ति भी आए। न जाने कितने मेहमान आए। हजारों नशेड़ी जो रोज नशा करते थे उन्होंने अपने व्यसन छोड़ दिए । उत्सव ने सैकड़ों लोगों को पवित्र जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। ऐसे अवसर पर स्वामीजी की श्रीहरि में अटूट आस्था से हमें यह विश्वास हुआ कि इस अलौकिक व्यक्ति की आस्था वास्तव में अनंत और अथाह है।
स्वामीजी वर्ष 2009 में मुंबई में थे। एक बार कुछ श्रद्धालु ज़न वहा बैठकर लोकसभा चुनाव परिणाम हारने की बात कह रहे थे। एक भक्त दूसरे की ओर इशारा करके कहा , ‘स्वामी जी ! यह कह रहा है कि हमें प्रार्थना करने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है। अगर हम प्रार्थना भी करें, तो भगवान नहीं सुनते और उल्टा हो जाता है. इससे अच्छा यह है कि प्रार्थना ही नहीं करनी चाहिए ।’ स्वामीश्री कहते हैं, ‘क्यों? क्या ऐसी समज और विचारधारा अब तक सत्संग करने का परिणाम है?’
वह बुजुर्ग भक्त ने कहा , ‘लेकिन हमारी प्रार्थना नहीं सुनी जाती है तो हम क्या करें?’ स्वामीश्री शांति स्वस्थता से कहते हैं, ‘शायद हम प्रार्थना करे और हम जो मांगे वैसा न भी हो तो समझो की भगवान की ऐसी ही मर्जी होगी। भगवान जो करते है वह अच्छा ही करेंगे । कोशिश करने के बाद भी अगर कोई नतीजा नहीं निकलता है, तो भगवान की इच्छा पर विश्वास करें।’ स्वामीजी की ईश्वर में दृढ़ आस्था देखकर सभी शांत हो गए। वह सभी स्वामीजी के पवित्र तर्क के प्रति अनुत्तरदायी हो गए ।
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