23 सितंबर 2022 को हमारे भारत के विदेश मंत्री श्री जयशंकर जी न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम में शामिल होने आए थे।
यहां उन्होंने कुछ साल पहले की एक घटना को याद किया। वर्ष 2016 में तालिबान के आतंक के कारण अफगानिस्तान में युद्ध छिड़ गया था। उस समय कई भारतीय वहां फंसे हुए थे। स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी। इस बीच, मजार-ए-शरीफ शहर में हमारे भारतीय दूतावास पर भी आतंकवादियों ने भारी हमला किया। सभी लोग बहुत डरे हुए थे। श्री जयशंकर ने घटना को याद करते हुए कहा कि उस समय आधी रात हो चुकी थी। हम अपने फोन से स्थिति को ट्रैक करने की कोशिश कर रहे थे। वे फंसे भारतीयों को सुरक्षित देश वापस लाने की व्यवस्था कर रहे थे। तभी मेरा फोन बजा। मुझे एहसास हुआ कि यह हमारे माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी का फोन है। उन्होंने पहला सवाल पूछा, ‘जागे हो?..’ ‘अच्छा टीवी देख रहे हैं?’ ‘क्या हो रहा है वहां?..’ कुछ बातचीत के बाद मोदी साहब ने कहा कि मुझे हालत की जानकारी देते रहना । जयशंकर जी ने कहा कि मैं आपके पीएमओ कार्यालय को संदेश दूंगा। यह सुनकर श्री मोदी ने कहा, ‘आप मुझे फोन करेंगे ।’
जो सबसे अच्छा है और जिसे सेवा करनी है उसके लिए दिन और रात समान हैं। ऐसा व्यक्ति लगातार सतर्क रहता है। ऐसा व्यक्ति हमेशा चिंतित रहता है। ऐसा व्यक्ति लगातार मदद करता है। वह समय की जंजीरों से बंधा नहीं जा सकता।
26 जनवरी 2001 की सुबह गुजरात में भयानक भूकंप आया था। भुज शहर इसके तेज झटके से तबाह हो गया था । हमारा बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। प्रमुख स्वामी महाराज उस समय बोचासन मंदिर में थे। वहां पर भी भूकंप आया था। स्वामी जी चारों ओर से भूकम्प के समाचार सुनने लगे। इसकी जानकारी देने के लिए कई फोन आने लगे। स्वामी जी अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम में कोई परिवर्तन किये बिना ही भूकम्प आदि से हुई तबाही की जानकारी प्राप्त करने लगे । रात 11 बजे तक लगातार कॉल का सिलसिला चलता रहा। वायु सेना में कार्यरत राजूभाई दानक से भुज की स्थिति की सूचना मिलने पर स्वामीजी ने ब्रह्मविहारी स्वामी को भुज जाकर राहत कार्य संभालने का आदेश दिया। वे तुरंत वहां पहुंच गए। स्वामीजी की इच्छा के अनुसार, एक बृहद राहत कार्य शुरू किया गया ।
योजना के मुताबिक भुज के आसपास के कई गांवों में राहत कार्य जोरों से शुरू हो गया. ऐसे समय में स्वामीजी के साथ प्रतिदिन रिपोर्टिंग होती थी। कभी वे कोल करते तो कभी ब्रह्मविहारी स्वामी स्वामी जी को फोन करते थे । कॉल का समय रात 10:30 से 11.30 का । स्वामी जी रोज एक घंटे तक राहत कार्य का रिपोर्टिंग सुनते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि या तो स्वामी ने फोन किया या किसी संत ने फोन किया। तो स्वामी जी ने 12:30 बजे सामने से फोन किया और पूछा कि आज क्या हुआ? ब्रह्मविहारी स्वामी ने कहा कि आज कुछ खास नहीं हुआ। हम हर रोज चीजों के वितरण के लिए जाते हैं। साथ ही यहां भी हमने लोगों को प्यार से उनकी मदद करके उनकी सेवा की है। तो यह जीरो रिपोर्टिंग जैसा है। स्वामीजी कहते हैं, ‘शून्य रिपोर्टिंग हो तो भी मुझे रोज फोन करना।’ स्वामी जी की सेवा करने का जज्बा अद्भुत था। तो ब्रह्मविहारी स्वामी ने सुनसान रास्ते पर चलते हुए कहा, ‘ स्वामी जी, अभी रात के 12:30 बज रहे हैं। पूरा भुज शहर सो रहा है. यहां तक कि टेंट में रहने वाले धरतीकंप से प्रभावित लोग भी सो चुके हैं। कलेक्टर के आवास की लाइट भी बंद कर दी गई है। हर तरफ शांति है। सब सो गए हैं..’ स्वामीजी ने तुरंत कहा, ‘लेकिन हम जाग रहे हैं!.’ इस प्रकार स्वामीजी हर रात फोन करते थे और रिपोर्टिग सुनते थे । जहां जरूरत हो वहा मार्गदर्शन भी देते थे । यह सब बंद दरवाजों के पीछे स्वामीजी के अपने शयन के समय होता था । फिर मन में आता है कि इक्यासी वर्षों में सेवा की ऐसी भावना सर्वश्रेष्ठ संत कप्तान के अलावा और किसमें है? स्वामीजी की ऐसी उदात्त भावना को और कौन जान सकता है?
ऐसी ही एक और घटना साल 1999 में हुई थी। स्वामीजी नैरोबी से मिस्र के कैरो शहर जा रहे थे। उस समय मिस्र में कैडबरी कंपनी का मुखिया उसी विमान में यात्रा कर रहा था। बगल में एक ब्रह्मविहारी स्वामी बैठे थे। समय के साथ सामान्य परिचय के बाद उन्होंने सत्संग के बारे में थोड़ी बात की। बात करने के बाद थकान के कारण वे सो गए । कुछ देर बाद जब उनकी नींद खुली तो उन्होंने अपने बगल वाली सीट पर बैठे शख्स को स्वामी जी को दिखाया और कहा, ‘यह हमारे गुरुजी है। उन्हों ने , ‘मुझे पता है। “आप कैसे जानते हो?” वे मुस्कुराये और कहा, ‘क्योंकि जब तुम सब सो रहे थे, वह जाग रहे थे और पढ़-लिख रहे थे ।’ स्वामीजी उस समय बिना जम्हाई या झुके लगातार पत्र पढ़ रहे थे और उनके द्वारा पढ़े गए पत्रों का उत्तर लिख रहे थे। आपको हैरानी होगी कि जब ये कहा गया तो रात के 1:30 बज रहे थे! समय बह रहा था, विमान भी बह रहा था और स्वामीजी अभी भी सेवा में स्थिर थे।
ऐसे थे प्रमुख स्वामी महाराज। रात हो या दिन; ऊपर हो या नीचे और भले ही वे आकाश में 40,000 फिट की ऊंचाई पे हो,.. वे तो सदैव दुखियों के दुख को दूर करने जागृत रहते थे।
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