नई दिल्ली | navpravah.com
नृपेंद्र कुमार मौर्य| 10 अप्रैल को दिल्ली में मुखर्जीनगर के सेंट्रल पार्क में भारतीय योग संस्थान द्वारा आयोजित योग स्थापना दिवस समारोह में मनाया गया। यह केवल एक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि योग के गूढ़ रहस्यों को जानने और अनुभव करने का एक सजीव अवसर था। मुख्य वक्ता श्री शर्मा के विचार, उनका आत्मसात किया गया ज्ञान, और मंच पर उनके शब्दों में बहती हुई साधना ने मन को भीतर तक स्पर्श किया।
श्री शर्मा ने अपने वक्तव्य में एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही – “योग का अंतिम चरण समाधि है, जिसे पाना अत्यंत कठिन है।” यह कथन केवल ज्ञान का बोध नहीं कराता, बल्कि यह भी इंगित करता है कि योग केवल शारीरिक मुद्राओं या प्राणायाम तक सीमित नहीं है; यह एक संपूर्ण जीवन पद्धति है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की प्रक्रिया है।
योग: केवल व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन का विज्ञान
आज योग को अक्सर फिटनेस से जोड़ा जाता है – शरीर को लचीला बनाना, वजन घटाना या मानसिक तनाव को कम करना। ये सब योग के लाभ हैं, परंतु योग का वास्तविक उद्देश्य कहीं गहरा है। पतंजलि के अष्टांग योग में वर्णित आठ अंग – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि – जीवन के प्रत्येक स्तर को संतुलित करने के लिए बनाए गए हैं।
यम और नियम – हमें आचरण और अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं। ये सामाजिक और व्यक्तिगत मर्यादाओं की स्थापना करते हैं।
आसन – शरीर को स्वस्थ और स्थिर रखने का माध्यम हैं ताकि मन एकाग्र रह सके।
प्राणायाम – श्वास के माध्यम से जीवन ऊर्जा को संतुलित करना सिखाता है।
प्रत्याहार – इंद्रियों को बाहरी विषयों से हटाकर भीतर की ओर मोड़ता है।
धारणा और ध्यान – मन को एक बिंदु पर केंद्रित करना सिखाते हैं, जो अंततः समाधि की ओर ले जाते हैं।
समाधि: आत्मा की परम शांति
शर्मा जी के अनुसार, समाधि की अवस्था वह बिंदु है जहाँ साधक अपने ‘स्व’ से विलीन हो जाता है – जहाँ न कोई विचार रहता है, न कोई इच्छा। यह अवस्था केवल निरंतर साधना, संयम और समर्पण से प्राप्त होती है। आज के व्यस्त और तनावग्रस्त जीवन में यह मार्ग कठिन अवश्य है, पर असंभव नहीं।
भारतीय योग संस्थान का योगदान
इस आयोजन ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय योग संस्थान केवल एक संस्था नहीं, बल्कि एक जन-आंदोलन है। देशभर में 4700 से अधिक केंद्रों के माध्यम से यह संस्था योग की प्राचीन परंपरा को जन-जन तक पहुँचा रही है। कार्यक्रम के दौरान आयुर्वेदिक दवाओं और योग मंजूरी का वितरण यह दर्शाता है कि यह प्रयास केवल शारीरिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के सम्पूर्ण कल्याण की ओर अग्रसर है।
योग: समय की पुकार
आज के यांत्रिक युग में जब व्यक्ति भागदौड़ और तनाव की दुनिया में जी रहा है, योग जीवन की दिशा और दशा दोनों को परिवर्तित करने का सामर्थ्य रखता है। यह हमें हमारे मूल स्वभाव – शांति, सहिष्णुता और आत्मबोध – की ओर लौटने का मार्ग दिखाता है।
योग केवल 21 जून या किसी विशेष दिवस तक सीमित नहीं होना चाहिए। इसे जीवन की दैनिक साधना बनाना होगा – तभी हम व्यक्तिगत और सामाजिक रूप से एक समरस, सशक्त और संतुलित समाज की स्थापना कर सकेंगे।
योग कोई ‘ट्रेंड’ नहीं, यह भारत की आत्मा है। यह एक ऐसा विज्ञान है जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना सहस्रों वर्ष पूर्व था। भारतीय योग संस्थान और अन्य संस्थाएं इस चेतना को जागृत रखने में जो कार्य कर रही हैं, वह निस्संदेह प्रशंसनीय है। आइए, हम भी इस ज्ञान को अपनाएँ – न केवल अपने लिए, बल्कि एक बेहतर समाज और संतुलित विश्व के लिए।