“वित्तीय प्रशासन व दिव्य नेतृत्व का अद्भुत उदाहरण प्रमुख स्वामी जी महाराज” -साधु अमृतवदन दास जी

11 सितंबर 2022 को पापुआ न्यू गिनी में 7.6 तीव्रता का भीषण भूकंप आया। इससे पूरा देश हिल गया था।

वहां अब थोड़ा अच्छा वातावरण है । लेकिन उससे पहले श्रीलंका में आर्थिक भूकंप आया और पूरा देश तबाह हो गया। आज तक वहां कुछ ठीक नहीं हुआ।

श्रीलंका की जारी तबाही उसकी आर्थिक नीतियों में निहित है। कई आर्थिक विशेषज्ञ इसके लिए राष्ट्रपति राजपक्षे की खराब आर्थिक शैली को जिम्मेदार ठहराते हैं। 2019 में उन्होंने लोगों को टैक्स में भारी रियायतें दीं. इस लिए वहां सरकारी राजस्व में भारी नुकसान हुआ और देश को सालाना 1.4 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। इसके अलावा अपने वोट बैंक को खुश रखने और नए वोट हासिल कर सत्ता प्राप्त करने के उनके तरीकों से देश की आर्थिक स्थिति खराब हो गई। इस प्रकार एक प्रमुख व्यक्ति के खराब आर्थिक व्यवहार के कारण पूरा देश दिवालिया और असहाय हो गया है। यह एक लापरवाह नेतृत्व द्वारा बनाई गई आपदा है। अर्थशास्त्रियों और आंकड़ों के मुताबिक भारत के कुछ राज्यों में एक नया आर्थिक संकट भी सामने आ रहा है. दिल्ली का कर्ज सात फीसदी बढ़ गया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022-2023 में पंजाब का कर्ज 2.83 लाख से बढ़कर 3.05 लाख करोड़ हो जाएगा। एक दिन या एक महीने या एक साल में कुछ भी नहीं होगा लेकिन अगर वित्तीय व्यवस्था ठीक से प्रबंधित नहीं हुई है, तो आज नहीं तो कल मुश्किलें होंगी। अर्थ दृष्टि अलग है और वित्तीय कौशल दोनों अलग-अलग भूमिकाएं हैं। एक के पास ऐसी व्यवस्था है जो केवल खुद को और दूसरों को लाभान्वित करती है और दूसरे की दूरदर्शिता है जो सभी को लाभान्वित करती है।

कॉन्सेरो ग्लोबल नामक कंपनी के शोध के अनुसार, The importance of good leadership may seem obvious, but what is less obvious is what makes a good leader. अच्छे नेतृत्व का महत्व स्पष्ट लग सकता है, लेकिन जो कम स्पष्ट है उससे एक अच्छा नेता बनाता है। फिर उन्होंने कहा कि सबसे प्रभावी नेताओं को अपने संगठन के वित्तीय स्वास्थ्य की एक परिष्कृत और गहन समझ है, और वे वित्तीय वास्तविकताओं के आधार पर निर्णय लेते हैं। प्रमुख स्वामी महाराज भी एक आर्थिक समज वाले नेता थे जो अर्थशास्त्र की मूल बातों के बारे में बहुत स्पष्ट थे।

Swaminarayan Mandir, Indore

वे 1200 मंदिरों के व्यवहार को देखते थे। इसमे इन सभी मंदिरों और संस्था के अस्पतालों, स्कूलों और अन्य स्थानों की आय और व्यय विवरण, बैंक विवरण आदि को अच्छी तरह से जानना भी आता है । उन्हें इस बात की पूरी जानकारी थी कि कहां कितना इस्तेमाल करना है, कहां खर्च में कटौती करनी है और कैसे पूरे संगठन को सही तरीके से चलाना है। उन्होंने अर्थ का संतुलन सावधानी से किया। कोई आर्थिक विवरण ऐसा नहीं होगा जिसके बारे में वे अच्छी तरह से अवगत नहीं हैं। उनके पास एक-एक पैसे की जानकारी हुआ करती थी। संगठन के लेखा विभाग में सेवारत भक्त सभी खातों को शत-प्रतिशत साफ रखते थे । आज भी सभी आंकड़े बहुत स्पष्ट और व्यवस्थित हैं। साथ ही विभाग के प्रभारी अनुभवी सेवकों को समय-समय पर बैंक स्टेटमेंट और बैलेंस आदि के कागजात स्वामीजी को भेजते थे। स्वामी जी इसका अध्ययन पूरी लगन से अपनी पैनी निगाहों से करते थे । कुछ नया हो तो तुरंत संबंधित व्यक्ति को फोन करके या मिल कर अधिक जानकारी मांगते थे । साथ ही साथ संस्था की 162 सामाजिक सेवा की गतिविधियों का लेखाजोखा भी रखते थे । कानून के अलावा वे अर्थशास्त्र और अर्थव्यवस्था के सभी मामलों को दिल से जानते थे। कोई भी उन्हें कभी भी उलझा सकता नहीं था।

एक बार एक मंदिर का हिसाब-किताब के पेपर्स स्वामी जी के पास आए । उन्होंने शांति से सभी कागज़ देखे और जांचा। यहां तक ​​कि छोटे से छोटे विवरण को भी पढ़ा गया और सभी आंकड़े दर्ज किए गए। उन्होंने इसमें कुछ अंतर देखकर वह मंदिर के प्रबंधक को फोन कर पूछा कि इस बार यात्री निवास के संख्या में इतना बदलाव क्यों है? पिछले साल की तुलना में इतना अंतर क्यों है? व्यवस्थापक ने कहा कि आप पिछले साल यहां नहीं आए थे। तो उनके आंकड़े इस प्रकार हैं। इस साल आप हमारे मंदिर में विद्यमान थे तो देश-विदेश से भक्त मंदिर में रुके थे । इस वजह से, संख्या और आंकड़े बदल गए हैं।

इस घटना को देखने वाले सभी स्वामीजी के प्रशासनिक कौशल से चकित थे! क्योंकि स्वामीजी को कई विभागों से आंकड़े मिलते थे। यह तथ्य कि मंदिर के एक छोटे से हिस्से की आंकड़ों में अंतर था, तो स्वामीजी को भी वह पता आ गया ।

दुनिया भर में फैले BAPS संगठन के कई स्थान हैं। प्रत्येक देश में धार्मिक संस्थानों से संबंधित दान और उसकी प्रथाओं के संबंध में अलग-अलग कानून हैं। स्वामीजी इस देश के सभी कानूनों से अवगत थे। शायद नहीं पता होता तो जानकारों से पूछकर उसकी पूरी जानकारी प्राप्त कर लेते थे और वित्त का प्रबंधन भी बहुत अच्छे से करते थे । स्वामीजी जानते हैं कि कहां और कितनी मदद की जरूरत है और कितनी मदद मांगी गई है और कहां और कितनी मदद दी जानी है। हरिभक्त सभी स्वामीजी की इस विशेषता को जानते थे, इसलिए जब उनको यदि व्यवसाय संबंधित कोई प्रश्न होता, तो वे तुरंत स्वामीजी के पास दौड़ते चले आते थे. वे शांति से उनके वित्तीय लेनदेन से संबंधित कठिन प्रश्नों को सुनते और उनका सटीक समाधान करते थे । इससे भक्तों का व्यवहार बहुत अच्छा रहता था। उनकों कभी भी देवाला निकालने का समय देखना पड़ता था । मूल रूप से यह कहना कि स्वामीजी वित्तीय प्रशासन में बहुत कुशल थे जो उनके दिव्य नेतृत्व का एक महत्वपूर्ण पहलू था।

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