उत्तर प्रदेश: लगातार बढ़ रहे हैं दुष्कर्म के मामले, लचर कानून व्यवस्था

अनुज हनुमत,

लखनऊ। यूपी की अखिलेश सरकार का कार्यकाल जल्द ही खत्म होने वाला है, लेकिन पिछले साढ़े चार वर्ष के अपने कार्यकाल में अखिलेश सरकार ने लचर होती कानून व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए कोई ठोस कद नहीं उठाये। इसीलिए इस समय यूपी में अपराधियों को कानून और प्रशासन से कोई डर नहीं नजर आ रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यूपी में पिछले एक वर्ष में दुष्कर्म की घटनाओं में काफी इजाफा हुआ है।

बुलंदशहर की घटना के बाद महिलाओं के अपराध का शिकार होने से संबंधित आंकड़ों की पड़ताल की जा रही है और उन्‍हें रोकने में नाकाम पुलिस की सजगता को भी परखा जा रहा है। राज्य अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में पिछले एक साल (2014 से 2015) में दुष्कर्म के मामलों में 161 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उत्तर प्रदेश राज्य अपराध ब्यूरो की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2014 में उप्र में दुष्कर्म की 3,467 घटनाएं हुई थीं, जो 2015 में बढ़कर 9,075 हो गईं।

अपराधियों के सामने बेबस नज़र आ रही यूपी पुलिस-

उत्तर प्रदेश सरकार भी प्रदेश में लगातार बढ़ रही इन घटनाओं को रोकने में पूरी तरह से विफल साबित हुई है। यूपी पुलिस की बात करें तो वह अपराधियों के सामने बेबस सी नजर आ रही है। ये आंकड़े आम आदमी में भय पैदा कर रहे हैं। देखने से तो ये महज कुछ आंकड़े ही लग रहे हैं, लेकिन तस्वीर इससे भी भयावह है। यदि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो 2014 की रिपोर्ट्स से मिले राष्ट्रीय आंकड़ों की उत्तर प्रदेश के आंकड़ों से तुलना करें, तो पता चलेगा कि यूपी में अपराध का औसत देशभर के अपराध के औसत से अधिक है। यूपी में होने वाले अपराध देश के अपराध से औसतन दो गुना अधिक हैं।

देश में जहां वर्ष 2010 से 2014 के बीच रेप के मामलों की संख्या 22,172 से बढक़र 36 हजार 735 हो गई। वहीं यूपी में रेप के मामलों की संख्या में इसी दौरान 121 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। यानी इस दौरान रेप के मामलों की संख्या 1,563 से बढक़र 3,467 हो गई। आज उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी का आलम है कि 5 करोड़ से ज्यादा बेरोजगार युवा ठोकर खा रहे हैं। और ये सब तब है, जबकि राज्य में लगभग 5 लाख सरकारी पद खाली पड़े हैं। बहरहाल जल्दी ही यूपी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में लचर दिख रही कानून व्यवस्था अन्य सियासी रणनीतिकारों के लिए एक अचूक चुनावी ब्रह्मास्त्र साबित हो सकता है।

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