सौम्या केसरवानी । Navpravah.com
इसरो ने आज श्रीहरिकोटा से 2230 किलो के साउथ एशिया सैटेलाइट को लॉन्च कर दिया है। इस सैटेलाइट को जीएसएलवी-एफ09 रॉकेट से भेजा गया। इससे साउथ एशिया के देशों की कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी कोे फायदा मिलने वाला है, इस प्रोजेक्ट पर लगभग 450 करोड़ रुपए का खर्च हुआ है।
इस मिशन में अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, मालदीव और श्रीलंका शामिल है, ये देश इसरो को 12 साल में 96 करोड़ रुपए देंगे। साउथ एशियाई इलाके में प्राकृतिक आपदाएं आने की ज्यादा संभावना बताई गयी हैं इसलिए ऐसे वक्त में ये सैटेलाइट इन देशों के बीच कम्युनिकेशन में मददगार साबित होगा। साथ ही, सैटेलाइट से इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, टीवी ब्रॉडकास्टिंग, डिजास्टर मैनेजमेंट, टेली मेडिसन और टेली एजुकेशन को बढ़ावा मिलेगा। इसमें शामिल देश 36-54 मेगाहर्ट्ज कैपिसिटी का ट्रांसपोंडर भेज सकते हैं, इसके इस्तेमाल से आंतरिक मसलों को हल भी किया जा सकता है।
इस सैटेलाइट का नाम पहले सार्क सैटेलाइट रखा गया था पर पाकिस्तान के बाहर होने के बाद इसका नाम साउथ ईस्ट सैटेलाइट कर दिया गया। भारत के इस फैसले से पड़ोसी देशों को काफी हद तक आर्थिक मदद मिलेगी और साथ ही कम्युनिकेशन में भी आसानी होगी।
इसरो लॉन्चिंग के लिए पहली बार इलेक्ट्रिक प्रपुल्शन सिस्टम का इस्तेमाल कर रहा है। इससे 25% तक फ्यूल बचेगा। सैटेलाइट महज 80 किलो केमिकल फ्यूल से एक दशक तक पृथ्वी की ऑर्बिट में चक्कर लगाएगा, सामान्य तौर पर 2000-2500 किलो का सैटेलाइट भेजने में 200 से 300 किलो केमिकल फ्यूल लगता है