सारे जहाँ से अच्छा..

 आनंद रूप द्विवेदी,

“नक़्शा ले कर हाथ में बच्चा है हैरान

कैसे दीमक खा गई उस का हिन्दोस्तान.”

     -निदा फाज़ली

समय कितना बलवान होता है! अब देखिये, उत्ताल समुद्र से लेकर कज्जाकों के दरवाज़े तक पसरा हिन्दोस्तां सियासत और सरहदों कि भेंट चढ़ गया।महत्त्वाकांक्षी ज़िन्ना के गुरूर ने देश को टुकड़ों में बांट दिया, नतीजन आज भी पाकिस्तान, भारत से अलग होकर सुकून कि सांस नहीं ले पाया। खैर..रात गई, बात गई।

भारत दुनिया का वृहत्तम गणतंत्र है,जहाँ केवल मानव मात्र की बात हो सकती है। भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक “संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणतंत्र” घोषित किया गया है। प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द को 1976 में बयालीसवें संशोधन अधिनियम द्वारा डाला गया था। यह सभी धर्मों के प्रति सहनशीलता और समान व्यवहार को बढ़ावा देता है। राज्य (भारत) का कोई धर्म नहीं है लेकिन सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखना इसकी विशेषता है।  ऐसे में नागरिकों पर ये जिम्मेदारी है कि वो किसी भी धर्म को हेय दृष्टि से न देखें बल्कि अन्य धर्मों का सम्मान करते हुए अपने रास्ते पर चलें।  बात बड़ी अच्छी सी जान पड़ती है लेकिन ये तरीका है..तरीका जीवन जीने का। तरीका सभ्यता की अविरल धारा में बहते रहने का। धारा से उलट बहने वाले अक्सर हाशिये पर सिमट जाते हैं और असभ्यता से चिपक कर रह जाते हैं। धर्म लोगों के लिए है, लोग धर्म के लिए नहीं। किसी स्त्री पर होते अत्याचारों को अगर हम धर्म कि चादर से ढंक देते हैं तो हम सबसे बड़े विधर्मी हैं। आज हम धर्म या मजहब की आड़ में जो करेंगे वो कल के लिए मिसाल बनेगा । हमारी पीढ़ियाँ असभ्यता ओर बढ़ेंगी।

दरअसल हमें “धर्म” शब्द के सही अर्थ से दूर रखा जाता रहा है। धर्म किसी पूजा पद्धति, इबादत आदि तक सीमित शब्द नहीं है, बल्कि इसका एक व्यापक क्षेत्र है। धर्म, जिसे हम कर्तव्य कह सकते हैं..कर्तव्य सामाजिक संतुलन और अनुशासन को बनाए रखने का। परस्पर सौहार्द्र और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए जीवन जीने कि कला है धर्म। विद्वान इसकी और भी क्लिष्ट और शुद्धतम व्याख्या कर सकते हैं। फिलहाल, देश काल और वातावरण के अनुसार धर्म एकात्मता की मांग कर रहा है। भारत में हर नागरिक का धर्म केवल भारतीय होना चाहिए। हिन्दू-मुस्लिम वगैरह सब व्यक्तिगत श्रद्धा से जुड़े शब्द हैं, जिन्हें राष्ट्रीय एकात्मता के रास्ते में ला खड़ा करना महज़  असंवेदनशीलता है ।

देश में सेना इस बात का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। सैनिक का सर्वोपरि धर्म राष्ट्रीय सुरक्षा है। सीमा पर बरसती गोलियों को न कोई हिन्दू झेलता है, न कोई मुसलमान, वहां केवल भारतीय होता है। सैनिक अपना फ़र्ज़ मुस्तैदी से निभाते हैं लेकिन हम आम नागरिक ऐसा नहीं करते। हमें उन सैनिकों को भी अपमानित करने में संकोच नहीं होता, जिनकी वजह से हमारे घरों में दीवाली और ईद मनाई जाती है। किसी को अपनी फिल्म का डूबता हुआ पैसा ज्यादा प्यारा है, तो वो विषम परिस्थितियों में दुश्मन से जूझ रहे सैनिकों के मनोबल को बढ़ाने कि बजाय अपने पैसों के लिए गाल बजाता है । कुछ तो इतने महान कलाकार हैं कि सैनिकों की शहादत पर ही सवालिया निशान खड़ा कर देते हैं।

नेताओं की बात करें तो सत्ता कि हवस इन्हें शत्रु देश का चहेता बना सकती है। क्या कोई भी इंसान चंद रुपयों कि तनख्वाह के लिए खुद को गोली मरवाने या बम से अपने परखच्चे उड़वाने को तैयार हो सकता है ? क्या ये बयानवीर जो आये दिन अपने ज्ञान का अनर्गल पाखण्ड पसारते हैं, पैसे लेकर प्राण दे सकते हैं? नहीं..क्योंकि ये किसी आम इंसान के बस कि बात नहीं। ये किसी पैसे के मोहताज़ इंसान के बस की बात नहीं, बल्कि ये देश के प्रति सच्चे समर्पण की भावना से भरे हुए हृदयों का जज़्बा है। ऐसे हृदय जिसमें एक तरफ अपने घर परिवार के लिए स्नेह और उनके भविष्य की चिंता है, तो दूसरी ओर सवा सौ करोड़ देशवासियों की।

भूतपूर्व अमरीकन एयर विंग सैनिक और रेडियो पर्सनलटी  एड्रियन क्रोनौर (Adrian Cronauer) कहते हैं, “Our flag is not just one of many political points of view. Rather, the flag is a symbol of our national unity.”

जरूरी यह नहीं कि हम अपने फेसबुक में क्या प्रोफाइल फोटो लगाते हैं, उसमें तिरंगा है कि नहीं…यह बिलकुल जरूरी नहीं। जरूरी है विषम परिस्थितियों में एक हो जाना। देश मतलब सिर्फ देश, क्योंकि जब सैनिक सरहद पर हमारे लिए मरने मारने को खड़ा हो तब ट्विटर पर प्रवचन नहीं देते और अगर देते हैं तो सिर्फ उस बहादुर सैनिक का हौसला बढ़ाने के लिए। वो सैनिक अपने बीवी बच्चे माँ बाप परिवार घर द्वार अपने लोगों को छोड़कर पूरे हिन्दुस्तान को अपना मान सकता है, अपनी जान दे सकता है, तो क्या हम कुछ समय के लिए अपने फ़िल्मी क्राइम स्टोरी जन्य ज्ञान का पाखण्ड नियंत्रित नहीं कर सकते ? अगर नहीं कर सकते तो हमें सभ्य नागरिक कहलाये जाने का कोई अधिकार नहीं है। इस देश का सच्चा नागरिक और हकदार वही है जिसे इसकी चिंता अपने प्राणों से भी अधिक है, वही सैनिक जो ये सुनिश्चित करता है कि “भारत माता की जय” हमेशा होती रहे।

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