प्रिय प्रधानमन्त्रीजी ,
हमारा पड़ोसी देश ‘आतंकवाद’ का रास्ता अपनाकर लगातार हमारे जवानों को मौत की नींद सुला रहा है और हमारे देश के स्वाभिमान का लगातार बलात्कार करने पर अमादा है। ऐसे वक्त में जब आपका व्यक्तित्व पूरे विश्व को शांति का एक नया सन्देश दे रहा है, अपने ही देश में अशांति क्यों ? सवा सौ करोड़ देश की जनता को आप पर विश्वास है कि पड़ोसी मुल्क के घृणित कार्यों पर आप लगाम लगाएंगे। लेकिन एक बात समझ नहीं आती कि ऐसे समय में जब देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को एक मंच पर आकर आतंकवाद से निपटने के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए, ऐसी स्थिति में भी हमारे देश के अधिकांश नेताओं की ‘मर्दानगी’ सियासी कुर्सी के लालच में चूड़ियाँ पहनकर बैठ जाती है।
125 करोड़ भारतीय हैं, ‘हम’ चाहे तो हमारी एक हुंकार से पड़ोसी देश में सुनामी आ सकती है, लेकिन हमारे यहाँ की आपसी राजनीतिक नूराकुश्ती के सियासी बुखार ने विश्व के सबसे मजबूत ‘भारतीय लोकतंत्र’ को भी बीमार कर रखा है। सर, तमाम सोशल साइट्स में अधिकांश लोगों द्वारा आपको युद्ध की सलाह दी जा रही है, लेकिन ऐसे मसले पर युद्ध ही अंतिम उपाय नही! सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि पिछले 50 सालों से ‘आतंकवाद’ पर जनप्रतिनिधि कोई ठोस हल क्यों नही ढूंढ पाये ? सर आपको भी पता है कि पहले आजादी के लिए हजारों-लाखों शहीद हुए और अब हम अपने ही देश शांति के लिए पड़ोसी मुल्क से भींख मांग रहे हैं। ऐसा कहाँ तक न्यायोचित है ?
सर एक कड़वा सच लिख रहा हूँ शायद अधिकांश जनप्रतिनिधियों को पढ़कर अच्छा न लगे, लेकिन आज ऐसी स्थिति में लिखना पड़ रहा है। देश की जनता द्वारा 1947 से लेकर अब तक चुने गए अधिकांश जनप्रतिनिधियों के ऐशो-आराम में तो कभी कोई कमी दिखी, फिर भी इस आतंकवाद को नासूर क्यों बनने दिया गया ? इसका कोई ठोस हल क्यों नहीं निकला। टैक्स भी हमारा और खून भी हमारा।
सर आज भी देश की जनता को आप पर पूर्ण विश्वास है कि आप इस ना’पाक पड़ोसी के घृणित कार्यों का मुंहतोड़ जवाब देंगे। हमें भी पता है कि हमारा देश विकास के रास्ते पर दुगुनी रफ़्तार से दौड़ रहा है और अन्य विकसित और विकासशील देश नहीं चाहते कि हम उनसे आगे निकल पाएं, इसीलिए हमारे देश में बीते कई दशक से प्रायोजित आतंकवाद फैलाया जा रहा है। इस समय पूरे संयम से काम लेना की आवश्यकता है।
सर मैंने बचपन में पढ़ा था कि देश की आजादी प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं होता। हमें उसकी स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए सतत जागरूकता की आवश्यकता होती है। देश की स्वतंत्रता और अखण्डता को कायम रखने के लिए हमें अपने साधनों से सुरक्षा-व्यवस्था को गठित करना पड़ता है, ताकि हम किसी संकट का सामना करने के लिए सदैव प्रस्तुत रहें। जो देश अपनी रक्षा करने में स्वयं समर्थ नहीं होते, उनकी आजादी अधिक दिन तक नहीं टिक सकती। अत: हर लोकतांत्रिक देश के लिए अपनी सुरक्षा व्यवस्था को भली-भाँति कायम रखना अनिवार्य है।
भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन के बाद भारत स्वतंत्र हुआ। प्रारंभ से ही पड़ोसी राष्ट्र भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करता रहा है। भारत को 1962 में चीन के हमले तथा 1965 और 1971 में पाकिस्तानी हमलों का मुकाबला करना पड़ा है। हमारी अच्छी सुरक्षा-व्यवस्था के कारण ही हम अपने देश को बचा पाये हैं। आज पाकिस्तान नए-नए किस्म के आधुनिक हथियारों को जमा कर रहा है। उसने परमाणु बम बनाने के साधन तक जुटा लिए हैं और अपने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के स्थान पर वह हथियारों पर ध्यान लगा रहा है। जाहिर है कि कभी भी हमारे देश को इनका सामना करना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में देश की सुरक्षा व्यवस्था को और भी मजबूत बनाने की बड़ी आवश्यकता है, ताकि हम हर संकट का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सकें और इसके लिए आवश्यक है कि सभी राजनीतिक पार्टी अपने आपसी मतभेद भुलाकर एक मंच पर आये और आतंकवाद के खिलाफ इस कठिन लड़ाई में जनता का साथ दें, जिससे देश का स्वाभिमान बच सके।
सर, मैं भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के ‘अहिंसा के मार्ग’ को मानने वाला हूँ और जानता हूँ कि अहिंसा से शांति स्थापित की जा सकती है, लेकिन जब खुद अहिंसा का मार्ग ही खतरे पर हो तो फिर शांति केवल अस्त्र-शस्त्र से लाई जा सकती है । बार बार खून के आंसू रोने से अच्छा है, कोई ठोस निर्णय लिया जाये।
भारत माता के स्वाभिमान को बचाने में एक बार फिर उरी में दर्जनों भारतीय सपूतों की जान चली गई। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। सर (प्रधानमन्त्री जी), आपसे निवेदन है कि पाक को कड़ा जबाव मिलना चाहिए, जिससे देश के जाबांजों का बलिदान निर्रथक न होने पाये और हर माँ खुशी खुशी अपने बच्चों को तिलक लगाकर देश की सेवा की खातिर सरहद पर भेज सके।
जय हिंद
अनुज हनुमत।