अनुज हनुमत,
आखिरकार केंद्रीय कैबिनेट ने बड़ा फैसला लेते हुए उस व्यापक बदलाव के प्रस्ताव पर आज मुहर लगा दी है, जिसमें रेल बजट को आम बजट में मिलाने तथा योजना-व्यय और गैर योजना-व्यय में भेद को समाप्त करने की बात कही गई थी। गौरतलब है कि रेल मंत्री सुरेश प्रभु पहले ही बजट के विलय के प्रस्ताव को अपनी सहमति प्रदान कर चुके हैं। आज कैबिनेट की बैठक में सुरेश प्रभु और रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ए के मित्तल भी शामिल थे।
आपको बता दें कि इस ऐतिहासिक फैसले के बाद रेल बजट को अलग से पेश करने की 92 साल पुरानी परंपरा खत्म हो गई है, जोकि अपने आप में खास निर्णय है ।
सबसे खास बात यह है कि रेल मंत्रालय किराया और माल भाड़ा तय करने के अधिकार को अपने पास रखना चाह रहा है और रेल मंत्रालय बाजार से पैसा उठाने के अधिकार को भी वित्त मंत्रालय को नहीं देना चाहता,क्योंकि रेल मंत्रालय की सबसे बड़ी चिंता सातवें वेतन आयोग का बोझ और माल भाड़े से मिल रहे राजस्व में तेज कमी है।
कुलमिलाकर अगर सूत्रों की मानें तो, रेल मंत्रालय को अब वित्त मंत्रालय के सामने कुल बजटीय आवंटन के लिए सरकार के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा और रेल किराया बढ़ाने के अधिकार को लेकर वित्त और रेल मंत्रालय सहमत है कि आने वाले दिनों में किराये में कमी और वृद्धि के लिए रेल किराया प्राधिकरण बनाया जायेगा।
आपको बता दे कि रेलवे के कर्मचारियों को 2016-17 दौरान 70 हजार करोड़ रुपये, बिजली के लिए 23 हजार करोड़ रुपये व सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन मद में 45 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है और सरकार को लाभांश के तौर पर देने के लिए रेलवे को करीब 5500 करोड़ रुपये के राजस्व की आवश्यकता है। इस ऐतिहासिक फैसले के बाद जानकारों की मानें तो अब रेलवे की स्थिति में और भी सुधार होगा।