अनुज हनुमत। नवप्रवाह.कॉम
लखनऊ। इधर चुनाव आयोग ने सूबे में होने वाले विधानसभा चुनावों की तिथियां घोषित की और उधर तमाम सियासी पार्टियों ने एकमुश्त जातिगत वोटों को हासिल करने के लिए अपने अपने पेंच कसने भी शुरू कर दिये हैं। सबसे बड़ी लड़ाई समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच ‘मुस्लिमों’ के वोट को लेकर है। यूपी में वैसे भी देखा गया है कि चुनावों में जातिगत राजनीति ज्यादा हावी रहती है, ऐसे में ये वोट पार्टियों के लिए सत्ता तक पहुंचने की संजीवनी साबित होते हैं।
अगर बसपा की बात करें तो पिछले विधानसभा चुनावों में पार्टी ने ब्राह्मण वोटों पर निशाना साधते हुए पूरे बहुमत के साथ सत्ता तक प्राप्त की थी और इस बार पार्टी मुस्लिम वोट हासिल करना चाहती है। शायद इसीलिए पार्टी आलाकमान ने 97 मुश्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। अब भला सपा कैसे पीछे रहने वाली थी। वैसे अगर पार्टी के पिछले चुनावी प्रदर्शन की बात करें तो पार्टी को अच्छे खासे मुस्लिम वोट मिले थे, जिसके नेता के रूप में आजम खान को कैबिनेट मंत्री तक बनाया गया। कुल मिलाकर जानकारों के मुताबिक और पार्टियों की तुलना में सपा की मुस्लिम वोटों पर अच्छी पकड़ है। पार्टी ने इस इस चुनाव में 84 मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है।
फिलहाल कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी घोषित नहीं किये हैं, लेकिन कांग्रेस भी मुस्लिम वोटबैंक पर अपना सीधा निशाना साधने में कोई कसर नही छोड़ना चाहेगी। इन तीन दलों के अलावा हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन (AIMIM) और डॉ. अय्यूब के नेतृत्व वाली पीस पार्टी भी इस चुनाव में सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम वोटों पर ही नजर हैं।
इन सभी पार्टियों ने मुस्लिम वोटरों को लुभाने के उद्देश्य से कई रैलियां की। अब ये तो आने वाला चुनावी परिणाम ही बताएगा कि मुस्लिम वोटों को हासिल करने में कौन सा दल कामयाब हो पायेगा! जानकारों की मानें तो इस चुनाव में कुछ चौंकाने वाले परिणाम भी सामने आ सकते हैं, क्योंकि जनता धीरे धीरे जागरूक हो रही है और वो जातिगत राजनीति की तुलना में विकास की राजनीति को ज्यादा तवज्जों दे सकते हैं।