अनुज हनुमत,
पाकिस्तान को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ वर्ग से अलग करने को लेकर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बैठक बुलाई गई थी, जिसे अगले हफ्ते तक के लिए टाल दिया गया है। हालांकि अभी तक इसका कोई उचित कारण नहीं बताया गया है।
गौरतलब है कि उरी हमले के बाद से ही देश में लगातार पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई की मांग हो रही है। इसी क्रम में सरकार ने सिंधु समझौते को तो नहीं तोड़ा, लेकिन वह उसे दिया गया मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस छीन सकती है। जानकारों की मानें तो इस फैसले से पाकिस्तान की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर बुरा असर पड़ेगा।
आपको बता दें कि भारत ने 1996 में पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दिया था। वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन और इंटरनेशनल ट्रेड नियमों को लेकर एमएफए स्टेट्स दिया जाता है। एमएफएन स्टेट्स दिए जाने पर दूसरे देश इस बात को लेकर आश्वस्त रहते हैं कि उसे व्यापार में नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। इसकी वजह से पाकिस्तान को अधिक आयात कोटा और कम ट्रेड टैरिफ मिलता है। लेकिन, बदले में पाकिस्तान ने आश्वासन के बावजूद भारत को एमएफएन दर्जा नहीं दिया।
उधर भारत की कोशिशों के चलते सार्क देशों के बीच पाकिस्तान पहले ही अकेला पड़ चुका है। भारत के साथ साथ अफगानिस्तान, भूटान, और बांग्लादेश ने नेपाल को सम्मेलन के बहिष्कार की खबर दे दी है।
सबसे खास बात यह है कि इस वक़्त सार्क देशों की अध्यक्षता कर रहे नेपाल ने अपने बयान में माना है कि उसे बहिष्कार की सूचना मिल चुकी है, फिर भी औपचारिक तौर पर सभी देशों से गुजारिश की है कि सम्मेलन लायक माहौल बनाया जाए।
आपको बता दें कि सार्क सम्मेलन इस्लामाबाद में 9 और 10 नवंबर को होने वाला था। कुल मिलाकर अगर भारत, पाकिस्तान का मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा समाप्त कर देता है, तो निःसन्देह यह निर्णय पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ा सकता है।