प्रमुख संवाददाता
केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता यानी की यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष में एक बड़ा कदम उठाया है। सरकार ने लॉ कमीशन से समान नागरिक संहिता लागू करने के बारे में पड़ताल करने को कहा है। लॉ मिनिस्ट्री ने भी लॉ कमीशन से इस फैसले से जुड़े दस्तावेज की मांग की है। यूनिफॉर्म सिविल कोड, जिस पर अबतक राजनीतिक दलों में आम सहमति नहीं बन पाई, उस पर अब मौजूदा सरकार एक मत बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। आजादी के इतने सालों के बाद ऐसा पहली बार हुआ जब किसी सरकार ने लॉ कमीशन से रिपोर्ट तलब की है।
समान नागरिक संहिता का मतलब देश के हर धर्म और हर संप्रदाय के पर्सलन लॉ एक समान होंगे। पर्सनल लॉ के तहत विवाह, तलाक, प्रॉपर्टी और वसीयत जैसे मामले आते हैं। फिलहाल देश में हिंदू और मुसलमान के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं।
भारतीय जनता पार्टी हमेशा से इस कानून के पक्ष में रही है जबकि कांग्रेस इसका विरोध करती रही है। समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर सबसे बड़ा विवाद 1985 में शाह बानू केस से हआ था। सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानू के पूर्व पति को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। इतना ही नहीं कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पर्सनल लॉ में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होना चाहिए। लेकिन राजीव गांधी की सरकार ने संसद में विवादास्पद कानून पेश कर दिया जिसके बाद से यूनिफॉर्म सिविल कोड भारत की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बना।
अब मोदी सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड पर फैसले का मन बना रही है। आपको बता दें कि लॉ कमीशन की अगुवाई सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बलबीर सिंह चौहान कर रहे हैं।