सुधांशु झा | Navpravah.com
गौरी लंकेश की हत्या दुखद है । वे पत्रकार थीं अपराधी नहीं । उनकी कुछ वैचारिक प्रतिबद्धताएं थीं। और ये तय है कि वे ईमानदार पत्रकार नहीं थीं क्योंकि उनकी पत्रकारिता एकरेखीय थी । तब भी, किसी मनुष्य को उसकी वैचारिकी के लिए मारा नहीं जा सकता । यह जघन्य अपराध है । लेकिन पहले ये जानना सबसे महत्वपूर्ण है कि उन्हें मारा किसने । कर्नाटक पुलिस मामले की जांच कर रही है, वो अब तक चुप है, उसने कुछ इशारा नहीं किया है । न दक्षिणपंथ, न वामपंथ, न मध्यमार्गी..। लेकिन कुछ पत्रकारों ने देश की सर्वोच्च अदालत बनाकर फैसला सुना दिया है । हो सकता है, कुछ देर में गुनहगारों के नाम भी सार्वजनिक कर दिये जाएं । जबकि पुलिस का कहना है कि आदरणीया लंकेश जी ने दक्षिणपंथी समूहों की धमकियों से डर कर कभी सुरक्षा नहीं मांगी । यानी उन्हें ये सहज ही आभास था कि दक्षिणपंथियों से उन्हें जान का खतरा नहीं है । वैसे भी किसी दक्षिणपंथी से जान को खतरा नहीं होता, एक आध अपवाद सभी जगह होते हैं ।
वामपंथ की असहिष्णुता और उस विचारधारा के हिसात्मक गुणधर्म के मुकाबले तो दक्षिणपंथी अबोध शिशु हैं । कहां साध पाएंगे वैसी क्रूरता, जो केरल में राजेश जैसों की हत्या के दौरान की जाती है !
लंकेश के आखिरी ट्वीट से ये भी साफ हो जाता है कि अपने प्रिय कॉमरेडों से उनका कलह चल रहा था । पुलिस ने उनके अपने ही प्रिय भाई से विवाद की पुष्टि भी कर दी है । केस मुकदमा सब हो चुका था ।तो फिर फैसला किस तरह से सुना दिया ? क्या ईश्वरीय वाणी सुनी थी? या लंकेश जी ने बताया था कि इतने बजे मुझे दक्षिणपंथी लोग मारने वाले हैं ?
ऐसी ही जल्दबाजी वो कलबुर्गी, पानसारे और रोहित वेमुला मामले में दिखलाते रहे हैं । रोहित वेमूला का झूठ सामने आ चुका है । पर निर्लज्ज हैं इसलिए उन्हें लाज भी नहीं आती । कलबुर्गी में दक्षिणपंथी हत्यारे को तलाशने में सरकारी मशीनरी के कलपुर्जे ढीले पड़ गए हैं जबकि सरकार उनकी, सारी मशीनरी उनकी । जबकि सत्य तो यह है कि उन्हें कवि वासव के विरुद्ध लिखने के लिए लिंगायत समुदाय के लोगों ने मारा और सिद्धारमैया लिंगायतों के बहुमूल्य वोट न गंवाने के लिए चुप हैं । पानसारे केस का भी यही हाल है । बाकी पत्रकारों की हत्या का क्या है? वो तो सीवान में कभी भी मार दिये जाते हैं, उत्तरप्रदेश में जला दिये जाते हैं बंगाल में चूं चपड़ करने की आजादी नहीं है । लेकिन माननीय मानवतावादी वामपंथियों और सेक्यूलरों के कानों मे जूं तक नहीं रेगती ।
फिलहाल कुछ पत्रकार जो अभी किसी चुटकुले पर ठठा कर हंस रहे थे अब लंकेश के दुखलोक में विचरते हुए उन पर शोकगीत लिख रहे हैं । उन्हें गहरा दुख पहुंचा है !
(यह आलेख सुधांशु झा जी के फेसबुक वाल से साभार उद्धृत है.)