लेखक, कॉलमिस्ट, पॉलिटिकल साइंटिस्ट, और विचारक, लखनऊ के रूद्र प्रताप दुबे बेहद संज़ीदा इंसान हैं। दयाशंकर सिंह की अशोभनीय टिप्पणी से आहत रूद्र बसपा के उन कार्यकर्ताओं से भी दुखी हैं, जिन्होंने राजनीतिक भड़ास को शांत करने का माध्यम किसी की बहन-बेटी को चुना। मायावती के नाम इन्होंने एक खुला पत्र लिखा है, जिसे हम सभी को जरूर पढ़ना चाहिए:
“आदरणीया बहन मायावती जी
नमस्कार
आपके विषय में जो भी भाजपा के नेता ने बोला, वो निंदनीय था और इसीलिए मीडिया, सदन और आम जन ने उसकी एक स्वर में निंदा की। हालाँकि सदन में इसी चर्चा में शामिल होने पर आपने वही शब्द दयाशंकर की मां, बहन और बेटी पर भी थोप दिया। लेकिन उसकी निंदा नाम मात्र की हुई क्योंकि सबको ये लगा कि आप आक्रोशित थीं और ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि आपके पास आक्रोशित होने के लिए वजह, मंच, संगठन, ओहदा और मुफीद समय सब था।
लेकिन शाम होते होते जब उस नेता को पद से हटा कर पार्टी से भी निकाल दिया गया, तब तो आपको एक बड़े नेता वाला बड़प्पन दिखाना ही चाहिए था।
लेकिन ‘महिला की गरिमा पर चोट पहुंची है’ जैसी बातों के पीछे जिस तरीके से कल पूरे देश में स्त्री विमर्श, स्त्री सशक्तिकरण, शिष्टता और सामाजिक मर्यादाओं को तार-तार किया गया, उसकी सार्वजनिक आलोचना होनी ही चाहिए।
तहज़ीब के शहर का एक चौराहा कल सरेआम किसी की पत्नी और बेटी की माँग कर रहा था और ‘एक नारी के अपमान’ के बदले लग रहे नारे की आवाजों से हर आती-जाती औरतें अपमानित हो रही थीं। बाबा साहब अम्बेडकर जी की मूर्ति के सामने जो आग कल आपके कार्यकर्ताओं ने लगायी थी ना, लगता है उसमें ही किसी ने सामाजिक मर्यादाओं/वर्जनाओं की भी आहुति दे दी थी!
वो देश जहाँ पर पब्लिक प्लेस में धूम्रपान करना तक मना है, उस देश में पब्लिक स्पेस में ही कल किसी फिल्म की शूटिंग जैसा एक बिल्कुल असली सीन चल रहा था जहाँ राजनीतिक रूप से लगभग मृतपाय हो चुके एक व्यक्ति की माँ, बहन, बेटी, डीएनए, जीभ सबको गाली दी जा रही थी।
अगर आपके नेता इस प्रदर्शन की अगुवाई ना कर रहे होते तो मैं इस भीड़ को ठीक वैसे ही इग्नोर करता जैसे कुछ दिनों पहले ‘नीम का पत्ता कडुआ है, प्रधानमंत्री … है’ वाली भीड़ को किया था। लेकिन नही, यहाँ पर आपके जिम्मेदार लोग थे जो कैमरों पर उस व्यक्ति को कुत्ता बोल रहे थे।
कहते हैं हवा अपने अंदर ध्वनियों को समेटे रहती है, आशा करता हूँ रात के सन्नाटे में वो नारे उठकर बाबा साहब की मूर्ति की कानों तक ना चले गए हों। ना तो आज पूरे दिन हुई बारिशों को मैं उसी मूर्ति के भावनाओं से उठे ज्वार के हवाले ही करूँगा।
बहन जी, विरोध पुरुषों का करना हो तो भी निशाने पर हमेशा उस पक्ष की स्त्रियां ही क्यों होती हैं। आज तो ऐसा लग रहा है कि दलित वास्तव में कोई जाति नही बल्कि लिंग है और वो है स्त्रीलिंग।
बहन जी, एक असंस्कारी और बदजबान व्यक्ति जब बिना किसी रैली, पार्टी मीटिंग और भीड़ के, सिर्फ टीवी कैमरों के माइक पर आपकी नियाहत ही गलत तुलना कर गया तो आप उसकी पार्टी की संस्कृति पर सवाल उठाने लगीं लेकिन जब दूसरी ओर आपके जिम्मेदार नेता माइक पर, भीड़ जोड़कर और एक सुनियोजित प्रदर्शन में उस व्यक्ति की पत्नी और बेटी माँग रहे थे और फिर भी आपकी पार्टी की संस्कृति पर कहीं बहस नही !
ये तो गलत है बहन जी।
बहन जी, दयाशंकर की बेटी, माँ, पत्नी उसी प्रदेश में रहते हैं, जिस प्रदेश की आप चार बार मुख्यमंत्री रही हैं। मुख्यमंत्री तो प्रदेश के परिवार का मुखिया होता है फिर भी आप एक गलती को भूलने के लिए तैयार नहीं। उस व्यक्ति ने माफ़ी मांगी, पार्टी छूटी, जलालत झेली, पुलिस केस हो गया अब और क्या !
लेकिन उनकी मां, पत्नी, बेटी के पास ना तो संगठन है, ना ओहदा, ना सदन और ना ही उनको गाली देकर उनसे कोई माफ़ी मांगने वाला ! अब वो क्या करें बस ज़िन्दगी भर इस याद के सहारे जियें की 2016 की जुलाई के किसी दिन उनके लिए इसी शहर के बीच चौराहे अपमानजनक नारे लगे थे।
दयाशंकर जी को लाखों उलाहना देते हुए भी मैं शहर के एक नागरिक के तौर पर उनकी माँ, पत्नी और बेटी से सार्वजनिक मंच से माफ़ी मांगता हूँ और ये मानता हूँ कि उन्होंने जो भी कहा वो गलत था, गलत था, गलत था। लेकिन उनके परिवार को भी जो कुछ कहा गया वो गलत था, गलत था, गलत था।
आपके संघर्षों का प्रशंसक
– रूद्र प्रताप दुबे”