“बाबूमोशाय बन्दूकबाज” के राइटर ग़ालिब असद से नवप्रवाह की खास बातचीत.

कोमल झा| Navpravah.com

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी स्टारर  ‘बाबूमोशाय बन्दूकबाज़’, सेंसर बोर्ड द्वारा 48 कट्स लगाए जाने के कारण विवादों में रही है. सेंसर बोर्ड के इस रवैये से बॉलीवुड में काफ़ी नाराज़गी है। फ़िल्म के विषय में लेखक ग़ालिब असद भोपाली से Navpravah.com  की लम्बी चर्चा हुई.

ये रहे पूरी चर्चा के प्रमुख अंश:

सेंसर बोर्ड ने आपकी फिल्म पर लगभग 48 कट लगाए हैं. क्या आपको लगता है कि सेंसर बोर्ड अपनी मनमानी कर रहा है ?

ग़ालिब असद भोपाली- “पता नहीं सेंसर बोर्ड के मेंबर्स पूरी फिल्म देखते भी हैं या नहीं…उन्होंने अपनी एक लिस्ट तैयार कर ली है, और बिना किसी फिल्म की थीम को समझे, अगर उन शब्दों का प्रयोग हो रहा हो, जो उनकी फेहरिस्त में शामिल नहीं है तो मेंबर्स उस पर आपत्ति जताने लगते हैं. फिर जब वह हमें बुलाते हैं, तो हमें ऐसा लगता है कि हम किसी स्कूल के बच्चों की तरह हैं और हमने कोई गलती कर दी है. हेडमास्टर की तरह वो हमें नसीहत देते हैं कि हमें फिल्म बनाने से पहले इस बारे में सोचना चाहिए था. ऐसा लगता है जैसे वो बता रहे हैं कि हमने बहुत बड़ा गुनाह कर दिया. ग़ालिब के मुताबिक सेंसर चीफ पहलाज निहलानी शुरूआती प्रक्रिया का हिस्सा नहीं होते. पांच सदस्य पहले देखते हैं और फिर कट्स की डिमांड रखते हैं. वो खुद ही फैसला कर लेते हैं कि सवा सौ करोड़ जनता को क्या देखना है.”

सेंसर बोर्ड का तो काम ही फिल्म को सर्टिफाई करना है. फिर आपको उनके कट से क्या दिक्कत है?

ग़ालिब- “सेंसर बोर्ड का काम जो तय है वो है फिल्म को सर्टिफाई करना न कि फिल्म कट करना, हम लोगों ने जिसे सेंसर बोर्ड कह कर बना दिया है,असल में वो एक फिल्म सर्टिफिकेशन बोर्ड है जिसका काम फिल्म को सर्टिफाई और फिल्म को categorize  करना है. फिल्म को categorize करना इसलिए ज़रूरी है ताकि सभी उम्र के दर्शकों के लिए फिल्म categorize हो जाये और ये भी सर्टिफाई हो कि मूवी कितनी अडल्ट है…मूवी में कितना वॉयलेंस है. फिर  ऑडिएंस खुद तय कर लेगी कि उनको क्या देखना है क्या नहीं.”

सेंसर बोर्ड में फिल्म के लोग होते है या राजनेता ?

ग़ालिब-  “सेंसर बोर्ड में फिल्म के लोग नहीं होते है. पहले कुछ लोग फिल्म से थे तो लोग खुश हुए थे कि कोई तो हमारी फिल्म को समझ सकेगा लेकिन आज सेंसर बोर्ड वाले फिल्म देखने के लिए अपने पांच मेंबर को भेजते है, वो फिल्म को देखते है फिर उनके हिसाब से फिल्म कट करते है. सेंसर बोर्ड के ये मेंबर फिल्म कि दुनिया से जुड़े नहीं होते है.”

सुनने में आया है कि सेंसर बोर्ड के मेंबर ने किरण शयाम श्रॉफ को कहा औरत होकर ऐसी मूवी कैसे बनाई. इस पर आप क्या कहना चाहेंगे !

ग़ालिब-  “..ये तो उनकी मानसिकता है. वो औरत को बोलते है, ये औरत कहां है ये तो पैंट शर्ट पहने हुए है. तो आप इससे अंदाजा लगा सकते है कि इनकी सोच कहा तक जा सकती है…और हमारी मूवी में ऐसा भी कुछ नहीं है जो सेंसर बोर्ड के मेंबर ऐसा कुछ बोलें… ये लोग ऐसा बर्ताव करते है,तो बड़ा अजीब लगता है. लेकिन मुझे लगता है कि आज के समय में अपनी कुर्सी का हर कोई फायदा उठाता है. ये ह्यूमन नेचर है.”

सेंसर बोर्ड को क्या लव मेकिंग सीन्स से परेशानी है ?

ग़ालिब-  “सेंसर को इस फिल्म के 80 प्रतिशत लव मेकिंग सीन्स से परेशानी है. वो मानते हैं कि ये सब अश्लीलता है जिसे हटा दिया जाए.”

फिल्म के मुख्य किरदार के लिए कौन था पहली पसंद?

ग़ालिब-  “जब इस फिल्म की प्लानिंग हुई थी, तो नवाज़ का ही नाम आया था. वो एकदम बाबू के किरदार की तरह बात करते हैं. वो बिहार-यूपी के परिवेश से हैं, तो उनसे काफी जुड़ाव था. शायद यही वजह है कि लोग गैंग्स ऑफ़ वासेपुर से इस फिल्म की तुलना कर रहे हैं. चूंकि उस फिल्म में भी उन्होंने उसी परिवेश का किरदार निभाया था.”

‘बाबूमोशाय बन्दूकबाज़’ किसी वायलेंट फिल्म का टाइटल लगता है. क्या पारिवारिक दर्शक सिनेमा घरों तक पहुंचेंगे ?

ग़ालिब-  “इस फिल्म को देखने नॉर्मल फॅमिली नहीं जाएगी. इस फिल्म को देखने सिंगल ऑडिएंस और मल्टीप्लेक्स ऑडिएंस दोनों ही देखने जाएगी. फेमिलीज़ हो सकता है न जाये, क्योंकि आज भी लोग ऐसा समझते है कि फॅमिली के साथ ऐसी फिल्मे नहीं देखी जाती. फेमिली के सभी लोग देखते है वो बात अलग है. सब अकेले देखना पसंद करते है, लेकिन देखते सब है.”

इस फिल्म के  गाने भी आप ने ही लिखे हैं. इसमें बोर्ड ने कोई आपत्ति ज़ाहिर नहीं की ?

ग़ालिब-  “इस फिल्म में वैसे ही इतने कट्स  करने को कहा गया है. जब हम लोगो ने सेंसर बोर्ड को बर्फानी सॉंग भेजा तो एडल्ट कह कर रिजेक्ट कर दिया गया. हम लोगो को लगा कि कुछ विज़ुअल्स कि समस्या है…बाद में फिर भेजा तो कहा विज़ुअल्स क्यों हटाया, सोंग के लिरिक्स को सही करना था. लिरिक्स के वर्ड सही नहीं है. तो उनके हिसाब से शब्द या विज़ुअल्स, कुछ भी रोमैंटिक, नहीं होना चाहिए.”

क्या फिल्म को बनाते समय कोई ऐसी घटना हुई, जिससे आप को बहुत परेशानिया उठानी पड़ी हों ?

ग़ालिब-  “पहले यह फिल्म बंगाल में शूट की गयी थी, क्योंकि निर्माता कुशान नंदी बंगाली हैं. उन्हें लगा कि बंगाल में कोई दिक्कत नहीं होगी. लेकिन वहां तो मामला ही दूसरा हो गया। वहां भी काफ़ी परेशानी हुई. वहां के लोग हमारी भाषा नहीं समझ पा रहे थे, इसलिए हम वापस आये और फिर हमने दोबारा कहानी पर काम किया. इसके बाद बिहार का बैकड्रॉप सेट करना पड़ा। हालांकि फिल्म में बंगाल से जुड़ा हिस्सा भी होगा.”

कुशान नंदी निर्देशित बाबूमोशाय बन्दूकबाज़  25  अगस्त को रिलीज़ होगी और इस फिल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के साथ बिदिता बाग लीड रोल में हैं.

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