आनंद रूप द्विवेदी | Navpravah.com
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
-राहत इन्दौरी
किसी शाइर की गजलों को सुनिए या किसी कवि की कविता, बात वही अच्छी और सच्ची लगती है जिसमें सौहार्द्र और शान्ति की भावना हो.
एक ओर जहां आज हमारे देश में तरक्की पैर पसार रही है, नए आयाम आने को हैं, बेहतरी के मुक़ाम हासिल किये जा रहे हैं वहीं हमारे समाज का कुछ सड़ा गला हिस्सा इस अमन को पचा नहीं पा रहा है. सोशल नेटवर्किंग साइट्स तो ऐसे धरती के लालों से भरी पड़ी है. हिन्दू गाय को माता मानते हैं. कुछ पूजा भी करते हैं तो सड़क पर घूमती गायें कुछ हिन्दुओं को ही ट्रैफिक में बाधा लगती हैं. तब माता बाधा बन जाती है और सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर उगला हुआ सारा ज्ञान धरा का धरा रह जाता है. कुछ तो फुल टाइम गौरक्षक बन चुके हैं, और गुंडई पे अमादा हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो ऐसे फ़र्जी सेल्फी छाप गौरक्ष्कों कों चेतावनी भी दे चुके हैं.
कुछ लोगों की तो बात ही निराली है. जिनका मानना है, “गाय अगर हिन्दू की माँ है तो क्या हुआ, हम बीफ़ खाते थे और खाते रहेंगे.” बीफ़ पसंद करने वालों की बातें तो सर के ऊपर से गुजरती हैं. भयानक मोटापे के शिकार और बॉलीवुड के कलाकार ऋषि कपूर को बीफ़ बेहद पसंद है. उन्होंने इसके समर्थन में ट्वीट भी किया था. एक पुराने जज साहब मार्कंडेय काटजू भी जीवन भर भले ही दाल चावल खाते रहे हों लेकिन वृद्धावस्था में उन्हें गौमांस सर्वोत्तम पोषक आहार नजर आने लगा है. कुछ पढ़े लिखे नौजवान फ़ौज में भर्ती होकर देश के लिए मर मिटते हैं तो कुछ ढफली बजाकर महिषासुर की उपासना कर रहे हैं. ताकि हिन्दुओं की भावनाएं आहत हों, और उन्हें कवरेज मिल सके.
कुछ मुसलमान और मौलवी जन भी हैं जो सलमान खान के गणेश उत्सव से खिन्न हो जाते हैं. नूरी खान ओम नमः शिवाय बोले, भगवा वस्त्र पहने तो ये उनके इस्लाम के खिलाफ हो जाता है. “राष्ट्रगीत वन्दे मातरम” तो उनके हिसाब से इस्लाम का घोर शत्रु है. फौरन फतवों की बरसात शुरू हो जाती है. दरअसल ये साज़िश है. साज़िश एक देश के सौ टुकड़े करने की. कई ऐसे पुरुष व महिलायें हैं जो इस हद तक पढ़ लिख चुके हैं कि युवाओं को बरगलाने में अपनी सारी ताकत, सारा ज्ञान झोंक रहे हैं. माथे पर ज्यूपिटर से भी विशाल बिंदी लगाते ही जैसे इनके दिव्य चक्षु खुल जाते हों. इन्हें आज़ादी चाहिए. टाइम मशीन का आविष्कार हुआ तो टाइम ट्रैवेल के लिए शायद ये सबसे पहले या एडवांस बुकिंग देने वालों में से होंगे. ये आज़ादी के पाषाण युग में जाना चाहते हैं. ऐसे तमाम बुद्धिजीवी लोग हैं. फेहरिस्त लम्बी है. मैं लिखते लिखते और आप पढ़ पढकर थक जायेंगे. स्वयं को किसी भी कन्फ्यूजन का शिकार बनाने से बचिए. ये लोग भारत नहीं हैं. आइये आपको बताएं कि वसुधैव कुटुम्बकम वाली सभ्यता का अखण्ड भारत क्या है:
मुहम्मद फैज़ खान:
फैज़ खान छत्तीसगढ़ में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर थे. अब ये गौ कथा वाचक व सच्चे गौ प्रेमी हैं. तमाम हिन्दुओं की तरह ये भी गाय को माता स्वरुपा ही मानते हैं. पूरे देश में जाकर गौ कथा सुनाने वाले मुहम्मद फैज़ खान को धमकियाँ दी जाती हैं, तंज़ कसे जाते हैं गालियाँ दी जाती हैं. फिर भी फैज़ खान जैसा ढीठ हिन्दुस्तानी जिसे किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता. वो हंसकर बुरी बातों को टाल देते हैं. फैज़ खान जितने सच्चे मुसलमान हैं उतने ही अच्छे इंसान भी. फैज़ खान कहते हैं कि, “दिन की शुरुआत फजर की नमाज से करता हूं। इसके बाद गोकथा कभी–कभी दिनभर चलती है। इसलिए जब वक्त मिलता है जोहर, असर, मगरीब व ईशा की नमाज पढ़ता हूं। भारत की सनातन संस्कृति के प्रति निष्ठा है। इसी का एक अंग गाय और गंगा है। जिससे हर धर्म का व्यक्ति लाभ उठाता है।“
अपने इसी भाव व उद्देश्य के साथ फैज़ खान “गोसेवा सद्भावना पदयात्रा” के तहत सम्पूर्ण भारत की यात्रा पर निकले हैं. वो भी पैदल. लेह से कन्याकुमारी फिर वहां से अमृतसर. फैज़ खान आधुनिक भारत के स्वामी विवेकानंद हैं. बहरहाल सफ़र अभी जारी है, इसमें समय लगेगा लेकिन फैज़ खान की मानें तो बदलाव को तो होना ही है.
नाज़नीन अंसारी:
मुस्लिम महिला फाउंडेशन-इंडिया की प्रेसिडेंट नाज़नीन अंसारी नवीन भारत की उन लौह महिलाओं में से एक हैं, जो केवल मज़हब की नहीं बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के हित की सोच रखती हैं. वो हिन्दू-मुस्लिम एकता की प्रतीक मानी जाती हैं. नाज़नीन और उनकी अन्य महिला साथी समाज में एकता बनाए रखने का कोई मौका नहीं जाने देतीं. किसी को खून की जरूरत हो या अनाज की नाज़नीन हमेशा तैयार रहती हैं. मजहब के नाम पर स्त्रियों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों पर भी नाजनीन मुखर होकर बोलती हैं व किसी भी कुरीति का खुलकर विरोध करती हैं. नाजनीन और उनकी साथी महिलाओं ने मजहब से ऊपर इंसानियत के धर्म को रखा है. इसके साथ ही ट्रिपल तलाक जैसे गंभीर मसलों में नाजनीन अंसारी खुलकर दकियानूसी सोच का विरोध करती हैं. तलाक्शुदा महिलाओं को सक्षम बनाने के लिए उन्होंने कम्प्यूटर व इन्टरनेट मार्केटिंग जैसी आधुनिक तकनीक प्रशिक्षण दिलवाना शुरू किया. जिसके लिए उन्होंने साईं इंस्टिट्यूट ऑफ़ रूरल डेवलपमेंट की मदद से ई-मार्केटिंग प्रशिक्षण कार्यशाला भी स्थापित की. हाल ही में नाजनीन अंसारी के मुस्लिम महिला फाउंडेशन ने पीएम मोदी को राखी बनाकर भेजी. साथ में उन्होंने देश के कई मुद्दों के बारे में उन्हें नोट भी भेजा.
नाजनीन अंसारी का मानना है कि, “जब एक मुसलमान होकर कबीर, निर्गुण राम की प्रशंसा कर सकते हैं और दुनियां को इंसानियत का सन्देश दे सकते हैं तो आज हम धर्म–जाति को इंसानियत से ऊपर क्यों मानते हैं ?”
नाज़नीन अंसारी मजहबी दायरों से बाहर निकलकर आधुनिक भारत के निर्माण में अतुलनीय योगदान दे रही हैं.
शिराज़ क़ुरैशी:
पेशे से वकील ग्वालियर मध्य प्रदेश के शिराज़ कुरैशी भी पक्के नमाज़ी हैं. इन्हें नमाज़ सिर्फ़ पढ़ना ही नहीं बल्कि उसके उसूलों को जीना भी आता है. फैज़ खान की तरह शिराज़ कुरैशी भी गौ सेवक हैं व हर उस मुहीम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं जिसमें गौ हित की बात की जा रही हो. अपने बेहद व्यस्त व्यावसायिक जीवन से समय निकालकर गाय की सेवा व समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द्र स्थापित करने में हर सम्भव प्रयास करते हैं.
शिराज कुरैशी का मानना है कि, “गाय और बछड़े , आप को नहीं लगता की इस मासूम जीव को अल्लाह ने दूध और शिफ़ा के साथ पूरी इंसानियत के लियें भेजा है. क्यों गाय को काट कर भारत के लिए शुद्ध दूध की क़िल्लत करते हो? गाय को मारना, काटना और दूध ना देने पर बेचना, तस्करी करके विदेश भेजना छोड़िए. अल्लाह ने दूध के लिए बनाया है सिर्फ़ दूध पीजिए, अल्लाह के हुक्म की नफ़रमानी नहीं कीजिये!”
ये देश तमाम मजहबी फसादों के बावजूद अटल अडिग है तो ऐसे ही हिन्दुस्तानियों की वजह से. फैज़ खान, नाजनीन अंसारी, एडवोकेट शिराज कुरैशी जैसे लाखों लोगों के लिए आज भी भारत बेहद “टॉलरेंट” राष्ट्र है. हमारी टीम नवप्रवाह.कॉम ऐसे भारतीयों को सलाम करती है.
PC: Facebook Accounts of Faiz Khan, Nazneen Ansari, & Shiraz Quraishi.