हरीश भारद्वाज | navpravah.com
नई दिल्ली | यह सर्वमान्य है कि किसी भी ऊंचाई पर पहुंचने के लिए सबसे कठिन होता है, प्रथम सीढ़ी पर पैर रखना। अर्थात् किसी भी कार्य को शुरू करना सबसे कठिन होता है, बाद में रास्ते बनने लगते हैं। उपरोक्त बात को यदि हम स्वतंत्रता संग्राम के साथ जोड़ें, तो 29 मार्च, 1857 को अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध बगावत का पहला कदम दो अंग्रेज़ अधिकारियों पर हमला करके शहीद मंगल पांडेय जी द्वारा उठाया गया। तो क्या हमारा यह मानना ठीक नहीं कि, स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक शहीद मंगल पाण्डेय जी थे!
सन् 1857 में अंग्रेज़ी हुकूमत के विरुद्ध आज़ादी पाने का बिगुल बजा। इस बिगुल को फूंकने का श्रेय मंगल पाण्डेय को प्राप्त हुआ। 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव के एक ब्राह्मण परिवार में मंगल पाण्डेय का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम दिवाकर पाण्डेय था। 22 वर्ष की आयु में मंगल पांडेय ईस्ट इंडिया कम्पनी में एक सैनिक के रूप में भर्ती हुए। कुछ समय पश्चात् अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा सैनिकों को ऐसे कारतूस दिए गए, जिन्हें काटकर खोलना पड़ता था। तभी यह अफ़वाह भी फैलने लगी कि इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी मिलाई गई है।
चूंकि उस समय अधिकांश सैनिक हिंदू और मुस्लिम थे, इसलिए दोनों ने ही विरोध किया और मंगल पांडेय ने कारतूसों के इस्तेमाल से साफ इंकार कर दिया। 29 मार्च 1857 को कलकत्ता के बैरकपुर स्थित छावनी में क्रोधित होकर मंगल पाण्डेय ने दो अंग्रेज़ अधिकारियों मेजर जेम्स ह्यूसन और लेफ्टिनेंट वाघ पर गोली चला दी और स्वयं को भी मारने की कोशिश की।
अंग्रेज़ अधिकारी घायल हुए लेकिन बच गए और मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार कर लिया गया। उस समय अंग्रेज़ अधिकारियों पर हमला करने का अर्थ अपनी मौत के फ़रमान पर स्वयं हस्ताक्षर करने के समान था। मंगल पांडेय को फांसी की सज़ा सुनाई गई और उसके लिए 18 अप्रैल,1957 की तारीख़ तय की गई। लेकिन बगावत के भय से 10 दिन पूर्व ही 08 अप्रैल, 1957 को मंगल पांडेय को फांसी दे दी गई।
(लेखक, नवप्रवाह न्यूज़ नेटवर्क के असोसिएट एडिटर हैं।)