जटाशंकर पाण्डेय,
आज पूरे भारत के सामने एक बड़ा संकट खड़ा है, नोट बंदी का संकट। आलम यह है कि पूरा भारत भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ है। कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरा देश आवाज उठा रहा है और उठाता रहा है, चाहे वह किसी भी धर्म का, किसी भी जाति का हो, किसी भी पार्टी का हो, कहने के लिए वह भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ है। फिर प्रश्न यह उठता है कि जब सब लोग इसके खिलाफ हैं, तो यह होता कैसे है? यह करता कौन है? हर आदमी यदि सच्चे दिल से यह प्रश्न अपने आप से पूछे तो उत्तर अपने आप मिल जाएगा। हर किसी को यह सोचना होगा कि हम देश के हित में कितना सोचते हैं और उसके लिए कितना समर्पित हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भ्रष्टाचार व कालेधन की समस्या समाप्त करने के लिए ही 8 नवंबर की रात नोट बंदी का फैसला लिया गया। लगभग 70% लोगों ने इसका समर्थन किया। सवाल यह है कि क्या 70% लोग 30%के आगे हार जायेंगे? इन 70% लोगों में कुछ अमीरों का भी समर्थन रहा है। मध्यम वर्ग का समर्थन ज्यादा रहा है, क्योंकि यह वर्ग इस फैसले से जुड़ी सच्चाई को बहुत करीब से जानता है। रही अति गरीब वर्ग की बात, तो इन लोगों तक सच्चाई का जितना प्रचार और प्रसार हुआ है, चाहे अच्छा या बुरा, वे उसके मुताबिक अपना मत व्यक्त कर रहे हैं।
अब समस्या यह है कि 30% लोग, 70% लोगों के लिए बहुत बड़ी परेशानी का कारण बने हुए हैं। इन 30% लोगों में काला धन रखने वाले, स्वार्थ के लिए काला धन रखने वालों के पैसे बदल कर थोड़े कमिशन पर सफेद करने वाले, और विपक्षी पार्टी वाले शामिल हैं।
सरकार ने आम ज़रूरतों के हिसाब से समय समय पर कई नए नियम लाये। सेविंग एकाउंट से 24000 तथा करेंट अकॉउंट से 50000 रु. लोगों को निकलने की सुविधा दी। शादी वाले घरों की समस्या समझकर उनके लिए 2,50,000 की सीमा तय की, लेकिन जनता को बड़े शहरों में यह राशि भले ही मिल जाए, पर छोटे शहरों में 24000 की जगह 4 या 5 हजार रु. तथा 50 हजार की जगह 10 या 15 हजार रु. निकालने को मिल रहे हैं। कहीं कहीं तो बिलकुल पैसे ही नहीं मिल रहे, और इन सब वजहों से पूरे देश में लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
इस पूरे प्रकरण में एक बड़ा प्रश्न यह खड़ा हो रहा है कि जहाँ लाइन में लोगों को निर्धारित धन नहीं मिल पा रहा है, वहां करोड़ों रूपए टॉयलेट्स और घरों में कैसे मिल रहे हैं? पुलिस और सीबीआई आए दिन करोड़ों रुपयों के नये नोट छापे मार मार कर पकड़ रही है। जब सरकार द्वारा सबके लिए समान सीमा तय की गई है, तो ये नोटों की गड्डियां उन लोगों तक पहुँच कैसे रही हैं? इस जुगाड़ में जो लोग लगे हुए हैं, वे जनता में ही शामिल कुछ ‘खास’ लोग हैं। इसमें कुछ बैंक कर्मचारी, कुछ नेता, कुछ कमिशन खोर एजेंट भागीदार हैं, लेकिन ये भी तो हैं तो जनता के ही अंग!
अकेले सरकार या विपक्ष तो पूरे अर्थतंत्र को सुधार नहीं सकता। इसमें पूरे देश का सहयोग जरूरी है, प्रत्येक नागरिक का। ये 30% लोग पूरे देश के अर्थतंत्र को झकझोर रहे हैं और उन्हें सही साबित कर रहे हैं इन 70% ईमानदार लोगों में छुपे कुछ जयचंद, जो सामने से इस फैसले के समर्थन में हैं और परदे के पीछे ‘ब्लैक टू वाइट’ का घटिया खेल, खेल रहे हैं। अब देखिए जीत 30% विरोधियों की होती है कि 70% समर्थकों की। अब यह तो 50 दिनों के बाद आने वाला समय ही बताएगा कि आखिर में ईमानदारी जीतती है, या पराजित होती है।