दो टूक : पत्रकार बनकर व्यवस्था के दलाल मत बनिये , समाजसुधारक बनिये

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अनुज हनुमत|Navpravah.com

पत्रकारिता को एक मिशन एक पूजा और दबे कुचलें बेजुबानों की जुबान माना गया है।लोकतंत्र में पत्रकारिता का विशेष महत्व होता हैे क्योंकि लोकतंत्र के तीनों खम्भें इसी पत्रकारिता के सहारे फलते फूलते और मजबूत होते हैं। पत्रकारिता सरकार और समाज के बीच में दोहरे आइने की तरह होती है जिसमें समाज और सरकार दोनों अपना अपना चेहरा देखकर उसमे सुधार कर सकते हैं। पत्रकारिता की लगन से व्यक्तित्व में निखार तथा दिमाग में प्रखरता और सेवा भाव आ जाता है।

पत्रकारिता समाज सेवा होती है और सेवा निःशुल्क होती है। पत्रकारिता भी एक समाज सेवा होती है व्यवसाय नही है।जब पत्रकारिता व्यवसायिक हो जाती है तब वह लक्ष्य से भटक जाती है और जान के खतरे पैदा हो जाते हैं।व्यवसाय स्वार्थ सिद्धि के लिए किया जाता है जबकि पत्रकारिता ईश्वरीय कार्य के लिये की जाती है।देवर्षि नारद को इस धरती का पहला पत्रकार माना जाता है और उन्होंने अपना सारा जीवन दूसरों की समस्या सुलझाने में लगा दिया था। पत्रकारिता का अतीत आदिकाल से रहा है यह बात अलग है कि उस समय न प्रिंट मीडिया थी और न ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ही थी।नारद की जुबान खुद अपने आप में  अखबार और चैनल होती थी।आजादी के समय पत्रकारिता एक मिशन के रूप में आजादी की लड़ाई में योगदान दे रही थी।

गणेश शंकर विद्यार्थी महात्मा गांधी अटल बिहारी वाजपेयी लाला लाजपत राय जैसे अनगिनत लोग ऐसे हैं जिन्होंने पत्रकारिता को गति प्रदान कर हम सभी को गौरान्वित किया है।पत्रकारिता जब तक मिशन थी तब पत्रकार दिल खोलकर पत्रकारिता करता था लेकिन जबसे पत्रकारिता व्यवसाय से जुड़ गयी है तबसे पत्रकारिता दिल बंद करके होने लगी है।अब पत्रकारिता आत्मा की आवाज पर नहीं बल्कि मालिक या सम्पादक के इशारे पर होने लगी है।अब समाचारों का प्रकाशन या चैनलों का संचालन सम्पादकों के नही बल्कि मालिक की इच्छानुसार हो रहा है।

इधर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े पत्रकारों की बाढ़ सी आ गयी है क्योंकि यह पुरानी परम्परा है कि समाज के कुछ लोगों को हमेशा रक्षा कवच की जरूरत पड़ती है।पहले ऐसे लोगों का काम राजनैतिक संरक्षण से काम चल जाता था लेकिन इन्हीं लोगों ने राजनीति को भी कटघरे में खड़ा  कर दिया है।इस समय राजनेता ठेकेदार समाज के दुश्मन सभी पत्रकारिता का सहारा लेने के लिये इस क्षेत्र में आ रहें हैं। सभी लोगों ने अपने अपने अखबार या चैनल चला या चलवा रखें हैं जो हमेशा उनके हित में गुणगान किया करते हैं।कहने का मतलब समाज में गिरावट का असर धीरे धीरे पत्रकारिता पर भी पड़ने लगा है और घपला का पर्दाफाश करने के समाचार में घपलेबाज के पास उसका वर्जन पूंछने जाना पड़ता है कि आरोप सही हैं या गलत हैं।अब पत्रकारिता की जगह पर  सूचनाओं का आदान प्रदान होने लगा है।पत्रकार, पत्रकार होता है चाहे वह देश की राजधानी या संसद विधानसभा का हो चाहे जिला तहसील ब्लाक या नगर क्षेत्र का हो।

पत्रकारिता बच्चों का खेल और रौब गालिब करने का साधन नही है बल्कि जान हथेली पर रखकर खेला जाने वाला जोखिम खेल होता है।जरा सी चूक होने पर जान चली जाती है और बीबी बच्चे अनाथ हो जाते हैं। पत्रकारिता हमेशा राष्ट्रहित समाज हित मानवीय हित को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए।अधिक धन कमाने अथवा स्वार्थपूर्ति के लिये की गयी पत्रकारिता हमेशा जानघातक होती है।खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पत्रकारिता से जुड़े साथियों के सामने पत्रकारिता करना बहुत जोखिमपूर्ण हो गया है।ग्रामीण पत्रकार या तो  पत्रकारिता का लबादा ओढ़कर दलाल या तस्कर बन जाय या फिर समाज विरोधी लोगों का शिकार बने।

समाजविरोधी सभी  चाहते हैं कि पत्रकार उनका पालतू बन जाय और बागी बन रहा हो तो रास्ते से हट जाय। विधानसभा या संसद में बैठे लोग भी इन्हीं ग्रामीण पत्रकारों के बीच से गुजरकर वहाँ तक पहुंचते हैं इसलिए वह कभी नहीं चाहते हैं कि पत्रकार का भला हो।समाज का बड़ा तबका ईमानदार तेजतर्रार पत्रकार की प्रंशसा तो करता है किंतु वह खुलकर साथ देने लायक बहुत कम होता है।पत्रकार को कुछ भी नही मिलता है फिर भी वह हर घटना स्थल पर पुलिस या अन्य अधिकारियों से पहले पहुंचने की कोशिश करता है।पीड़ित और प्रशासन के बीच न्याय हित में सेतु का काम करता है। थाना पुलिस तहसील ब्लाक दलाल चोर लकड़कट्टा व असमाजिक तत्वों की गतिविधियों पर आधारित उसके समाचार होते हैं इसलिए ईमानदार पत्रकार से सामना करने के लिए सभी सारे बुरे लोग सारे बैर भुलाकर एक मंच पर आ जाते हैं।परिणाम होता है कि लाला लाजपत राय हो चाहे अभी हाल में मारे गये पत्रकार साथी हो सभी को पत्रकारिता का ईनाम उनके बच्चों को अनाथ करके दिया गया।पिछले वर्षों जोगिंदर सिंह को जिंदा जला दिया गया तो अभी पिछले महीने गोंडा के एक पत्रकार साथी को गोली मारकर उनकी हत्या कर दिया।पत्रकार गौरी की हत्या का मामला अभी भी चर्चा में चल रहा है।अभी एक महीने भी नहीं हुआ है और रामरहीम डेरा सच्चा सौदा की तरफ से कई पत्रकारों को जान से मारने की धमकी दी गयी है।

सरकार भी इन बिन पैसे के समाज सेवकों की तरफ ध्यान नहीं दे पा रही है क्योंकि उसकी व्यवस्थापिका खुद भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंसी और वह इन पत्रकारों को अपना जिगरी दुश्मन मानती है।प्रधान हो चाहे कोटेदार चाहे दलाल मक्कार हो सभी इन पत्रकारों के दुश्मन मानते हैं। इधर पत्रकारिता को कंलकित करने का भी दौर शुरू हो गया है और इसमें इलेक्ट्रिक चैनलों की विशेष भूमिका है। चैनलों कोठे की वैश्याओं की तरह बिक रहे हैं और पत्रकारिता के लक्ष्य तार तार होने लगे हैं।कुछ लोग पत्रकारिता में सेवा नहीं धन कमाने आ रहें हैं और वहीं लोग अक्सर प्रायः हिंसा के शिकार हो जाते हैं।

 

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