सौम्या केसरवानी| Navpravah.com
उच्चतम न्यायालय ने कल कहा कि मतदाताओं को उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि जानने का अधिकार है और चुनाव आयोग से राजनीतिक दलों को निर्देश देकर यह सुनिश्चित करने के लिए कहा जा सकता है कि आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे लोग उनके चुनाव चिन्हों के जरिये उनकी टिकट पर चुनाव नहीं लड़ें।
इन टिप्पणियों के बाद प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कई याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा है, निर्वाचन आयोग और केन्द्र सरकार सहित पक्षों ने दलीलें पूरी कीं। शीर्ष अदालत इस सवाल पर गौर कर रही है कि आपराधिक सुनवाई का सामना कर रहे किसी जनप्रतिनिधि को मामले में आरोप तय होने के चरण में अयोग्य ठहराया जा सकता है या नहीं।
पीठ ने उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि जानने के मतदाताओं के अधिकार संबंधी टिप्पिणयां ऐसे समय कीं जब केन्द्र ने कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि न्यायपालिका को पूर्व शर्त लगाकर विधायिका के क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए जिसका चुनावों में उम्मीदवारों की सहभागिता के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
केन्द्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा, न्यायाधीशों की मंशा हास्यास्पद है, लेकिन सवाल यह है कि क्या अदालत ऐसा कर सकती है, जवाब है ‘नहीं’, वह पीठ के इस सुझाव पर जवाब दे रहे थे कि आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे लोग चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र होंगे लेकिन वे पार्टी चुनाव चिन्ह के जरिये पार्टी टिकट पर ऐसा नहीं कर सकते।
राजनीतिक व्यवस्था को स्वच्छ करने की शीर्ष अदालत की मंशा की तो सराहना की लेकिन साथ ही कहा कि न्यायपालिका विधायिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। वेणुगोपाल ने दोष सिद्ध होने तक व्यक्ति को निर्दोष मानने की अवधारणा का जिक्र किया और कहा कि न्यायालय व्यक्ति के मत देने के अधिकार पर शर्त नहीं लगा सकती है और इसमें चुनाव लड़ने का अधिकार भी शामिल है।