भगत सिंह नहीं चाहते थे, कोई उनकी फांसी रुकवाने के लिए अंग्रेजों के सामने हाथ फैलाए

अनुज हनुमत,

भगतसिंह ने देश की आज़ादी के लिए जिस साहस के साथ ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया, वह आज के युवकों के लिए आदर्श है। इन्होंने केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। आज भारत माता के ऐसे ही वीर सपूत का जन्मदिन है ।

फाँसी के पहले 3 मार्च को अपने भाई कुलतार को भेजे एक पत्र में भगत सिंह ने लिखा था-
“उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है? दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें। सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें।”

इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है।”

आज भगत सिंह के जन्मदिवस के मौके पर उस विषय पर भी बात करना आवश्यक है, जो युवाओं के बीच हमेशा चर्चा का केंद्र बना रहता है। गांधीजी द्वारा भगत सिंह की फाँसी की सजा रूकवाने के लिए किए गए प्रयासों को लेकर लोगों के बीच तमाम गलत धारणाएं व्याप्त हैं। कहा जाता है कि गांधी भगत सिंह की लोकप्रियता से घबरा गए थे। इसलिए उन्होंने भगत सिंह की सजा माफ करने की शर्त को गांधी-इरविन पैक्ट का हिस्सा नहीं बनाया।

दरअसल, यह एक गलत प्रवृत्ति का नतीजा है। जिसमें एक महानायक को ऊँचा दिखाने के लिए किसी दूसरे महान व्यक्तित्व केा प्रतिनायक बना दिया जाता है। यह सही है कि स्पेशल ट्रिब्यूनल के सामने ट्रायल के दौरान भगत सिंह की लोकप्रियता चरम पर पहुुँच गई थी। किवदंतियाँ प्रचलित हो गई थीं कि भगत सिंह की हड्डियों के जोड़ों को भारी हथौड़ों से कुचल दिए जाने के बावजूद उन्होंने उफ् तक नहीं की। या, भगत सिंह इतने ताकतवर हैं कि भारत-विरोधी बातें करते हुए दो अंग्रेजों को उन्होंने कान पकड़कर पानी के जहाज से बाहर फेंक दिया। जबकि असलियत में भगत सिंह ने कभी समुद्र-यात्रा नहीं की थी।

भगत सिंह के भाषण लोगों की संघर्ष-क्षमता को उभारने वाले होते थे। इन कम उम्र नौजवानों के अडिग साहस ने लोगों को अपने पौरूष पर गर्व करना सिखाया था। परन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि गाँधीजी ने अपनी ओर से भगत सिंह को बचाने के लिए लार्ड इरविन से हरसंभव आग्रह किया था, सिवाय गाँधी इरविन पैक्ट तोड़ने की धमकी देने के।ऐतिहासिक रूप से इतना ही सत्य है। दोनों नेताओं की अपनी सोंच थी।

दोनों ही अपनी राह चल रहे थे। परन्तु इस मामले में गाँधी को खलनायक बना दिया जाता है। वास्तव में, भगत सिंह यह हरगिज़ नहीं चाहते थे कि गाँधी ही क्या, कोई भी उनकी सजा कम करने के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के सामने हाथ पसारे।

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