रिपोर्ट – अनुज हनुमत
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अब ये बुन्देलखण्ड क्षेत्र को प्राप्त वरदान कहिये या अभिशाप की यहाँ हमेशा से अगर कोई ज्यादा चर्चा में रहा है तो वो दो शख्स हैं – एक यहाँ का बेबस और लाचार किसान और दूसरा दशकों से खरपतवार की तरह उपज रहे डकैत । इन दोनों की आड़ पर जमकर राजनीति की जाती रही है और शायद यही कारण है कि न तो यहाँ के किसानों की जिंदगी बदली और न ही यहां से डकैतों का पूर्ण रूप से सफाया हुआ । इन दिनों बुन्देलखण्ड किसानों की बदहाल स्थिति के लिए खबरों में नही है बल्कि डकैतो के आतंक , सियासी जुगलबंदी और पुलिसिया कार्यवाही के लिए चर्चा में है ।
योगी सरकार के आते ही लोगो को लगा की अब दस्यु समस्या का खात्मा होगा लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि अभी और इन्तजार करना पड़ेगा ! पिछले एक महीने से पुलिस की कार्यवाही भी तेज हुई । खासकर चित्रकूट जिले के उन तमाम क्षेत्रो में जहाँ दस्युओं की ज्यादा समस्या है । महीने भर में डकैतो के खिलाफ कई बड़ी कार्यवाही की गई । कई बार मुठभेड़ भी हुई । लेकिन हालिया एक घटना ने इस दस्यु उन्मूलन में सियासी अड़चन के साथ पुलिसिया कार्यवाही को भी सिर्फ इसलिए सन्देह के घेरे में ला दिया है क्योंकि उसमें भी सियासत के हुक्मरानों को वोटबैंक की बू आ रही है । सही पूछें तो दस्यु इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों के लिए आगे कुआं है और पीछे खाईं जैसी हालत है । डकैतो को सरंक्षण नही देते तो समस्या और अगर दे दिया तो भी समस्या ।
पिछले चार दशक के लंबे समय में दस्यु ददुआ से लेकर ठोकिया और बबली कोल तक के मौजूदा समय में चुनाव के दौरान इन दस्युओं से सियासत के जुड़ाव की खबरें आती रही हैं ! चाहे वो समाजवादी पार्टी का शासनकाल रहा हो या बहुजन समाज पार्टी का या भाजपा या कांग्रेस का । इन सभी पार्टियों से जुड़े बड़े बड़े नेताओं का दस्यु कनेक्शन समय समय पर गाहे बगाहे सामने आता रहा है । खासतौर पर चुनाव के समय सबसे ज्यादा । ऐसे में आप इनके उन्मूलन की कप्लना कैसे कर सकते हैं । कुछ लोगो का तो यहाँ तक कहना है कि इनमे से अधिकांश दस्युओं की उपज सत्ता के संघर्ष का परिणाम है । यहाँ चुनाव के दौरान मूद्दे केंद्र में नही होते बल्कि झूठ , फरेब और दलबल ही काम आता है । जानकारों का तो यहाँ तक कहना है कि अगर किसी दस्यु गैंग का सफाया होता भी है तो वह उसका सियासी उम्र पूरी होने का नतीजा है न की सरकार की कोई बड़ी कार्यवाही ।
बहरहाल योगी सरकार के स्पष्ट आदेश हैं कि डकैतो के खिलाफ कार्यवाही में कोई भी दबाव पुलिस न महसूस करे और जल्द से जल्द उनका सफाया करे । लेकिन सबसे अहम प्रश्न ये है कि क्षेत्रीय स्तर पर प्रशासन के ऊपर सफेदपोशो द्वारा दस्यु उन्मूलन की कार्यवाही के नाम पर बनाये जाने वाले दबाव को ,कोई भी सरकार कैसे रोक सकती है ! बीते दिनों ऐसा ही एक मामला पाठा क्षेत्र से सामने आया था । जिसने देखते ही देखते प्रशासन और सियासत के हुक्मरानों को एक ही कठघरे में आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया है ! जीत किसी की हो लेकिन हर आम जनमानस की ही होगी ।
आपको बता दें कि दिन रात डकैतों को पकड़ने के लिए जंगलो में खाक छानने वाली पुलिस की कार्यवाही पर तो गाहे बगाहे हमेशा ही प्रश्न चिह् लगे हैं लेकिन क्या हमेशा सन्देह करना उचित है ? ध्यान देने वाली बात यह है कि आखिर उन ग्रामीणों का क्या होगा जो इस सियासत ,प्रशासन और दस्युओं के बीच पिस जाती है । ग्राउंड जीरो पर जाकर जब हमने तहकीकात की तो पता लगा की इन तमाम दस्यु प्रभावित इलाकों में अगर ग्रामीण अपने गाँव घर में डकैतों को सरंक्षण नही देते हैं तो यही डकैत उनकी बेरहमी से पिटाई करते हैं और इसके बाद अगर गलती और दबाव के चलते सरंक्षण दे भी दिया तो पुलिसिया डण्डा कब चल जाये पता नही ।
इन दोनों स्थितियो के बीच सियासी हुक्मरानों की जुगलबंदी भी देखने लायक होती है । विषय के तह तक न जाकर सिर्फ सतही तौर पर सियासी ड्रामा रच दिया जाता है । ग्रामीणों की स्थिति वैसी ही रहती है और पुलिसिया कार्यवाही भी उसी प्रकार दशकों से सन्देह के घेरे में रही आती है । विश्वस्त सूत्रों की मानें तो सबसे बड़ी बात ये है कि राजनीतिक सह मात के खेल में इन्ही डकैतों का प्रयोग चुनाव के दौरान किया जाता है लेकिन उस समय चारो ओर सन्नाटा पसर जाता है । लेकिन जैसे ही सत्ता में वापसी होती है वैसे ही इन्ही डकैतों के उन्मूलन की बात छेड़ दी जाती है । अब भला आप ही सोंचिये की कोई खुद के ही स्थापित अस्ति्त्व के आधारभूत ढांचे को कैसे गिरा सकता है !
लगभग चार दशक तक पाठा समेत आस पास के क्षेत्रो में अपनी बादशाहत कायम रखने वाले खौफ के पर्याय दस्यु सम्राट ददुआ से ठोकिया और बलखड़िया तक इन सभी दस्युओं के साथ सियासत के न जाने कितने चेहरों की जुगलबंदी देखी गई ! कभी लखनऊ और दिल्ली की मंजिल तक पहुचाने वाले रास्ते पाठा के इन्ही बीहड़ो से होकर जाया करते थे । जिसकी आहट आज तक सुनाई देती है ।
मजे की बात तो ये है कि बसपा और सपा शासनकाल में मंत्री , सांसद और विधायक रहे कई सफेदपोश नेताओ पर पूर्व में आसपास के कई थानों में आज भी दस्यु गैंगों से संपर्क रखने के कारण केस दर्ज है । अब आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि इस समूचे पाठा क्षेत्र में इन तमाम दस्यु गैंगों से सियासत के सफेदपोशों का जुड़ाव आम लोगो के लिए कितना परेशानी का सबब बनता होगा । यही सफेदपोश इस खौफ के आतंक के सरक्षणदाता , मददगार होते हैं और पीटी जाती है निर्दोष जनता । चुनाव के बाद समस्याएं भी खत्म नही होती हैं और ऊपर से गाहे बगाहे इन डकैतो द्वारा बेरहमी से पिटाई कर दी जाती है । ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि पाठा वासी जाएं तो कहाँ जाये ? यहाँ के दस्यु प्रभावित गांव के ग्रामीणों की जिंदगी आगे कुआं पीछे खाईं जैसी स्थिति की द्योतक है । इस समस्या को खत्म करना मौजूदा योगी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होगी !