ज्योति विश्वकर्मा एक सपने देखने वाली लड़की थी। देहात और ग़रीब परिवार की लड़की करियर बनाने के लिए कृतसंकल्प थी। वह पढ़-लिखकर किसी स्कूल या विद्यालय में टीचर बनना चाहती थी, ताकि समाज की निरक्षरता दूर करने में ज़्यादा तो नहीं थोड़ी-बहुत मदद कर सके। इसलिए वह बीए की पढ़ाई कर रही थी। लेकिन शायद प्रकृति को यह भी मंज़ूर नहीं था। उसे इलाज के लिए बड़े शहरों के अस्पताल में ले जाया जाता तो शायद उसका जीवन बचाया जा सकता था, परंतु ऐसा नहीं हुआ। उसने आखिर दम तोड़ दिया।
दरअसल, यह घटना उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में लालगंज अजहारा तहसील के श्रीपुर उमरपुर गांव में 25 सितंबर की शाम पांच बजे हुई। उस समय सूर्यास्त होने में क़रीब घंटे भर बाक़ी था। हैवानियत पर उतरे पड़ोसियों ने घर के पीछे शौच के लिए गई अकेली और निहत्थी 19 साल की ज्योति विश्वकर्मा पर हमला कर दिया। उस पर मिट्टी का तेल डालकर उसके जिस्म में आग लगा दी, जिससे ज्योति धू-धू करके जलने लगी। पास-पड़ोस का कोई व्यक्ति रक्षा करने के लिए भी नहीं आया। असहाय ज्योति का जिस्म जलता रहा, वह चिल्लाती रही लेकिन सब तमाशाबीन बने थे। आसपास खड़े थे, लेकिन उसे बचाने या उसके जलते शरीर पर कंबल डालने कोई नहीं आया। अंततः जलती हुई ज्योति ने ख़ुद बचने का प्रयास किया और अपने घर में भागी, जहां उसकी मां मालती विश्वकर्मा शाम को परिवार के छह लोगों के लिए खाना बना रही थी।
जब जलती हुई ज्योति घर के अंदर घुसी तो मां और तीन बहनें घबरा गईं कि ज्योति के साथ यह क्या हो गया? सबने कंबल डालकर आग बुझाया लेकिन ज्योति पूरी तरह जल चुकी थी। बहरहाल, दो किलोमीट दूर रहने वाले लड़की के बड़े पिता को बुलाया गया, क्योंकि ज्योति के पिता सउदी अरब में कारपेंटरी के दिहाड़ी मज़दूर हैं। परिजन आनन-फानन ज्योति को लेकर प्रतापगढ़ जिला अस्पताल गए, लेकिन वहां उसे फौरन इलाहाबाद ले जाने की सलाह दी गई। इलाहाबाद में सरकारी अस्पताल में ले गए, जहां डॉक्टर हड़ताल पर थे। मजबूरी में घर वाले उसे सिविल लाइंस के एक निजी अस्पताल ले गए।
बीरेंद्र अस्पताल में ज्योति का इलाज शुरू हुआ। बाद में मामला उनसे भी नहीं संभला तो उसे इलाहाबाद के स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में भेज दिया गया। चहरे को छोड़कर ज्योति का बाक़ी सारा जिस्म जल चुका था। जब ज्योति के रिश्तेदार घटना की रिपोर्ट लिखवाने घर से दो किलोमीटर दूर जेठवारा पुलिस स्टेशन गए तो, जैसा कि आरोप है, थानाध्यक्ष चंद्रबली यादव ने उन्हें गाली देकर भगा दिया। जलाने की वारदात रिपोर्ट दबाव बनाने के बाद 26 सितंबर की शाम दर्ज की जा सकी। जब सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 27 सितंबर को कार्रवाई करने का आदेश दिया तब पुलिस ने मुख्य आरोपी ओमप्रकाश मौर्या समेत सभी चारों आरोपियों को गिरफ़्तार किया।
देश के दूर-दराज के इलाक़ों में होने वाली बर्बर घटना पर भी पुलिस और प्रशासन का क्यो रवैया होता है, यह इस घटना से साबित हो गया। कोई घटना दिल्ली या मुंबई में होती है तो मीडिया और आम जनता में उबाल आ जाता है। ब्रेकिंग न्यूज़ चलने लगती है लेकिन देहातों में होने वाली घटनाओं की कोई नोटिस भी नहीं लेता। कुछ साल पहले दिल्ली के गैंगरेप की पीड़ित लड़की को बचाने के लिए सिंगापुर तक ले जाया गया लेकिन ज्योति विश्वकर्मा को बुनियादी मेडिकल फैसिलिटीज़ बमुश्किल मयस्सर हो पाई। आठ दिन तक ज़िंदा रही ज्योति मजिस्ट्रेट को बयान दिए बयान में सभी चारों आरोपियों का नाम लिया है। उसे इलाज के लिए बड़े शहरों के अस्पताल में ले जाया जाता तो शायद उसका जीवन बचाया जा सकता था, परंतु ऐसा नहीं हुआ।
दरअसल, ज्योति उस समाज की थी जो आज़ादी के सात दशक बाद आज भी प्रजा मानी जाती है और इस समाज के इक्का दुक्का लोग ही गांवों में पाए जाते हैं। मौर्य बाहुल्य श्रीपुर गांव में ज्योति का परिवार इकलौता विश्वकर्मा परिवार है। माता-पिता और चार बेटियों वाले परिवार में ज्योति की सबसे बड़ी थी। बाक़ी तीन बहने 14, 10 और सात साल की हैं। उसके पिता राजेंद्र विश्वकर्मा कारपेंटरी का काम करते हैं और इस समय सउदी अरब में दिहाड़ी मज़दूरी कर रहे हैं। आने जाने का किराया न होने और सउदी सरकार द्वारा इजाज़त न देने के कारण वह बड़ी बेटी तो देखने भी नहीं आ सके।
ज्योति के रिश्तेदार संजय कुमार विश्वकर्मा के मुताबिक़ टीचर बनने का सपना पाले ज्योति पास के बाबा सर्वजीत गिरी महाविद्यालय सरायभूपत कटरा गुलाब सिंह प्रतापगढ़ में बैचलर ऑफ़ आर्ट (बी.ए.) के अंतिम साल में पढ़ रही थी। संजय ने बताया कि ज्योति के परिवार का दो बीघा खेत है। उस खेत पर पड़ोस में रहने वाले ओमप्रकाश मोर्या की नज़र थी। उसने दो महीने पहले ज्योति के खेत में ज़बरदस्ती दीवार खड़ी बना ली थी। इस ज़ोर-जबरदस्ती का ज्योति की मां मालती विरोध करती थी। परिवार को सबक सिखाने के लिए ज्योति की हत्या की गई। उधर ज्योति मौवन मौत के बीच झूल रही थी, इधर आरोपी पुलिस के साथ मिलकर केस वापस लेने के लिए ज्योति के परिजनों पर दबाव बना रहे थे और केस वापस न लेने पर बाक़ी लोगों की हत्या की धमकी दे रहे थे।
ज्योति की मौत से निराश और पस्त संजय कुमार कहते हैं, “कभी-कभी लगता ही नहीं, बल्कि यह साबित भी हो जाता है कि यह देश, यहां का लोकतंत्र और यहां संविधान सब कुछ चंद लोगों के लिए ही है। आज़ादी के बाद जिन्हें मौक़ा मिला उन्होंने अपना ही विकास किया। बाक़ी लोगों की खोज-ख़बर लेने वाला कोई नहीं। ज्योति को बेहतर मेडिकेयर मिलता तो उसकी जान बच सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। काश ऐसा हो पाता।” जो भी हो ज्योति को जिंदा जलाए जाने की घटना के चलते उत्तर प्रदेश एक बार फिर शर्मसार हुआ है।
साभार:
हरिगोविंद विश्वकर्मा
सदस्य, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी
ज्योति की ज्योति का बुझना क्रूरतम घटना है घटना के बाद सरकार की उदासीनता जले पर नमक छिड़कने के समान है इसके लिए मै पूर्ण रूपेण उ०प्र० की समाजवादी सरकार को दोषी मानता हूँ