अनुज हनुमत
मोदी सरकार ने पिछले 8 नवंबर को रत आठ बजे के करीब एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए 500 और 1000 रुपये की नोटों पर पाबंदी लगाने का निर्णय लिया। इसके बाद से चारों तरफ हलचल तेज हो गई। आम लोगों को थोड़ी बहुत दिक्कतें हुईं, लेकिन ज्यादातर लोगों का यही कहना था कि हम देश के साथ हैं, लेकिन क्या जनता का कहना सच है क्योंकि आम जनता का रुख कोई नहीं भांप सकता । कब बदल जाये, क्या भरोसा। ज्यादा धैर्य वाला शब्द आम लोगों की डिक्शनरी में शायद है ही नहीं। यही कारण है कि शुरुआत में जो विपक्ष सुषुप्त ज्वालामुखी की तरह शांत था, वो अचानक मुखर हो उठा और गरीबों की तरफ से लड़ाई लड़नी शुरू कर दी।
कुछ जानकारों का कहना है कि जैसे अटल जी की सरकार द्वारा प्याज की महंगाई वाले निर्णय के चलते भाजपा सत्ता से दूर हो गई वैसे ही मोदी जी द्वारा 500 और 1000 की नोटों पर पाबंदी के निर्णय से कहीं फिर से भाजपा का वनवास न शुरू हो जाये। आपको बता दें कि ग्रामीण भारत की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी का बैंकिंग सिस्टम से आज भी जुड़ाव नहीं हो पाया है, और अब तो सहकारी बैंकों को भी 1000 और 500 रुपये के नोटों को लेने पर पाबंदी लगा दी है। ऐसे में दूर दराज के इलाकों के किसानों की मुश्किलें तो और भी बढ़ गईं हैं।
देखा जाए तो पहले ही मुसीबत में फंसे किसानों व मजदूरों के लिए ये दिन और कठिनाई भरे हो गए हैं और अब आने वाले महीनों में भी राहत दिखाई नहीं दे रही है। यदि मुश्किलें जल्द ही कम नहीं हुईं तो ये फैसला मोदी को पसंद करने वालों को नाराज कर सकता है। कुछ जानकारों का मानना है कि जैसे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अपने कार्यकाल में प्याज की कीमतों में भारी उछाल कर जनता को रुलाया था जिसके चलते भारत के लोगों ने भाजपा को सत्ता से 10 साल दूर रखा था, वही अब मोदी ने नोटबंदी कर आम लोगों को परेशान कर दिया है ।
बहरहाल , सरकार को याद रखना चाहिए कि ये 125 करोड़ की आबादी का देश आज भी कृषि प्रधान है, और 60 फीसदी से ज्यादा आबादी गांवों व कस्बों में बसती है। ये भारत है, यहां भविष्य के अच्छे दिनों के इंतजार में यदि वर्तमान खराब होता है, तो सरकारें बदल जाती हैं। ध्यान रहे कि पिछली सरकार को प्याज ने ही गिराया था।
कुछ भी हो लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि अगर मोदी सरकार का यह ऐतिहासिक निर्णय कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने पर जरा सा भी कामयाब हुआ, तो भाजपा के और अभी अच्छे दिन आ सकते हैं लेकिन अगर नहीं हुआ, तो फिर जनता है, कुछ भी जनमत दे सकती है ।