Anuj Hanumat@Navpravah.com,
पिछले कुछ समय से देश के कई विश्वविद्यालयों में विभिन्न आंदोलनों के चलते अध्ययन व अध्यापन काफी प्रभावित हुआ है। जिन छात्रों को अपनी राजनीति चमकाने का मौक़ा मिल रहा है, उनकी तो चांदी है, लेकिन ऐसे छात्र जिन्हें सिर्फ पढ़ाई से मतलब है, वे काफी परेशान नज़र आ रहे हैं। हैदराबाद विश्वविद्यालय से विरोध की उठती आग पहले जेएनयू पहुँची और लगभग उसी तर्ज़ पर अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थिति भी बिगड़ती नज़र आ रही है। विश्वविद्यालय की वर्तमान स्थिति को लेकर हमारे संवाददाता अनुज हनुमत ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र संघ अध्यक्षा ऋचा सिंह से बात की । प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
प्रश्न.1 आप अभी जेएनयू से होकर आई हैं । जेएनयू में जो कुछ हुआ,क्या आप उसका समर्थन करती हैं ?
ऋचा- जेएनयू में जो घटना हुई है हम सभी उसका खंडन करते हैं और उसके प्रति अफ़सोस भी जाहिर करते हैं,लेकिन जिस तरीके से पूरे विश्वविद्यालय को निशाना बनाया गया और उसमें कुछ छात्रों को फंसाया गया हम इसकी निंदा करते हैं। लेकिन हाँ उस घटना के लिए अफ़सोस है और अगर किसी ने ये कृत्य किया है तो उसको सजा दी जानी चाहिए , लेकिन पूरे विश्वविद्यालय को निशाना न बनाया जाए।
प्रश्न.2 वि.वि. ‘राजनीति का अखड़ा’ हो गए हैं । क्या यह छात्रों के लिए ठीक है ? खासकर ऐसे समय में जब भारतीय राजनीति में विकास केंद्र में है ?
ऋचा- विश्वविद्यालयों को राजनीति का अखाड़ा कहना गलत है। मुझे तो लगता है की वि.वि. ही एक ऐसा स्थान है जहाँ पर विद्यार्थियों का ‘राजनीतिकरण’ होना चाहिए क्योंकि विद्यार्थी ही देश का भविष्य हैं और ‘राजनीतिकरण’ का मतलब सिर्फ चुनाव लड़ना नहीं होता, बल्कि पूरी राजनीतिक प्रक्रिया को समझना होता है और वि.वि. को अपने विद्यार्थियों को ऐसा माहौल देना चाहिए जहाँ उन्हें हर तरीके की राजनीतिक पृष्ठभूमि या राजनीतिक विचारधाराओं को समझने का मौका मिले, क्योंकि आप मत देकर इस देश की राजनीतिक प्रक्रिया में भी शामिल होते हैं. इसलिए राजनीतिकरण जरुरी है ।लेकिन हाँ,मैं ये मानती हूँ की जिस तरीके से राजनीतिक पार्टियों ने वि.वि. व उसकी कार्यप्रणाली में दखल दिया है वो नहीं होना चाहिए. वहां के छात्रों को तय करना चाहिए की किस तरीके से वि.वि. की राजनीति छात्र हितों के लिए होगी और देशहित में होगी ।
प्रश्न.3 आप निर्दलीय हैं और जीती हैं। क्या आप विचारों से भी निष्पक्ष हैं ? आपका झुकाव तो वामपंथ की ओर दिखाई देता है ?
ऋचा- मैं इस बात को नहीं मानती कि वामपंथ की ओर मेरा झुकाव है और न ही दक्षिणपंथ की ओर। मैं उन लोगों के ज्यादा खिलाफ हूँ जो दक्षिणपंथी विचारधारा के हैं,जिसमें साम्प्रदायिकता को जगह दी जाती है, जिसमें विशेष तरीके के वर्गों को दबाने की बात की जाती है . मैं उसके खिलाफ हूँ। मेरा झुकाव न तो दक्षिणपंथ की तरफ है और न ही वामपंथ की तरफ। मैं सिर्फ विद्यार्थी हूँ और हालफिलहाल मैं छात्र राजनीति में हूँ । मैं छात्र हितों और छात्र मुद्दों की राजनीति कर रही हूँ।
प्रश्न.4 इलाहाबाद वि.वि. की समस्याएँ क्या हैं ? छात्र संघ अध्यक्ष के रूप में आप इसके लिए क्या प्रयास कर रही हैं ?
ऋचा- हमने चुनाव प्रचार के दौरान भी कहा था कि यहाँ की मूलभूत समस्याएं बहुत हैं। आप जब वि.वि. को देखेंगे तो यहाँ कैंटीन की समस्या है खासकर हमारी सारी फैकल्टीज में कैंटीन नहीं है। शौचालय की बहुत बड़ी समस्या है ।लाइब्रेरी से किताबें नही आबंटित होती है ,बसों की उचित व्यवस्था नहीं है. हम छात्रहितों की लड़ाई लड़ रहे हैं और हम लोग इसके लिए लगातार लगे हुए हैं। हमने यूजीसी के फेलोशिप के लिए भी आंदोलन किया । यह बात सही है की पहली बार महिला छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में कैम्पस ने हमें सहयोग नहीं दिया ।हमने कैम्पस को बहुत सारे प्रोजेक्टस छात्र हितों में बनाकर दिए हुए हैं जो कई बार दिखाई नहीं पड़ते हैं लेकिन कैम्पस में वि.वि. प्रशासन ने उसे जगह जगह रोक कर रखा है । जब मैं चुनकर आई तो सबसे पहले सभी विभागों में जाकर वहां के शौचालयों को खुलवाया तो कई लोगों ने कहा की छात्र संघ अध्यक्ष की ये गरिमा नहीं होती है कि वो जाकर शौचालय खुलवाए ।लेकिन मैं मानती हूँ की ये छात्रहित और छात्र मुद्दों की बात है । इसी तरह हमने रैम्प की बात कही थी और लाइब्रेरी के बाहर रैम्प बनाया गया । दूर-दराज स्थानों से आने वाले छात्रों के लिए बसों की बहुत दिक्कत थी हमने प्रदेश सरकार से मांग की और माननीय मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव जी ने छह बसों की व्यवस्था कर दी है जिसमें छात्रों को केवल अपना पहचान पत्र दिखाना होगा ।
प्रश्न.5 क्या हर तरह की सरकारों ने अपनी विचारधारा को छात्रों और पाठ्यक्रमों पर थोपने की कोशिश नहीं की है ? आप इससे कहाँ तक सहमत हैं ? हाल ही में एचआरडी मिनिस्टर स्मृति ईरानी ने तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम में शिक्षा के बदलाव को लेकर जो कहा ,उससे सहमत हैं ?
ऋचा- देखिये किसी भी सरकार को या राजनीतिक पार्टी को देश के इतिहास के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए . इससे हम बिलकुल भी सहमत नही हैं । देश के इतिहास के साथ या पाठ्यक्रमों के साथ विचारधारा के आधार पर खिलवाड़ करना या निकाल देना , ये गलत परम्परा को बढ़ावा देना है।
प्रश्न -6 यदि आप तटस्थ हैं तो फिर FTTI के मुद्दे पर आप क्या सोंचती हैं ?
ऋचा- जी बिल्कुल. इस मुद्दे पर मेरा मानना है कि किसी भी संस्था का मुख्य तत्व विद्यार्थी है और अगर FTTI के विद्यार्थी उस नियुक्ति से संतुष्ट नही हैं तो वि.वि. को या किसी संस्था को चलाने के लिए जरुरी है कि विद्यार्थियों की बात मान ली जाए. एक कोई छात्रों का ग्रुप विशेष हो तो वो किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सकता है पर जब पूरा वि.वि. या संस्था उस बात का समर्थन करे,तो मनना ही चाहिए. यह बात सही है की कहीं न कहीं FTTI में जिस व्यक्ति को भेजा गया वो उस संस्था के लिए उपयुक्त नहीं थे। उनसे बेहतर व्यक्ति हो सकते थे । सरकार जब जबरदस्ती करके किसी संस्था में हस्तक्षेप करती है,तो वो खतरनाक होता है।
प्रश्न -7 अभी हाल में ही आपको यूपी सरकार द्वारा रानी लक्ष्मी बाई वीरता पुरस्कार दिया गया है । क्या आपको नहीं लगता है कि ये पुरस्कार आपको राजनीति से प्रेरित होकर दिया गया है?
ऋचा-जी नहीं. ये पृरुस्कार मुझे मेरे संघर्षों के लिए दिया गया है । इसमें कोई राजनीति नहीं है ।
Great!!