आनंद रूप द्विवेदी,
ग्वालियर म०प्र०.
स्वतंत्र रूप से विचार अभिव्यक्ति की परिस्थितियां स्वस्थ जनमत के निर्माण में परमतत्व की भूमिका अदा करती हैं | सर्वाधिकारवादी व्यवस्थाओं में सत्ता की निरंकुश प्रवृत्ति तथा विचार-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अभाव स्वस्थ जनमत-निर्माण में सबसे बड़ा बाधक है | हाल ही में हुई दादरी दुर्घटना के उत्तरार्ध में छुट्भइये नेताओं का जमावड़ा, बेतरतीब बयानबाजी, राजनीतिक स्वार्थ के चलते सहानुभूति का पाखण्ड कानून व्यवस्था पर सवालिया निशान भी छोड़ता है | धार्मिक संवेदना जितनी आम जनमानस पर प्रभाव डालती है उतना ही राजनेता इससे लाभ लेना जानते हैं | कल तक भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मोर्चा ताने खड़े आम आदमी पार्टी सुप्रीमो केजरीवाल भी इस मौके को भुनाने में पीछे नहीं रहे | सवाल फिर भी जस का तस है ! क्या धार्मिक भावनाएं किसी की जान से ज्यादा मायने रखती हैं ? क्या पीड़ित व्यक्ति व उसके परिवार को न्याय मिलने से ज्यादा इसे एक ब्रेकिंग न्यूज़ बना देना ही सहृदयता है ? इन सबसे ऊपर ,क्या तथाकथित धर्म के पैरोकार नेताओं से हम संवेदनशील बयानबाजी की अपेक्षा भी नहीं रख सकते ? संवेदना के नाम पर पीड़ित परिवार के लिए आर्थिक पैकेज यदि व्यवस्था और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने में सफ़ल और कारगर औज़ार साबित हों तो फिर कहना ही क्या |
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन की मानें तो, “भारत एक सिक्यूलर देश है…कब तक रहेगा ये कह नहीं सकते क्योंकि इसे लेकर कई समस्याएं भी सामने आ रही हैं |” संदेह की स्थिति आम जनमानस के मन से इतर कहीं विधिवेत्ताओं के मन में भी स्पष्ट है | ये धार्मिक सौहार्द्र के प्रति घातक संकेत भी है | जब भी देश के किसी हिस्से में साम्प्रदायिक तनाव का माहौल तैयार हुआ , नेताओं ने आग में घी का काम ही किया है | हैदराबाद के ओवैसी बंधुओं ने इस मसले में विशेष महारत हासिल कर रखी है | खुलेआम देश की अखंडता को ललकारते ये राजनेता संविधान के प्रति खोखली आस्था व्यक्त करते भी नहीं चूकते |
बेशक भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है लेकिन अनुच्छेद 19(2) इस पर युक्तियुक्त निर्बन्धन भी लगाते हैं जिसके अनुसार “भारत की प्रभुता और अखंडता” सर्वोपरि है | वहीं भारतीय दण्ड संहिता 1960 की धारायें 153 (A) तथा 295 (A) धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले शब्दों/कथनों को अपराध मानते हुए दण्ड का प्रावधान करती है | जनगण के मूल अधिकारों का उच्चतम संरक्षक माननीय सर्वोच्च न्यायालय भी साम्प्रदायिक सौहार्द्र को आवश्यक तत्व मानते हुए कई बड़े निर्णय दे चुका है |
एआइएमआईएम के अकबरुद्दीन देश के प्रधानमंत्री को शैतान कहे जाने के लिए गिरफ़्तार हों या आपराधिक अभियोग के जाल में फंसे, मुस्लिमों को देश छोड़ पाकिस्तान चले जाने को कहने वाले या उन्हें पाकिस्तानी कहने वाले तथाकथित धर्माचार्य/नेतागण भले ही बाज न आयें, किन्तु ये निर्णय हमारा होना चाहिए कि हमें किस तरह की व्यवस्था का हिस्सा बनना है | एक ओर देश जहाँ संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थायी सदस्यता की फ़िराक में जुटा हुआ है, वहीं दूसरी ओर हम इसे अपनी राजनीतिक लालसाओं की पूर्ति के लिए धार्मिक कट्टरता के घुन से नुकसान भी पहुंचा रहे हैं | जहाँ हम दूसरे देशों के उपग्रह अन्तरिक्ष में भेजने लायक हुए हैं वहीं गोमांस खाए जाने की खबर मात्र हमें मानव हत्या के लिए उकसा रही है |
हिदुत्व इतना असहिष्णु हो सकता है या बना दिया गया लेकिन सनातन धर्म में सहिष्णुता ही इसकी सुन्दरता है| दूसरी ओर यदि गोमांस किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकता है तो इसका सेवन ही बंद क्यों न करें | क्या बिना गोमांस मानव जीवन दुष्कर होगा ? संजय दत्त और जैबुन्निसा काजी जैसों के लिए माफ़ी की मांग करने वाले रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज मार्कंडेय काटजू भी उकसाव की राजनीतिक सोच से बंधे हुए नज़र आते हैं | इन सभी बातों से इतर हाशिये पर खड़ी देश की एकता और अखंडता फिर भी जिंदा है और हमेशा रहेगी | दादरी काण्ड में मृतक के परिवार की रक्षा एक हिन्दू परिवार ने की तो लखनऊ में एक मुस्लिम युवक नमाज़ से उठकर अपने प्राणों को संकट में डालते हुए कुएं में गिरी गाय की जान बचाता है | देश की यही तस्वीर आधुनिक भारत के निर्माताओं के ज़ेहन में रही होगी | यही सच्चा भारत है |