कविता श्रीवास्तव
आओ सब मिल खेलें होली
कोई पकड़े कोई भागे
रंग ही सबके अंग लागे
चहुँ ओर शोर करे टोली
आओ सब मिल खेलें होली
आओ सब मिल खेलें होली।।
रंग ही सबके अंग लागे
चहुँ ओर शोर करे टोली
आओ सब मिल खेलें होली
आओ सब मिल खेलें होली।।
सब गली मुहल्ले हुए साथ
सब एक राग में गायें फाग
सबकी बोली में है होली
आओ सब मिल खेलें होली
आओ सब मिल खेलें होली।।
सब एक राग में गायें फाग
सबकी बोली में है होली
आओ सब मिल खेलें होली
आओ सब मिल खेलें होली।।
हर रंग के संग तैयारी है
और भरी हुई पिचकारी है
कोई ढोलक धम-धम बजा रहा
कोई नाचत दै दै तारी है
चेहरें हैं सबके रंगोली
आओ सब मिल खेलें होली।।
और भरी हुई पिचकारी है
कोई ढोलक धम-धम बजा रहा
कोई नाचत दै दै तारी है
चेहरें हैं सबके रंगोली
आओ सब मिल खेलें होली।।
रंग न जाने कोई भेद भाव
ये रंगे शहर यही रेंज गाँव
होली की न कोई ज़ात पात
कोई चेहरा रंग दे कोई हाथ
रंग बने हैं सबके हमजोली
आओ सब मिल खेलें होली।।
ये रंगे शहर यही रेंज गाँव
होली की न कोई ज़ात पात
कोई चेहरा रंग दे कोई हाथ
रंग बने हैं सबके हमजोली
आओ सब मिल खेलें होली।।
मथुरा से ले बरसाने तक
काशी से ले हरियाणे तक
अब सराबोर सब लोग युहीं
हैं छोटे बड़े घराने तक
खूब स्वांग बना कर नाचेंगे
सुखराम चचा कलुआ ढोली
आओ सब मिल खेलें होली
आओ सब मिल खेलें होली।।
काशी से ले हरियाणे तक
अब सराबोर सब लोग युहीं
हैं छोटे बड़े घराने तक
खूब स्वांग बना कर नाचेंगे
सुखराम चचा कलुआ ढोली
आओ सब मिल खेलें होली
आओ सब मिल खेलें होली।।
सब बंद दरवाज़े खोलेंगे
और ऐसा एक रंग घोलेंगे
कुछ दूर जो सूखे बैठे हैं
उनको भी संग भिगो लेंगे
हम रंग डालें वो रंग डालें
अब परे धरो बम और गोली
आओ सब मिल खेलें होली
आओ सब मिल खेलें होली।।
और ऐसा एक रंग घोलेंगे
कुछ दूर जो सूखे बैठे हैं
उनको भी संग भिगो लेंगे
हम रंग डालें वो रंग डालें
अब परे धरो बम और गोली
आओ सब मिल खेलें होली
आओ सब मिल खेलें होली।।
दो हाथ गुलाल उछालें अब
और सबको गले लगा लें अब
न हरा हो न नारंगी हो
एक अपना रंग बना लें अब
सब शिकवे ग़िले जला देंगे
इस बार जलेगी जब होली
आओ न अब खेलें होली
आओ सब मिल खेलें होली।।
और सबको गले लगा लें अब
न हरा हो न नारंगी हो
एक अपना रंग बना लें अब
सब शिकवे ग़िले जला देंगे
इस बार जलेगी जब होली
आओ न अब खेलें होली
आओ सब मिल खेलें होली।।