पॉज़िटिव लक्षण होने के बावजूद टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव क्यों?

सौम्या केसरवानी | नवप्रवाह न्यूज़ नेट्वर्क

हर रोज़ भारत में कोविड-19 मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, कुछ दिनों से हर रोज़ बीस हजार से ज्यादा मामले आ रहे हैं, इसी बीच एम्स के एक डॉक्टर ने अपना अनुभव बताया है कि, एक संक्रमित मरीज की रिपोर्ट चार बार नेगेटिव आने के बाद एक रिपोर्ट पॉजिटिव आयी, जबकि हर रिपोर्ट के समय मरीज में कोरोना लक्षण दिखाई दे रहे थे।

एम्स के डॉ. विजय गुर्जर ने अपने ट्वीट में बताया कि, एक 80 साल की महिला बुजुर्ग के एम्स में कोरोना के लक्षणों को देखते हुए भर्ती कराया गया था, लेकिन उनकी चार बार जांच हुई जिसमें उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई, लेकिन लक्षणों को देख कर डॉक्टर यह मान रहे थे कि कोरोना संक्रमण निश्चित है, इसके बाद डॉक्टरों ने एंटीबॉडी टेस्ट कराया जिसमें उस बुजुर्ग महिला की रिपोर्ट पॉजिटिव आ गयी।

इस पूरे घटना क्रम से कई शंकाएं पैदा हुई, पहला तो यह कि पहले चार टेस्ट की रिपोर्ट गलत कैसे आई थी, कहीं वायरस खुद को म्यूटेट तो नहीं कर रहा है या फिर क्या हमें टेस्ट की प्रक्रिया को ही बदलना चाहिए, ये चार टेस्ट PT-PCR हैं।

PT-PCR टेस्ट के बारे में शुरू से कहा जा रहा है कि, जरूरी नहीं कि इसमें एक बार में ही टेस्ट का पता चल सके, इसमें सबसे अहम यह है कि नमूने में वायरस की मौजूदगी जरूर हो, यानी यह संभावना भी होती है कि संक्रमित मरीज की रिपोर्ट नेगेटिव हो, लेकिन डॉ. गुर्जर ने कहा कि, लगातार चार रिपोर्ट का नेगेटिव आना हैरान करता है।

एंटीबॉडी टेस्ट के साथ समय की संवेदनशीलता है, इसमें सबसे जरूरी बात यह है कि मरीज का नमूना उसी समय लिया जाना जरूरी है जब उसके शरीर में पर्याप्त एंटीबॉडी बन चुके हैं जिससे वे नमूने में पाए जा सकें, इसमें 6-7 दिन का समय लगता है. क्योंकि आमतौर पर इतने समय में एंटीबॉडी बनने लगते हैं और 6 से 8 सप्ताह तक बनते रहते हैं, नमूने लेते समय यह तय करना होता है कि क्या संक्रमण को 5-7 दिन का समय हो चुका है या नहीं।

केवल टेस्ट के भरोसे ही कोविड-19 का इलाज नहीं हो सकता. इस वायरस का वैसे तो इलाज अभी निकला ही नहीं है, बस डॉक्टर को यह सुनिश्चित करना होता है कि मरीज का इम्यून सिस्टम कमजोर न हो और उसके सपोर्टिव ट्रीटमेंट में कमी न हो जिससे उसका शरीर वायरस से लड़ सके और बीमारी से उबर सके।

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