सावन महीने में इस तरह महिलाएं करें अपना सोलह श्रंगार !

फैशन डेस्क. आपने कई दफा घर कि बुजुर्ग महिलाओं को बहुओं से किसी पूजा, व्रत और त्योहार के मौके पर श्रृंगार करने की सलाह देते हुए सुना होगा। श्रृंगार करना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।

वहीं ऋग्वेद में भी सोलह शृंगार का जिक्र किया गया है। जिसमें कहा गया है कि सोलह श्रृंगार सिर्फ खूबसूरती ही नहीं भाग्य को भी बढ़ाता है। महिलाएं शिव के प्रिय महीने सावन में भोले शंकर को खुश करने के लिए भी श्रृंगार करती हैं।

बतादें की दोनों भौंहों के बीच कुमकुम से लगाई जाने वाली बिंदी भगवान शिव के तीसरे नेत्र का प्रतीक मानी जाती है। सुहागिन स्त्रियों को कुमकुम या सिंदूर से अपने ललाट पर लाल बिंदी लगानी चाहिए। जहां इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। वैसे अब कुमकुम बिंदी की जगह स्टीकर बिंदी ने ले ली है। आप चाहें तो इसे भी लगा सकती हैं।

लेकिन सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। विवाह के समय पति अपनी पत्नी के मांग में सिंदूर भर कर उसे जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है। कहते हैं सिंदूर लगाने से पति की आयु में वृद्धि होती है।

चेहरे की सबसे खूबसूरत चीज और मन का आइना होती हैं आंखें, जिनका श्रृंगार होता है काजल। काजल का इस्तेमाल महिलाएं अपनी आंखों की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए करती हैं। कहा जाता है ये बुरी नजर से कवच प्रदान करता है।

त्योहार और विशेष अवसरों पर लगाए जाने वाली मेहंदी के बिना हर सुहागन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। शादी के समय दुल्हन और शादी में शामिल होने वाली हर महिला अपने पैरों और हाथों पर मेहंदी जरूर रचाती है। ऐसा माना जाता है कि नववधू के हाथों में मेहंदी जितनी गाढ़ी रचती है, उसका पति उसे उतना ही अधिक प्रेम करता है।

हर महिला के लिए अपना शादी का जोड़ा बेहद खास होता है। शादी के समय पहना लाल दुल्हन का जोड़ा वो हमेशा संभाल कर रखती है। महिलाओं के लिए उनका श्रृंगार इस जोड़े के बिना पूरा नहीं माना जाता है। अगर आप भारी भरकम होने की वजह इसे नहीं पहन सकती हैं तो आप लाल या हरा जोड़ा पहन सकती हैं।

बालों को संवारने के साथ ही उनकी सुंदरता बढ़ाने के लिए गजरा लगाया जाता है। दक्षिण भारत में तो सुहागिन स्त्रियां रोजाना अपने बालों में हरसिंगार के फूलों का गजरा लगाती हैं। इसके लिए आप जूड़ा बनाकर उस पर गजरा लगा सकती हैं या फिर चोटी बनाकर भी इसे बालों के ऊपर बांध सकती हैं।

माथे के बीचों-बीच पहने जाने वाला यह आभूषण सिंदूर के साथ मिलकर हर लड़की की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। इसे लेकर बताया जाता है कि नववधू को मांग टीका सिर के बीचों-बीच इसलिए पहनाया जाता है ताकि वह शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले।

सुहागिन स्त्रियों के लिए नाक में आभूषण पहनना अनिर्वाय माना जाता है। आम तौर पर स्त्रियां नाक में छोटी नोजपिन पहनती हैं, जिसे लौंग कहा जाता है।

दरअसल कान में पहने जाने वाला यह आभूषण कई तरह के सुंदर डिजाइन में उपलब्ध होता है। शादी के बाद स्त्रियां कान में ईयरिंग्स जरूर पहनती हैं। मान्यता है कि विवाह के बाद बहू को खासतौर से पति और ससुराल वालों की बुराई करने और सुनने से दूर रहना चाहिए।

वहीं चूड़ियां सुहाग का प्रतीक मानी जाती रही हैं। ऐसा माना जात है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूड़ियों से भरी हानी चाहिए। चूड़ियों के रंगों का भी विशेष महत्व है।लाल रंग की चूड़ियां इस बात का प्रतीक होती हैं कि विवाह के बाद वह पूरी तरह खुश और संतुष्ट है। जहां हरा रंग शादी के बाद उसके परिवार के समृद्धि का प्रतीक है। होली के अवसर पर पीली या बंसती रंग की चूड़ियां पहनी जाती है, तो सावन में तीज के मौके पर हरी और धानी चूड़ियां पहनने का रीवाज सदियों से चला आ रहा है।

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