New Delhi. असम की राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) की अंतिम सूची शनिवार को जारी कर दी गई, जिसमें से 19 लाख से ज्यादा लोगों को निकाल दिया गया है। अंतिम सूची से 19,06,657 लोगों को निकाल दिया गया और 3,11,21,004 लोगों को भारतीय नागरिक बताया गया।
NRC की अंतिम सूची में जिन लोगों का नाम इस लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है। उनके पास अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिए 120 दिन में विदेशी ट्राइब्यूनल में अपील करने का अधिकार होगा। उसके बाद भी उच्चतम न्यायलय तक के विकल्प खुले रहेंगे। पिछले साल जारी लिस्ट में 41 लाख लोगों के नाम छूट गए थे। जिनमें बड़ी संख्या मुसलमान व बंगाली हिंदुओं की है।
NRC की अंतिम सूची सुबह लगभग 10 बजे ऑनलाइन जारी की गई, जिसके बाद असम में अवैध रूप से रह रहे विदेशियों की पहचान करने वाली छह साल की कार्यवाही पर विराम लग गया। असम के लोगों के लिए NRC का बड़ा महत्व है क्योंकि राज्य में अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को हिरासत में लेने और उन्हें वापस भेजने के लिए छह साल तक (1979-1985) आंदोलन चला था।
NRC को संशोधित करने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 2013 में शुरू हुई। इसे सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा किया जा रहा है। असम में NRC के संशोधन की प्रक्रिया शेष भारत से अलग है और इस पर नियम 4अ लागू होता है और नागरिकता की अनुसूची (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान कार्ड का मुद्दा) कानून, 2003 की इसी अनुसूची लागू है।
क्या है नागरिकता रजिस्टर
यह किसी राज्य या देश में रह रहे नागरिकों की विस्तृत रिपोर्ट है। भारत में पहला नागरिकता रजिस्टर 1951 में जनगणना के बाद तैयार हुआ। इस रजिस्टर में दर्ज सभी को भारत का नागरिक माना गया। यह इकलौता नागरिक ब्यौरा रजिस्टर है।
असम में NRC
1986 के नागरिकता कानून में संशोधन करके असम में भारतीय नागरिकता के नियम बदले गए। जिसके तहत वहां 1951 से 24 मार्च 1971 की मध्य रात्रि तक भारत में रहने वालों को ही भारतीय माना जाएगा।
NRC से बाहर होने पर ये है विकल्प
1- 120 दिन के अंदर विदेशी ट्राइब्यूनल में अपील कर सकेंगे ऐसे लोग। 1000 ट्राइब्यूनल बनाए जाएंगे ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए और 100 ट्राइब्यूनल तैयार, अन्य 200 सितंबर के पहले हफ्ते में तैयार होंगे।
2- ट्राइब्यूनल में केस हारने पर उच्च व उच्चतम न्यायालय में अपील का रास्ता
3- सुनवाई के दौरान किसी को शरण केंद्रों में नहीं रखे जाने का आश्वासन