पारुल पाण्डेय | Navpravah.com
विक्रम भट्ट के डायरेक्शन में बनीं फिल्म 1921, 12 जनवरी को रिलीज़ होने वाली है। 1920 की हॉरर सीरीज की यह चौथी फिल्म है। इस फिल्म में ज़रीन खान, करण कुंद्रा अहम भूमिका में हैं। फिल्म 1921 को लेकर विक्रम भट्ट ने नवप्रवाह से लम्बी बातचीत की। प्रस्तुत है विक्रम से हुई लम्बी बातचीत के प्रमुख अंश-
क्या कारण है कि भारत की हॉरर फ़िल्में नहीं चल पाती ?
हम अपने संस्कृति की इज्ज़त नहीं कर पाते। अगर हम पादरी को बाइबल पढ़ते देखते हैं, तो बहुत खुश होते हैं वहीं अगर एक पंडित हनुमान चालीसा पढ़ रहा हो, तो इंडियंस को ये लोग निचली सोसाइटी के लगते हैं। हम सोचते हैं यह सब तंत्र मंत्र का हिस्सा है। वहीं बाइबल कूल है, क्योंकि यह अंग्रेजी में लिखा है। लोगों को हनुमान चालीसा, विष्णु सहस्त्रनाम इन सभी की कीमत नहीं पता। अगर भारत में लोगों को नहीं लगता कि हमारी हॉरर फ़िल्में देखने लायक नहीं हैं, तो कोई बात नहीं, वे जाएँ और अंग्रेजी की हॉरर फ़िल्में देखें।
क्या आपको लगता है कि केवल स्ट्रांग कंटेंट ही बिकता है?
अब स्टारडम का कांसेप्ट ख़त्म हो चुका है। मै जानता हूं ये बहुत बड़ा स्टेटमेंट है, लेकिन स्टारडम एक अच्छे कंटेंट के बिना कुछ नहीं है। मैं अमिताभ बच्चन का बहुत बड़ा फैन हूं, एक वक्त था जब हम मासिक पत्रिका का इन्तजार करते थे। बड़े स्टार्स हमारे लिए ऐसे थे, जिन्हें हम छूना चाहते थे, लेकिन सोशल मीडिया और इंटरनेट ने यह सब ख़त्म कर दिया है। अब लोग अभिनेताओं को केवल थिएटर में ही नहीं बल्कि टीवी पर भी बिग बॉस और खतरों के खिलाड़ी में भी देख लेते हैं। उसके लिए हमें थियेटर में अपने 300 रुपए खर्च करने की जरुरत नहीं है। इसलिए, अब ऐसा दौर आ गया है, जहाँ केवल कंटेंट काम करेगा स्टारडम नहीं। फिल्ममेकर्स के लिए यह एक अच्छी खबर है।
क्या आपको लगता है आप अपनी आने वाली ओटीटी (वीबी थिएटरऑन दी वेब ) से रेग्युलर थियेटर को कॉम्पिटीशन दे रहें हैं ?
27 जनवरी को मेरी (ओटीटी) वीबी थिएटरऑन दी वेब आ रही है। मैं भारत में पहला व्यक्ति हूं, जो लोगों को वेब पर ऑनलाइन थियेटर की सुविधा दे रहें हैं और इसे आपको सब्सक्राइब करने की भी जरुरत नहीं है। अगर कॉम्पिटीशन की बात करें तो मैं किसी को कॉम्पिटीशन नहीं दे रहा। मुझे नहीं लगता डीजिटल थिएटर अन्य थिएटर से मुकाबला करेगा, यहां कोई शो टाइम नहीं है। आप जब चाहें अपने व्यस्ततम समय से टाइम निकालकर फिल्म देखें। यहां आपको समय का ध्यान देने की भी जरुरत नहीं है। फोन आपके बेस्ट फ्रेंड की तरह होता है, जहां आप अपनी कई पर्सनल चीजें करते हैं।
क्या ऑनलाइन चलनेवाली फ़िल्में थिएटर में चल रही फिल्मों के बिसनेस को नुक्सान पहुंचाती हैं ?
अब फिल्म बिसनेस केवल दो हफ्ते का रह गया है, जब तक आपकी फिल्म बहुत हिट न हो। ऐसे में क्या फर्क पड़ता है कि फिल्म एमेंजॉन पर आए या नेटफ्लिक्स पर। चौथे हफ्ते में फिल्म का बिसनेस वैसे भी कम हो जाता है। पहले सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली होता था, लेकिन अब ये कॉन्सेप्ट खत्म हो गया है। मेरा मानना है कि अब ज्यादातर फ़िल्में एमेंजॉन और नेटफ्लिक्स पर चल रहीं हैं, लेकिन आने वाला समय यही है।
वेब थिएटर का आइडिया आपको कहाँ से आया ?
मै न्यूयॉर्क के टाइम स्कवायर में था, उस दौरान वहां एक म्यूजिक स्टोर था, जिसका नाम था म्युज़िक एंड मूवीज़। मैं हमेशा वहां जाकर हेड फोन लगाकर अपने पसंदीदा गाने सुना करता था। एक दिन अचानक जब मैं कैब से उतरा और देखा उस स्टोर का नाम फोरेवर 21 में बदल गया, तो पता चला कि वह स्टोर अब बंद हो चुका है। तो मैंने पाया कि सारे म्युज़िक स्टोर और बुक शॉप अब ऑनलाइन आ चुके हैं। उस वक्त मैं समझ गया कि जल्द ही थिएटर भी ऑनलाइन आ जाएंगे।