बोलती तस्वीरें- “नुक्कड़ (1986)”

डॉ० कुमार विमलेन्दु सिंह | Navpravah Desk

जिनके रात की सुबह बस ये ऐलान करने आती है कि आज फिर संघर्ष होगा, आज फिर रोटियां अपने हिस्से की, मेहनत कर के लेनी होगी, उनके अंदर एक अजीब सा जज़्बा होता है ज़िंदगी को लेकर और ख़ुश रहने के लिए उन्हें अलग से उपाय नहीं करने पड़ते। अपने आस-पास चलती कहानियों से जुड़कर, वे अपने हिस्से की हंसी हंस लेते हैं और अपने हिस्से के आंसू भी रो लेते हैं, लेकिन वे अकेले कभी नहीं होते क्योंकि उनके साथ कई किरदार जुड़े होते हैं, जो उनकी ख़ुशी और ग़म बिना शर्त बांटते हैं। वो आपस में झगड़ते भी हैं, लेकिन सब की ज़िन्दगी साथ-साथ बढ़ती रहती है, इनकी एक अपनी टोली होती है।

सईद अख्तर मिर्ज़ा   (PC-Bangalore International Centre)

ऐसे ही एक टोली की कहानी सुनाने का ज़िम्मा लिया अज़ीज़ मिर्ज़ा ने, लिखा प्रबोध जोशी और अनिल चौधरी ने और अपने निर्देशन से सजाया, सईद अख़्तर मिर्ज़ा और कुंदन शाह ने और दर्शकों तक 1986 में पहुंचाने का काम किया दूरदर्शन ने, नाम था “नुक्कड़”।

“ये धारावाहिक और इसके किरदार, घर-घर में छा गए। इसमें एक गली के नुक्कड़ पर कई लोग जो रोज़ मेहनत कर के रोज़ी रोटी कमाते हैं, एक साथ रहते थे। उनकी ज़िन्दगी की उलझने वे आपस में हंसते-खेलते, लड़ते-झगड़ते सुलझाते थे और इसी सिलसिले में आगे बढ़ते, इस धारावाहिक ने 100 एपिसोड पूरे किए। इसका हर एपिसोड 23-24 मिनट का होता था।”

“नुक्कड़” या “सराय”, हर काल की और हर देश की पुरानी कहानियों के केन्द्र-बिन्दु रहे हैं, जहाँ किरदार एक-दूसरे के सामने से और कभी साथ-साथ गुज़रते हैं।

‘नुक्कड़’ का एक दृश्य

यहां दिलीप धवन(गुरू) सब को एक सूत्र में बांधने वाला किरदार होता है जो बिजली मिस्त्री होता है। इसके अलावा, अवतार गिल (कादर भाई) जिनकी चाय बिस्कुट की दुकान होती है, पवन मल्होत्रा (हरि) जो साइकिल रिपेयर करता है, हैदर अली (राजा), सुरेश चटवाल (शायर), समीर खक्कर (खोपड़ी) जो शराबी होता है, सोमेश अग्रवाल (कुंडु मोची), जावेद ख़ान (करीम हज्जाम) रमा विज (मारिया) जो शिक्षिका होती हैं और भी कई किरदार इस धारावाहिक में थे। वैसे तो सभी किरदार मशहूर थे, लेकिन समीर खक्कर (खोपड़ी) और जावेद ख़ान (करीम हज्जाम), आज तक लोगों को याद आते हैं।

‘नुक्कड़’ का एक दृश्य

इस धारावाहिक के ज़रिए, लोगों ने जीवन के एक ऐसे विस्तार को देखा, जहाँ अपने आप में पूरी दुनिया बसी होती है लेकिन सहूलियत से भरी ज़िन्दगी वाले लोग इन्हें अनदेखा कर, अपनी अलग दुनिया में रहते हैं। ये भावना भी लोगों में जागी कि ये मेहनतकश लोग भी महसूस करते हैं, सुख, दुख, हार और जीत।

चन्द्रिमा पाल ने अपनी किताब ” The DD Files” में तो यहाँ तक लिखा कि, “नुक्कड़ मुंबई की गलियों को लिविंग रूम तक ले आया।”

देखें नुक्कड़ का एक एपिसोड “अमिताभ बच्चन का फ़ोटो”-

इम्तियाज़ हुसैन के लिखे बोल जब कुलदीप सिंह के जादू भरे सुरों से मिलकर गीत बनते थे और एक कोरस की आवाज़ आती थी, “बड़े शहर की एक गली में, बसा हुआ है नुक्कड़…”, तब अपनी सारी चिंताएं छोड़, उसी नुक्कड़ से थोड़ी दूर पर अपने टेलीविज़न से, हर उम्र के लोग चिपक जाते थे और डूब जाते थे उन बनती, बिगड़ती कहानियों में।

(लेखक जाने-माने साहित्यकार, फ़िल्म समालोचक, स्तंभकार, व शिक्षाविद हैं.)

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