अनुज हनुमत,
इस समय पूरे विश्व में आतंकी घटनाएं बड़ी तेजी से बढ़ रही हैं। एक के बाद एक आतंकी हमले, जिसमें हजारों जानें गईं। ऐसा लग रहा है, मानो मनुष्य की जिंदगी का कोई मोल ही न रह गया हो! फ्रांस एक बार फिर आतंकी हमले का शिकार हुआ है। ये घटना नीस शहर में फ्रेंच नेशनल डे पर आयोजित समारोह के दौरान हुई जब एक तेज रफ्तार ट्रक भीड़ में जा घुसा और लोगों को रौंदते हुए निकल गया, जिसमें 75 लोगों की मौत हो गई, जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए।
सूचना के अनुसार पुलिस ने ट्रक ड्राइवर को मार गिराया है और ट्रक उनके कब्जे में है। लेकिन फ्रांसीसी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रक में बंदूकें और ग्रेनेड बरामद हुए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सहित कई राष्ट्राध्यक्षों ने इस हमले की निंदा की है। अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि इस हमले में ISIS का भी हाथ हो सकता है। लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि आखिर ऐसे आतंकी हमले कब तक होते रहेंगे ? क्या आतंकियों को रोकने दम अब किसी भी देश में नही रहा या सबके सब वैश्विक राजनीति के चलते यूँ ही अपने नागरिकों को खोते रहेंगे।
इस वर्ष सबसे ज्यादा आतंकी हमले हुए और हजारों लोग पूरे विश्व में मारे गए। इन हमलों से प्रभावित होने वालों की संख्या करोड़ों में है। असल में सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि कुछ देश खुलकर आतंकियों का साथ दे रहे हैं, लेकिन ऐसे देशों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करना चाहता। पाकिस्तान की ही बात लें, पूरे विश्व को पता है कि पाकिस्तान आतंकियों का गढ़ बना हुआ। इंटरपोल की सूची में टॉप मोस्ट वांटेड आतंकी हफीज सईद कभी लाहौर में भाषण देता देखा जा रहा है, तो कभी करांची में। लेकिन पूरा विश्व शांति से मौत के ऐसे सौदागरों को देख रहा है। खासकर महाशक्ति कहे जाने वाले विकसित देश।
सबके अपने अपने हित हैं। ऐसे मुट्ठी भर देश अपने हितों के बोझ तले पूरे विश्व को दबा कर कुचलना चाहते हैं। कुछ अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट्स की मानें तो दुनिया भर में आतंकवादी हमलों के लिहाज से वर्ष 2016 सबसे अधिक खून-खराबे वाला साल साबित हुआ है। पिछले छह महीने में हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई है। इस साल सबसे अधिक आतंकवादी हमले भी हुए हैं। इन सभी हमलों में कहीं न कहीं इस्लामिक आतंकवादियों की संलिप्तता रही है।
विकीपीडिया के मुताबिक – दुनिया के अलग-अलग इलाकों में जनवरी में 97, फरवरी में 68, मार्च में 108, अप्रैल में 150, मई में 197 और जून में 218 आतंकवादी वारदात हुए हैं। इनमें से अधिकतर आतंकवादी घटनाएं दुनिया के अखबारों की हेडलाइन नहीं बन सके थे।
आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान करने वाली रूस व अमेरिका जैसी महाशक्तियों के आपसी झगड़ों का नतीजा है, आतंकवाद का मौजूदा स्वरूप।
जब तक महाशक्तियां दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में दखल बंद नहीं करती और अच्छे आतंकवाद और बुरे आतंकवाद को एक समान मानकर एक जुटकर नहीं लड़ती, तब तक आतंकवाद पर काबू पाना नामुमकिन हैं।
आतंकवाद से प्रभावित 10 देशों की सूची में भारत भी शामिल-
एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2014 में आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित रहे 10 देशों में शामिल है। इसमें यह भी कहा गया है कि दुनिया में आतंकी हमलों से होने वाली मौतों में से आधी से ज्यादा के लिए अब आईएसआईएस और बोको हराम संयुक्त रूप से जिम्मेदार हैं। ग्लोबल टेररिज्म इंडेक्स 2015 (जीटीआई) के अनुसार 2014 में आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित 162 देशों में भारत का छठा स्थान रहा।
भारत में आतंकवाद से संबंधित मौतों में 1.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है और मरने वालों की संख्या 416 रही। यह संख्या 2010 में हुई आतंकी घटनाओं और मौतों के बाद से सर्वाधिक है। वाशिंगटन आधारित इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस की रिपोर्ट के अनुसार, वहां 763 घटनाएं हुईं। यह आंकड़ा 2013 के मुकाबले 20 प्रतिशत ज्यादा है। भारत में 2014 में दो खूंखार आतंकी समूह लश्कर ए तैयबा तथा हिज्बुल मुजाहिदीन सक्रिय रहे। पाकिस्तान आधारित लश्कर 2014 में 24 मौतों के लिए जिम्मेदार रहा, जबकि हिज्बुल मुजाहिदीन इस अवधि में 11 मौतों के लिए जिम्मेदार रहा। यह आंकड़ा पूर्व के साल की 30 मौतों से कम है। रिपोर्ट में कहा गया कि 2013 में हिज्बुल मुजाहिदीन भारत में आत्मघाती रणनीति का इस्तेमाल करने वाला एकमात्र समूह था, लेकिन 2014 में भारत में कोई आत्मघाती हमला नहीं हुआ ।
हैफा विश्वविद्यालय (इजराइल) की तरफ से किए गए एक अध्ययन में पता चला कि 90 प्रतिशत आतंकी संगठन अपने प्रचार-प्रसार के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते है। सोशल मीडिया एक सस्ता, त्वरित और तेजी से संदेशों का प्रचार करने वाला माध्यम है। सोशल मीडिया के माध्यम से ही आतंकी समूह अपना जाल फैलाते है। नए आतंकी भर्ती करने में भी सोशल मीडिया का हाथ बहुत ज्यादा है।
स्थिति जितनी आंकड़ों में दिख रही है, इससे कहीं अधिक भयावह है। कुछ भी हो लेकिन आतंकवाद इस समय सबसे बड़ी चुनौती के रूप में पूरे विश्व के सामने है। अगर समय रहते पूरा विश्व एक साथ इस दानव (आतंकवाद) के विरुद्ध नही खड़ा हुआ, तो वो दिन दूर नहीं, जब कुछ शेष नही रहेगा। न ही मानव और न ही मानवीय मूल्य। चाहे वो अमेरिका जैसा विकसित देश हो या भारत जैसे विकासशील देश।