पत्रकारिता के नाम पर मात्र ‘दुकानदारी’, गणेश शंकर विद्यार्थी को भी भूले पत्रकार!

अनुज हनुमत

पिछले दिनों गणेश शंकर विद्यार्थी जी का बलिदान दिवस था. उस महान कलम के सिपाही का बलिदान दिवस, जिसने पत्रकारिता को एक मिशन मानकर समाज की उन्नति के लिए निरंतर काम किया. ऐसी शख्सियत को याद करने की जहमत किसी भी बड़े पत्रकार ने नही उठाई. वे भी नहीं जो आज के मौजूदा समय में खुद को तटस्थ विचारों का अगुवा मानते हैं. उन्होंने भी नही जो बाजारीकरण के इस दौर में पत्रकारिता को एक मिशन मानकर कार्य करने का राग अलापते हैं.

 

छोटे स्तर पर कुछ संगठनों द्वारा उनका बलिदान दिवस मनाया गया, पर वहां भी केवल खाना पूर्ति ही की गई. सारा ढकोसला फ़ोटो खिंचवाने से लेकर फेसबुक में अपलोड करने तक जारी रहा.

 

जिस व्यक्ति ने अपने छोटे से जीवन में ही समाज को एकता के सूत्र में पिरोने के लिए दिन रात एक कर दिए, आज उसे और उसके योगदान को याद करने के लिए किसी के पास पल भर का समय नहीं. ऐसे बहुत से लेखक हैं, जिन्हें मैं प्रतिदिन पढता हूँ जिनमे से कुछ स्थापित लेखक हैं और कुछ संघर्ष कर रहे लेखक. लेकिन किसी ने भी ‘विद्यार्थी’ के बलिदान को याद भी नहीं किया. सोशल साइट्स के बहुत से ‘स्ट्रीट लेखकों’ पर तो मुझे पक्का विश्वास था कि उनकी पोस्ट में गणेश शंकर विद्यार्थी जी के बलिदान का जिक्र होगा, पर उन्होंने भी इसे महत्वपूर्ण नही समझा.

 

अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर अधिकांश लेखकों द्वारा, जिस व्यक्ति को लेखनी का पैमाना माना जाता है उसके योगदान को याद करने के लिए उनके पास पर्याप्त समय नहीं.

 

वर्तमान समय में पत्रकारिता पर भी बाजार खूब हावी हो गया है, जिसके कारण हमें केवल विज्ञापन ही देखने को मिल रहा है. जिसे हम आज कल समाचार मानकर देखते हैं. ये सब इसलिए भी चलन में आ गया है क्योंकि अधिकांश लोगों के द्वारा बिना किसी उद्देश्य को हाथ में लिये ही पत्रकारिता की कठिन डगर चुन ली जाती है. जो आगे चलकर ख़बरों की दलाली करते हैं और पत्रकारिता को शर्मसार करते है. ऐसे महापुरुषों को अगर हम ज़रा सा भी समय नहीं दे पाते हैं तो हमें किसी भी प्रकार के बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.

 

आज गणेश शंकर विद्यार्थी तो हमारे बीच नही हैं पर उनके बताये गए आदर्श व् सिद्धांत जरूर हमें मजबूती प्रदान करते हैं. वे अक्सर कहा करते थे कि समाज का हर नागरिक एक पत्रकार है, इसलिए उसे अपने नैतिक दायित्वों का निर्वाहन सदैव करना चाहिए. गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता को एक मिशन मानते थे, पर आज के समय में पत्रकारिता मिशन नही बल्कि इसमें बाजार हावी हो गया है. जिसके कारण इसकी मौजूदा प्रासंगिकता खतरे में है. हम सूचना क्रांति के दौर में जी रहे हैं, जिसने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अमूल चूल परिवर्तन किया है. एक पत्रकार के ऊपर समाज की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है, इसलिए इसे हमेशा सजग व सचेत रहना चाहिए.

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